अगर आप भी बैंक में खाताधारक हैं तो आपने भी चेक बांउस के बारे में जरूर सुना होगा। बता दें कि चेक बाउंस का मतलब है आपने किसी व्यक्ति को 10,000 रुपये का चेक साइन करके दिया।वह व्यक्ति अपने बैंक में गया और वह रकम अपने खाते में (cheque bounce case legal solution) डलवाने के लिए चेक लगा दिया। बैंक ने पाया कि जिस व्यक्ति ने (आपने) चेक दिया है, उसके खाते में 10,000 रुपये हैं ही नहीं। ऐसे में जिसे पैसा मिलना चाहिए था, उसे नहीं मिला और बैंक को अलग से मैनपावर लगानी पड़ी। इस तरह के चेक रिजेक्ट हो जाने को ही चेक बाउंस होना कहा जाता है। चेक का बाउंस होना एक वित्तीय अपराध है। इन मामलों में राजीनामा नहीं होने की स्थिति में अदालत अभियुक्त को सजा सुना सकती है।
हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने चेक बाउंस को लेकर एक जरूरी फैसला सुनाया हैं कि किन्हीं खास परिस्थितियों में अगर चेक बाउंस हो जाता हैं तो इसे अपराध नहीं माना जा सकता हैं। इलाहाबाद हाईकोर्ट (chances of winning cheque bounce case) ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है जिन बैंकों का किसी अन्य बैंक में विलय हो चुका है, उनके चेक बाउंस होने पर एनआई एक्ट की धारा 138 के तहत अपराध गठित नहीं होगा। चेक के (cheque bounce punishment) बाउंस होने पर इसे जारी करने वाले के खिलाफ 138 एनआई एक्ट का मुकदमा नहीं चलेगा।
इसी मामले के तहत बांदा की अर्चना सिंह गौतम की याचिका स्वीकार करते हुए इंडियन बैंक में विलय हो चुके चेक के अनादर के केस में यह आदेश न्यायमूर्ति अरुण सिंह देशवाल ने दिया है। याची ने 21 अगस्त 2023 को विपक्षी को एक चेक जारी किया जिसे उसने 25 अगस्त 2023 को बैंक में (how to escape from cheque bounce case) प्रस्तुत किया। बैंक ने इसे अमान्य करार देते हुए चेक लौटा दिया। इस पर विपक्षी ने याची के खिलाफ 138 एनआई एक्ट के तहत चेक बाउंस का परिवाद कायम करा दिया। कोर्ट द्वारा जारी (cheque bounce validity period) समन आदेश को याची ने हाईकोर्ट में चुनौती दी।
इलाहाबाद बैंक का इंडियन बैंक में 1 अप्रैल 2020 को विलय हुआ तथा इसके चेक 30 सितंबर 2021 तक मान्य थे। इसके बाद प्रस्तुत किया गया चेक यदि बैंक अमान्य करता है, तो चेक बाउंस का केस नहीं बनता है। कोर्ट ने कहा कि एन आई एक्ट की धारा 138 के अनुसार यदि (cheque bounce case solution) अमान्य चेक बैंक में प्रस्तुत करने पर बैंक द्वारा अस्वीकार किया जाता है तो धारा 138 का अपराध गठित नहीं होता है। कोर्ट ने कहा कि एनआई एक्ट के अनुसार जारी किया गया चेक वैध होना चाहिए, तभी उसके बाउंस होने पर अपराध गठित होता है।
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