शास्त्रीनगर स्थित सेंट्रल मार्केट ध्वस्त होगा। मार्केट में करीब डेढ़ हजार अवैध निर्माण पर बुलडोजर चलेगा। आवासीय भवनों में चल रहे शोरूम, दुकान और ऑफिस आदि के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने व्यापारियों को मंगलवार को बड़ा झटका दिया है।इससे व्यापारियों में अफरा-तफरी मच गई है। जिन अफसरों के समय में मार्केट बनी, उन पर भी कार्रवाई की तलवार लटक गई है। व्यापारियों ने भी कार्रवाई के विरोध में आरपार की लड़ाई का एलान कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रशासनिक देरी, समय बीतने या पैसे के निवेश के कारण कोई अवैध निर्माण वैध नहीं हो सकता। इससे सख्ती से निपटा जाएगा क्योंकि ऐसे मामलों में क्योंकि कोई भी उदारता बरतना गलत सहानुभूति दिखाने जैसी होगी।
सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश जेबी परदीवाला और आर. महादेवन की खंडपीठ ने मंगलवार को मामले में सुनवाई कर आदेश पारित किए। खंडपीठ ने अपने आदेश में आवासीय क्षेत्र में भू-उपयोग परिवर्तन कर हुए सभी अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। इसके लिए भवन स्वामियों को परिसर खाली करने के लिए तीन महीने का समय दिया जाएगा। इसके दो सप्ताह बाद आवास एवं विकास परिषद को अवैध निर्माणों को ध्वस्त करना होगा। इस कार्य में सभी प्राधिकारी सहयोग करेंगे अन्यथा कोर्ट की अवमानना के तहत कार्रवाई की जाएगी। कोर्ट ने इसके साथ ही आवास एवं विकास के उन सभी जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ भी आपराधिक एवं विभागीय कार्रवाई के आदेश दिए हैं जिनके कार्यकाल में ये सबकुछ होता रहा।
19 नवंबर को मांगी थी रिपोर्ट
दस साल बाद 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रखते हुए आवास विकास परिषद से 499 भवनों की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी, जिसे तैयार करके परिषद ने कोर्ट में दाखिल कर दिया था। इस मामले में आवास एवं विकास परिषद के अधिशासी अभियंता आफताब अहमद ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार कार्रवाई अमल में लाई जाएगी।
ये है प्रकरण
सेंट्रल मार्केट के 661/6 प्लाट पर बनी जिन 24 दुकानों को गिराने के हाईकोर्ट ने आदेश किए थे, ये प्लॉट आज भी आवास विकास परिषद के रिकॉर्ड में काजीपुर के वीर सिंह के नाम हैं, जबकि 1992 से लेकर 1995 तक इस प्लॉट में बनी तमाम दुकानों को व्यापारियों को विक्रय कर दिया गया था। व्यापारियों ने इस भवन को अपने नाम नहीं कराया।
आवास विकास सिविल कोर्ट से लेकर हाईकोर्ट तक वीर सिंह को ही प्रॉपर्टी का मालिक मानते हुए पार्टी बनाती रही है। हाईकोर्ट के पांच दिसंबर 2014 के आदेश के खिलाफ व्यापारियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिस पर स्टे मिल गया था। लेकिन 10 साल बाद 19 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रखते हुए आवास विकास परिषद से 499 भवनों की स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी, जिसे तैयार करके परिषद ने कोर्ट में दाखिल कर दिया था। व्यापारियों में सुप्रीम कोर्ट के आदेश से खलबली मच गई है।
पीठ ने कहा, कानूनों के तहत अपने दायित्वों को पूरा करने में संबंधित अधिकारियों की ओर से देरी, प्रशासनिक विफलता, नियामकीय अक्षमता, निर्माण और निवेश की लागत, प्राधिकारियों की ओर से लापरवाही और ढिलाई बरतने आदि को अवैध निर्माण के बचाव में ढाल के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
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