बिहार की सियासत एक बार फिर से गरम हो गई है. बीजेपी नेता अश्विनी चौबे के बयान पर सियासी नोक-झोक चल ही रही थी कि लालू यादव ने मोदी सरकार को लेकर बड़ी भविष्यवाणी कर दी. लालू यादव ने मोदी सरकार के गिरने का समय भी तय कर दिया.
लालू यादव की इस भविष्यवाणी को जेडीयू के मुखिया और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जोड़कर देखा जा रहा है. इसलिए क्योंकि केंद्र की मौजूदा एनडीए सरकार में जेडीयू की अहम भूमिका है. इस बार की मोदी सरकार में टीडीपी और जेडीयू दो बड़े पिलर हैं. इस बार के चुनाव में चंद्रबाबू नायडू की टीडीपी को 16 सीटों पर जीत मिली है. दूसरी ओर नीतीश कुमार की जेडीयू को 12 सीटों पर जीत मिली है, जबकि को 240 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है. अब इन दो बड़े पिलरों में सबकी नजर नीतीश कुमार पर टिकी है. इसलिए क्योंकि उनका पाला बदलने का अपना रिकॉर्ड है.
अश्विनी चौबे और बिहार को स्पेशल राज्य का दर्जा
बिहार में अश्विनी चौबे के बयान के साथ-साथ एक बिहार को स्पेशल राज्य के दर्जे की बात भी सियासी सतह पर तैर रही है. दिल्ली में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में इसे लेकर एक प्रस्ताव भी पास हो चुका है. गाहे बगाहे चिराग पासवान भी कह चुके हैं कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा मिलना चाहिए. बिहार की जनता भी यही चाहती है. जानकारों की मानें तो लालू यादव इसी इंतजार में बैठे हैं. 23 जुलाई को मोदी सरकार आम बजट पेश करने वाली है. बजट में संभव है कि बिहार के लिए सरकार कुछ बड़ा ऐलान कर दे. अगर ऐलान हुआ तो ठीक वरना विपक्षियों को एक बड़ा मुद्दा मिल जाएगा.
लालू के भविष्यवाणी के क्या है मायने?
सियासी जानकारों की मानें तो लालू यादव को लगता है कि बजट में अगर मोदी सरकार बिहार को लेकर बड़ा ऐलान नहीं करती है तो एनडीए में खपटप की स्थिति पैदा हो सकती है. इसके लिए सबसे पहले जेडीयू ही आवाज उठाएगी. बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव भी है. ऐसे में जेडीयू चाहेगी कि अगर बिहार को स्पेशल राज्य का दर्ज मिलता है तो चुनाव में उसे सियासी फायदा मिल सकता है. अगर ऐसा नहीं हुआ औरजेडीयू के भीतर आवाज उठती है उसका सीधा असर मोदी सरकार पर पड़ेगा. इसलिए यह कहना गलत हो सकता है कि लालू यादव ने हवा में तीर छोड़ा है.
बीजेपी से खटपट का पहले भी लाभ ले चुके हैं लालू यादव
सियासी समीकरण सेट करने में माहिर लालू यादव पहले भी बीजेपी और जेडीयू के बीच खटपट का लाभ ले चुके हैं. बिहार में नीतीश कुमार ने जब-जब बीजेपी का साथ छोड़ा है तो उसका सीधा फायदा लालू यादव और उनकी पार्टी आरजेडी को मिला है. नीतीश कुमार का बीजेपी से पहली बार मोहभंग 2013 में हुआ. 2014 में नीतीश कुमार लालू यादव के साथ हो गए. 2015 का चुनाव नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ मिलकर लड़ा.
बिहार में 2015 में हुए विधानसभा में जनता ने जेडीयू-आरजेडी के गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिया. नीतीश कुमार एक बार फिर से मुख्यमंत्री बने. करीब दो साल तक सरकार भी चलाया, लेकिन 2017 में नीतीश कुमार का मन एक फिर से बदला. नीतीश कुमार गठबंधन से अलग होकर एनडीए में शामिल हो गए. एनडीए के साथ आने के बाद भी वो मुख्यमंत्री बने रहे. 2019 का लोकसभा चुनाव भी साथ लड़ा. इस बार जेडीयू को 16 सीटें मिलीं.
2022 और 2024 में भी नीतीश बदल चुके हैं पाला
इसके बाद 2020 में बिहार में विधानसभा चुनाव भी हुए. चुनाव में सत्ताधारी पार्टी जेडीयू को मात्र 43 सीट मिले. वहीं, बीजेपी को 74 सीटों पर जीत मिली थी जबकि आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. बीजेपी के सहयोग से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बन गए. 2022 में नीतीश कुमार का मन एक बार फिर से बदल गया. नीतीश कुमार का बीजेपी से मोहभंग हुआ और वो लालू के पाले में चले गए.
पहले से फिराक में बैठे लालू यादव ने नीतीश कुमार को हाथों हाथ लिया और राज्य में नई सरकार बन गई. सीएम की गद्दी नीतीश कुमार के पास ही रही जबकि तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम बन गए. 2024 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार गठबंधन से नाराज हुए और एनडीए के साथ हो लिए हैं.
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