लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश के अयोध्या से सबसे तगड़ा झटका लगा है, जहां से समाजवादी पार्टी के दलित प्रत्याशी अवधेश प्रसाद ने भाजपा के दो बार के सांसद रहे लल्लू सिंह को बुरी तरह से पटखनी दे दी।
उसके बाद से भाजपा न केवल यूपी बल्कि पूरे देश में यह नारा प्रचारित कर रही थी कि 'देश की जनता संसद में उसको चुनकर लाएगी, जो राम को लाये हैं'। भाजपा की ओर लगाये जा रहे इस नारे का मंतव्य सीधे-सीधे नरेंद्र मोदी से था लेकिन अयोध्या की जनता ने भाजपा के अरमानों पर पानी फेरते हुए उसके प्रत्याशी लल्लू सिंह को चुनावी अखाड़े में औंधे मुह चित कर दिया है।
समाचार वेबसाइट इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार 4 जून को नौ बार के विधायक और सपा के संस्थापक सदस्य अवेधश प्रसाद ने भाजपा के दिग्गज नेता और दो बार के सांसद रहे लल्लू सिंह को हराया तो किसी को भरोसा नहीं हुआ। अवधेश प्रसाद, जो पासी समुदाय से हैं, सामान्य निर्वाचन क्षेत्र से जीतने वाले एकमात्र दलित नेता हैं।
हालांकि वो खुद को दलित नेता के रूप में पहचानना पसंद नहीं करते हैं। उनका मानना है कि वो सभी वर्गों और समुदायों का प्रतिनिधि हैं, फिलहाल प्रसाद अखिलेश यादव की सपा का दलित चेहरा हैं।
अयोध्या से सपा के अवधेश प्रसाद की जीतना भारत में इसलिए चर्चा का विषय है क्योंकि अयोध्या, जहां राम मंदिर स्थित है। वह फैजाबाद लोकसभा सीट का हिस्सा है और भाजपा के हमेशा से सेफ सीट रही है।
अवधेश प्रसाद ने जीत के बाद भाजपा को आड़े हाथों लेते हुए कहा, "भाजपा देश में झूठ फैला रही थी, कह रही थी, 'हम राम को लाए हैं'। जबकि हकीकत तो यह है कि उन्होंने राम के नाम पर देश को धोखा दिया, राम के नाम पर कारोबार किया, राम के नाम पर महंगाई बढ़ने दी, राम के नाम पर बेरोजगारी पैदा की, राम के नाम पर गरीबों और किसानों को उजाड़ा है। भाजपा ने राम की मर्यादा को नष्ट करने का काम किया है और लोग इसे समझ गए हैं।"
यह पूछे जाने पर कि उनकी जीत में सबसे बड़ी भूमिका किस चीज ने निभाई, प्रसाद ने कहा, "यह एक ऐसा चुनाव था, जिसे जनता ने अपने हाथों में ले लिया था। सभी को मुझ पर भरोसा था और मेरे सामने जाति का सवाल नहीं खड़ा हुआ। लल्लू सिंह ने कहा कि संविधान बदलने के लिए बीजेपी को 400 सीटें चाहिए। उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए था। लोगों को यह पसंद नहीं आया।''
अवधेश प्रसाद आपातकाल के दौरान आपातकाल विरोधी संघर्ष समिति के फैजाबाद जिले के सह-संयोजक थे और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में रहते हुए उनकी मां का निधन हो गया और उन्हें अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए पैरोल नहीं मिला था।
इस घटना को याद करते हुए प्रसाद ने कहा, "मुझे जीवन में एकमात्र अफसोस इस बात का है कि मैं अपनी माँ को उनके अंतिम क्षणों में नहीं देख सका। वह आपातकाल के दौरा था और मैं उस समय मैं जेल में था। उनका पार्थिव शरीर पांच दिनों तक रखा रहा लेकिन मैं अम्मा के अंतिम दर्शन नहीं कर सका। जब मैं जेल में था तो मेरी मां मुझसे मिलने आईं। उस समय वह बहुत खुश थी। वह इतनी खुश थी कि जब वह गांव लौटी तो लोगों ने पूछा कि क्या मुझे रिहा कर दिया गया है और उसने जवाब दिया था, 'वह देश के लिए जेल में है।''
आपातकाल के बाद प्रसाद 1981 में लोक दल और जनता पार्टी दोनों के महासचिव, अपने पिता के अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो सके क्योंकि वह लोकसभा उपचुनाव के दौरान लोक दल उम्मीदवार शरद यादव के गिनती एजेंट के रूप में अमेठी में थे। जहां से कांग्रेस के उम्मीदवार राजीव गांधी थे।
उन्होंने बताया कि चौधरी चरण सिंह ने उन्हें अपनी कार में बैठाया और कहा, "अवधेश जी, चुनाव खत्म होने के बाद ही हम वापस जा सकते हैं। मैं काउंटिंग एजेंट था। जब मेरे पिता की मृत्यु की खबर आई तो मैं दुविधा में था कि उन्हें आखिरी बार देखने जाऊं या अपने राजनीतिक पिता चौधरी चरण सिंह को सुनने जाऊं। मैंने चरण सिंह के आदेशों का पालन करना चुना और 14 दिनों के बाद घर गया।"
अवधेश प्रसाद ने कहा कि जैसे ही पार्टी में बिखराव हुआ, मैंने मुलायम सिंह के साथ मिलकर 1992 में सपा की स्थापना की। पार्टी ने मुझे राष्ट्रीय सचिव और केंद्रीय संसदीय बोर्ड का सदस्य भी नियुक्त किया।
सपा में सबसे बड़े दलित नेता अवधेश प्रसाद ने कहा, "यह मेरी जीत नहीं है, यह अयोध्या के महान लोगों की जीत है। अवधेश प्रसाद इसे अपनी जीत मानेंगे जब वह अपने वादे पर खरे उतरेंगे।"
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