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बुधवार, 22 मई 2024

फलस्तीन को इन तीन देशों से मान्यता मिलने का क्या है मतलब, फैसले से इजरायल क्यों हुआ बेचैन?


 पी, बार्सिलोना। इजरायल ने फलस्तीन पर दशकों से कब्जा कर रखा है। इजरायल दशकों से फलस्तीन की जमीन को अपना मानता है। इस वजह से इजरायल हमेशा फलस्तीन को अपने निशाने पर रखता है। इजरायल और फलस्तीन के बीच का संघर्ष ब्रिटिश काल से चल रहा है और यह जंग समय के साथ गहराता ही गया।

इस जंग का बस एक ही समाधान माना गया जो सिर्फ दो-राज्य समाधान है।

फलस्तीन खुद को इजरायल से अलग करना चाहता है। फलस्तीन को स्वतंत्र देश घोषित करने के लिए स्पेन, आयरलैंड और नॉर्वे आगे आया है। यह तीनों ही यूरोपीय देश फलस्तीन को 28 मई को स्वतंत्र देश की मान्यता देंगे। यह कदम इजरायल द्वारा जारी जंग और इजरायल के हमले के बाद गाजा पट्टी में नागरिकों की मौत और मानवीय संकट पर अंतरराष्ट्रीय आक्रोश के बीच आया है।

इजरायल लगातार फलस्‍तीन को मान्‍यता देने का विरोध कर रहा है लेकिन अब उसे यूरोप से बड़ा झटका लगा है। नॉर्वे के प्रधानमंत्री जोनस गार स्तूर ने बुधवार को कहा कि उनका देश फलस्तीन को एक देश के तौर पर औपचारिक रूप से मान्यता दे रहा है। उन्होंने कहा, 'अगर मान्यता नहीं दी गयी तो पश्चिम एशिया में शांति स्थापित नहीं हो सकती।'

आइए जानते हैं फलस्तीन के लिए यह नई यूरोपीय घोषणाएं कैसे और क्यों महत्वपूर्ण हो सकती हैं-

स्वतंत्र देश बनने से क्या फर्क पड़ेगा?

  • साल 1948 में संयुक्त राष्ट्र के जिस निर्णय से इजरायल का निर्माण हुआ, फलस्तीन को पड़ोसी देश के तौर पर परिकल्पना की गई थी, लेकिन लगभग 70 साल बाद भी फलस्तीनी क्षेत्रों पर इजरायल का नियंत्रण है। इस कारण से संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता को अस्वीकार किया गया है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और अन्य पश्चिमी देशों ने मध्य पूर्व के सबसे कठिन संघर्ष के समाधान के रूप में इजरायल के साथ मौजूद एक स्वतंत्र फलस्तीनी राज्य के विचार का समर्थन किया है। वे इस बात पर जोर देते हैं कि फलस्तीनी राज्य का दर्जा बातचीत के जरिए समाधान के हिस्से के रूप में होना चाहिए। वहीं इस मुद्दे पर 2009 के बाद से कोई ठोस बातचीत नहीं हुई है।
  • इस समर्थन से फलस्तीनियों की अंतरराष्ट्रीय स्थिति को आगे और ऊपर बढ़ाने में मदद करेगा। साथ ही इजरायल और फलस्तीन युद्ध को समाप्त करने के लिए बातचीत शुरू करने के लिए इजरायल पर अधिक दबाव डाला जा सकता है।
  • इसके अलावा, यह कदम यूरोपीय संसद के लिए 6 से 9 जून के चुनावों से पहले मध्य पूर्व के मुद्दे को अतिरिक्त प्रमुखता देगा।

अभी क्यों उठाया गया यह कदम?

  • हमास के साथ लड़ाई आठवें महीने तक पहुंचने के कारण इजरायल पर राजनयिक दबाव बढ़ गया है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने पूर्ण मतदान सदस्यता पर वोट के लिए बढ़ते अंतरराष्ट्रीय समर्थन के संकेत में फलस्तीन को नए "अधिकार और विशेषाधिकार" देने के लिए 11 मई को बड़े अंतर से मतदान किया। फलस्तीन प्राधिकरण को वर्तमान में पर्यवेक्षक (Observer) का दर्जा प्राप्त है।
  • स्पेन, आयरलैंड, माल्टा और स्लोवेनिया के नेताओं ने मार्च में कहा था कि वे युद्ध को समाप्त करने की दिशा में 'सकारात्मक योगदान' के रूप में फलस्तीन को देश के तौर पर मान्यता देने पर विचार कर रहे हैं।
  • स्पेन के प्रधानमंत्री पेड्रो सान्चेज़ ने बुधवार को कहा कि यह मान्यता किसी के खिलाफ नहीं है, यह इजरायली लोगों के खिलाफ नहीं है। यह शांति, न्याय और नैतिक स्थिरता के पक्ष में एक कदम है।

मान्यता मिलने के बाद आगे क्या?

  • दर्जनों देशों ने फलस्तीन को मान्यता दी है। वहीं, अब तक किसी भी प्रमुख पश्चिमी शक्ति ने ऐसा नहीं किया था और इससे यह स्पष्ट होता है कि इन तीन देशों के इस फैसले में काफी फर्क पड़ सकता है।
  • फलस्तीनियों के लिए इन देशों का समर्थन एक महत्वपूर्ण उपलब्धि होगी, जो मानते हैं कि यह उनके संघर्ष को अंतरराष्ट्रीय वैधता प्रदान करता है।
  • इस फैसले के बाद भी तत्काल कुछ ज़मीनी स्तर पर परिवर्तन होने की संभावना कम ही है। जहां इजरायल और फलस्तीन के बीच शांति वार्ता रुकी हुई है। वहीं, इजरायल की कट्टरपंथी सरकार ने फलस्तीन को देश के तौर पर मान्यता मिलने के खिलाफ कमर कस ली है।

इजरायल ने इस फैसले पर क्या दी प्रतिक्रिया?

  • इजरायल ने बुधवार को आयरलैंड, नॉर्वे और स्पेन से अपने राजदूतों को वापस बुलाकर अपनी त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त की। इजरायली सरकार फलस्तीनी स्वतंत्रता की बात की निंदा करते हुए इसे दक्षिणी इजरायल पर 7 अक्टूबर को हमास के हमले का 'इनाम' बताती है, जिसमें 1,200 लोग मारे गए थे और 250 से अधिक अन्य लोगों का अपहरण हुआ था। यह फलस्तीनियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैध बनाने के किसी भी कदम को खारिज करता है।
  • इजरायल का कहना है कि तीन यूरोपीय देशों द्वारा बुधवार को उठाए गए कदम फलस्तीनी स्थिति को सख्त कर देंगे और बातचीत की प्रक्रिया को कमजोर बना देंगे।
  • इजरायल ने जोर देते हुए कहा कि सभी मुद्दों को बातचीत के माध्यम से हल किया जाना चाहिए। इजरायल अक्सर अपने हितों के खिलाफ जाने वाले अन्य देशों के फैसलों का जवाब उन देशों से अपने राजदूतों को बुलाकर देता है और नकदी संकट से जूझ रहे फलस्तीनी प्राधिकरण को कर हस्तांतरण को रोकने जैसे उपायों के माध्यम से फलस्तीनियों को दंडित भी करता है।

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