लोकसभा चुनावों में बिछाई जा रही बिसात में ओवैसी उत्तर प्रदेश में बड़ा खेल कर सकते हैं। दअरसल ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुसलमीन (एआईएमआईएम) अपने प्रत्याशी लड़ाने की योजना बना रही है।
पार्टी से जुड़े नेताओं के मुताबिक जिन पांच सीटों की मांग की है उसमें मुस्लिम बाहुल्य सीटें शामिल हैं। सियासी जानकारों का मानना है कि ओवैसी की पार्टी चुनाव भले न जीते लेकिन सपा और कांग्रेस का सियासी खेल तो बिगाड़ ही सकती है। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव में भी ओवैसी ने अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे थे। लेकिन एक भी सीट नहीं जीत सकी थी।
एआईएमआईएम का यह है मास्टर प्लान
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने की बात कर गठबंधन को डिस्टर्ब कर दिया है। ओवैसी की पार्टी ने उत्तर प्रदेश की जिन पांच सीटों के लिए टिकट की मांग की है। दरअसल उससे मुस्लिम समुदाय में एक बड़ा संदेश देने की बात कही जा रही है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन के नेता हसन रिजवी कहते हैं कि उनकी पार्टी ने पिछले साल भी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सियासत में ताल ठोंकी थी। वह कहते हैं उनकी पार्टी सीटें भले न जीत पाई हो लेकिन प्रदेश के मुसलमानों के दिल में जगह जरूर बना ली थी। अब जब लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं तो उनकी पार्टी अवाम की और लोकतंत्र के लिए सियासी मैदान में तो उतरेगी ही।
ओवैसी बिगाड़ सकते हैं विपक्षी गठबंधन का गणित- ओम
राजनीतिक जानकार ओम प्रकाश मिश्रा कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनावों में ओवैसी की पार्टी 95 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। लेकिन किसी भी सीट पर वह जीत नहीं सकी। मिश्रा मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में जिसमें पश्चिम उत्तर प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा आता है वहां से ओवैसी की पार्टी ताल ठोक सकती है। जानकारी के मुताबिक ओवैसी की पार्टी में सिर्फ पश्चिम में नहीं बल्कि पूर्वांचल में भी मुस्लिम बाहुल्य इलाके में खासतौर से समाजवादी पार्टी के गढ़ में सेंध लगाने के लिए अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है। मिश्रा कहते हैं कि ओवैसी की पार्टी भले चुनाव न जीते लेकिन सियासी मैदान में अगर वह उतरते हैं तो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का सियासी गणित बिगाड़ सकते हैं। यही वजह है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन के चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट पर सियासी हलचल मच रही है।
एम फैक्टर को देखते हुए सक्रिय हुई ओवैसी की पार्टी
वरिष्ठ पत्रकार नासिर सिद्दीकी कहते हैं कि जो परिस्थितियां उत्तर प्रदेश में बनी है उसमें असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों के बड़े हिमायती बनकर सामने आने की फिराक में है। उनका मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा ने एक साथ मिलकर मुसलमानों के एक बड़े वोट बैंक में हिस्सेदारी ली थी। क्योंकि इस लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने किसी के साथ गठबंधन नहीं किया है इसलिए ओवैसी की इस चुनाव में मुसलमानों के वोटों पर नजर लाजिमी है। उनका मानना है कि उत्तर प्रदेश में तकरीबन 19 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों और लोकसभा क्षेत्र को मिलाकर यह आबादी औसतन 30 फीसदी के करीब हो जाती हैं। वह कहते हैं कि 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली उत्तर प्रदेश में 22 लोकसभा सीटें आती हैं। 'एम' फैक्टर के इसी सियासी गणित को देखते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी को उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए सक्रिय कर दिया है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो ओवैसी की ओर से उत्तर प्रदेश में गठबंधन से पांच सीटों की मांग की गई है। अगर यह मांग नहीं मानी जाती है तो उस दशा में ओवैसी की पार्टी उत्तर प्रदेश में जोर आजमाइश कर सकती है। जिसमें पार्टी न सिर्फ पश्चिम बल्कि पूर्वांचल में भी मुस्लिमों के गढ़ में अपने प्रत्याशी उतार सकती है। ओवैसी की पार्टी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने की तैयारियों पर भाजपा का कहना है कि सपा और कांग्रेस तो वैसे भी चुनाव मैदान में कहीं नहीं है। पार्टी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि जो पार्टियां जातियों का आधार बनाकर सियासी मैदान में उतर रहीं हैं वो विकास की बात तो कर ही नहीं सकती। जो विकास से दूर जातिगत समीकरण का आधार बनाकर मैदान में उतरेगी जनता उसको तो नकार ही देगी।
एआईएमआईएम का यह है मास्टर प्लान
असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने की बात कर गठबंधन को डिस्टर्ब कर दिया है। ओवैसी की पार्टी ने उत्तर प्रदेश की जिन पांच सीटों के लिए टिकट की मांग की है। दरअसल उससे मुस्लिम समुदाय में एक बड़ा संदेश देने की बात कही जा रही है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन के नेता हसन रिजवी कहते हैं कि उनकी पार्टी ने पिछले साल भी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सियासत में ताल ठोंकी थी। वह कहते हैं उनकी पार्टी सीटें भले न जीत पाई हो लेकिन प्रदेश के मुसलमानों के दिल में जगह जरूर बना ली थी। अब जब लोकसभा के चुनाव हो रहे हैं तो उनकी पार्टी अवाम की और लोकतंत्र के लिए सियासी मैदान में तो उतरेगी ही।
ओवैसी बिगाड़ सकते हैं विपक्षी गठबंधन का गणित- ओम
राजनीतिक जानकार ओम प्रकाश मिश्रा कहते हैं कि 2022 के विधानसभा चुनावों में ओवैसी की पार्टी 95 सीटों पर चुनाव लड़ी थी। लेकिन किसी भी सीट पर वह जीत नहीं सकी। मिश्रा मानते हैं कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र में जिसमें पश्चिम उत्तर प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा आता है वहां से ओवैसी की पार्टी ताल ठोक सकती है। जानकारी के मुताबिक ओवैसी की पार्टी में सिर्फ पश्चिम में नहीं बल्कि पूर्वांचल में भी मुस्लिम बाहुल्य इलाके में खासतौर से समाजवादी पार्टी के गढ़ में सेंध लगाने के लिए अपने प्रत्याशी उतारने की तैयारी की है। मिश्रा कहते हैं कि ओवैसी की पार्टी भले चुनाव न जीते लेकिन सियासी मैदान में अगर वह उतरते हैं तो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का सियासी गणित बिगाड़ सकते हैं। यही वजह है कि ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन के चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट पर सियासी हलचल मच रही है।
एम फैक्टर को देखते हुए सक्रिय हुई ओवैसी की पार्टी
वरिष्ठ पत्रकार नासिर सिद्दीकी कहते हैं कि जो परिस्थितियां उत्तर प्रदेश में बनी है उसमें असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों के बड़े हिमायती बनकर सामने आने की फिराक में है। उनका मानना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा ने एक साथ मिलकर मुसलमानों के एक बड़े वोट बैंक में हिस्सेदारी ली थी। क्योंकि इस लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने किसी के साथ गठबंधन नहीं किया है इसलिए ओवैसी की इस चुनाव में मुसलमानों के वोटों पर नजर लाजिमी है। उनका मानना है कि उत्तर प्रदेश में तकरीबन 19 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों और लोकसभा क्षेत्र को मिलाकर यह आबादी औसतन 30 फीसदी के करीब हो जाती हैं। वह कहते हैं कि 30 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी वाली उत्तर प्रदेश में 22 लोकसभा सीटें आती हैं। 'एम' फैक्टर के इसी सियासी गणित को देखते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने अपनी पार्टी को उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए सक्रिय कर दिया है।
राजनीतिक जानकारों की मानें तो ओवैसी की ओर से उत्तर प्रदेश में गठबंधन से पांच सीटों की मांग की गई है। अगर यह मांग नहीं मानी जाती है तो उस दशा में ओवैसी की पार्टी उत्तर प्रदेश में जोर आजमाइश कर सकती है। जिसमें पार्टी न सिर्फ पश्चिम बल्कि पूर्वांचल में भी मुस्लिमों के गढ़ में अपने प्रत्याशी उतार सकती है। ओवैसी की पार्टी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने की तैयारियों पर भाजपा का कहना है कि सपा और कांग्रेस तो वैसे भी चुनाव मैदान में कहीं नहीं है। पार्टी के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी कहते हैं कि जो पार्टियां जातियों का आधार बनाकर सियासी मैदान में उतर रहीं हैं वो विकास की बात तो कर ही नहीं सकती। जो विकास से दूर जातिगत समीकरण का आधार बनाकर मैदान में उतरेगी जनता उसको तो नकार ही देगी।
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