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शुक्रवार, 9 फ़रवरी 2024

पाकिस्तान चुनावः सत्ता से बेदखल होकर बार-बार कैसे लौट आते हैं नवाज़ शरीफ़

 पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ स्वघोषित निर्वासन से पिछले साल ही देश लौटे हैं.

आठ फ़रवरी को हुए चुनाव के बाद वो देश के अगले प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में शरीफ़ को सबसे आगे बताया जा रहा था लेकिन शुरुआती नतीजे उनके पक्ष में नहीं दिख रहे हैं.

नवाज़ शरीफ़ पिछले तीन दशकों के दौरान भले ही पाकिस्तान की राजनीति पर हावी रहे हों लेकिन बावजूद इसके कम लोग ही सत्ता के शीर्ष पर उनकी वापसी के कयास लगा पाए होंगे.

उनका पिछला कार्यकाल भ्रष्टाचार के आरोप में दोषी क़रार दिए जाने के बाद समाप्त हो गया था और उससे पिछली बार सैन्य तख़्तापलट में उन्हें सत्ता से हटा दिया गया था.

फिर भी नवाज़ शरीफ़ एक और सफल वापसी करते हुए दिखाई दे रहे हैं, जो एक ऐसे व्यक्ति के लिए किसी नाटकीय बदलाव से कम नहीं है, जिसे अब तक पाकिस्तान की ताक़तवर सेना के प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखा जाता रहा है.

हालांकि चुनाव से ठीक पहले बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा है कि वो पाकिस्तान की सेना के विरोधी नहीं है.

विल्सन सेंटर थिंक टैंक के दक्षिण एशिया मामलों के निदेशक माइकल कूगलमैन कहते हैं, "नवाज़ शरीफ़ अगला प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में इसलिए नहीं है कि वो लोकप्रिय नेता हैं. निश्चित रूप से लोकप्रिय नहीं हैं- बल्कि उन्होंने अपने पत्ते सही तरीक़े से खेले हैं."

नवाज़ शरीफ़ के कट्टर प्रतिद्वंद्वी और सेना के प्रिय रहे पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान इस समय जेल में हैं. इमरान ख़ान की लोकप्रिय तहरीक़-ए-इंसाफ़ पार्टी पर देश भर में प्रतिबंध लगाए गए हैं.

नवाज़ शरीफ़ की कहानी क्या है?

ये कहा जा सकता है कि नवाज़ शरीफ़ वापसी के बादशाह हैं. वो निश्चित रूप से पहले भी ऐसा कर चुके हैं.

दूसरे कार्यकाल में 1999 में उन्हें सैन्य तख़्तापलट में सत्ता से हटा दिया गया था लेकिन 2013 के आम चुनावों में उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में फिर से वापसी की. एक शानदार जीत के बाद वो रिकॉर्ड तीसरी बार प्रधानमंत्री बने थे.

ये देश के लिए एक ऐतिहासिक पल भी था. 1947 में पाकिस्तान के स्वतंत्र राष्ट्र बनने के बाद से पहली बार हुआ था जब एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार के बाद दूसरी चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार सत्ता में आई हो.

लेकिन नवाज़ शरीफ़ का पिछला कार्यकाल उतार-चढ़ाव भरा रहा. शुरुआत में विपक्ष ने छह महीनों तक राजधानी इस्लामाबाद को घेरे रखा.

ये घेराव भ्रष्टाचार के आरोपों में अदालत की जांच पर जाकर समाप्त हुआ और अंततः मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहाँ 2017 में नवाज़ शरीफ़ को अयोग्य घोषित कर दिया गया.

इसके कुछ दिन बाद ही नवाज़ शरीफ़ ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया.

जुलाई 2018 में पाकिस्तान की एक अदालत ने नवाज़ शरीफ़ को भ्रष्टाचार का दोषी पाया और उन्हें दस साल की सज़ा सुनाई गई. लेकिन दो महीने बाद ही अदालत के अंतिम फ़ैसला आने तक सज़ा को निलंबित करने के बाद उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया.

लेकिन दिसंबर 2018 में एक बार फिर उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में जेल भेज दिया गया.

इस बार उन्हें सात साल की सज़ा हुई. ये भ्रष्टाचार का मामला सऊदी अरब में उनके परिवार की स्टील मिल के मालिकाना हक़ से जुड़ा था.

इसके बाद नवाज़ शरीफ़ ने अपनी सेहत का हवाला देते हुए ब्रिटेन में इलाज कराने के लिए ज़मानत मांगी.

2019 में नवाज़ शरीफ़ को इलाज कराने के लिए ज़मानत मिल गई और वो लंदन चले गए.

यहाँ चार साल तक वो एक लग्ज़री फ्लैट में निर्वासन में रहे. नवाज़ शरीफ़ पिछले साल अक्तूबर में पाकिस्तान लौटे.

भले ही वो देश से बाहर रहे, लेकिन अपनी ग़ैर-मौजूदगी के बावजूद वो देश के अहम राजनेता बने रहे. पाकिस्तान की राजनीति में वो पिछले 35 सालों से सक्रिय रहे हैं.

शुरुआती दौर

नवाज़ शरीफ़ का जन्म लाहौर के एक प्रमुख औद्योगिक घराने में साल 1949 में हुआ था. शहरी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने राजनीति में अपने शुरुआती क़दम रखे.

पाकिस्तान पर 1977 से 1988 तक शासन करने वाले जनरल ज़िया उल हक़ के क़रीबी रहे शरीफ़ को पाकिस्तान के बाहर 1998 में देश के पहले परमाणु परीक्षण का आदेश देने के लिए जाना जाता है.

नवाज़ शरीफ़ राष्ट्रीय स्तर पर पहली बार जनरल ज़िया उल हक़ के मार्शल लॉ लागू करने के शुरुआती दिनों में चर्चा में आए. वो पहले पंजाब प्रांत के वित्त मंत्री बने फिर 1985 से 1990 तक मुख्यमंत्री रहे.

विश्लेषक याद करते हैं कि उस दौर में नवाज़ शरीफ़ ख़ास तौर पर प्रभावशाली राजनेता नहीं थे, हालांकि वो ये भी मानते हैं कि इसके बावजूद शरीफ़ ने अपने आप को एक क़ाबिल प्रशासक के रूप में पेश किया.

नवाज़ शरीफ़ पहली बार साल 1990 में प्रधानमंत्री बने लेकिन 1993 में उन्हें निलंबित कर दिया गया. तब विपक्ष की नेता रहीं बेनज़ीर भुट्टो के लिए सरकार बनाने का रास्ता साफ़ हुआ और वे देश की प्रधानमंत्री बनीं.

नवाज़ शरीफ़ पाकिस्तान के प्रमुख औद्योगिक समूह इत्तेफ़ाक ग्रुप के मालिक हैं और देश के सबसे अमीर लोगों में गिने जाते हैं. उनका समूह स्टील का कारोबार करता है.

सैन्य तख़्तापलट

नवाज़ शरीफ़ 1997 में आसानी से बहुमत प्राप्त करके फिर से देश के प्रधानमंत्री बने. इस कार्यकाल में नवाज़ शरीफ़ एक शक्तिशाली नेता के रूप में सामने आए. सेना को छोड़कर देश के बाक़ी संस्थानों पर उनकी पकड़ दिखी.

फिर, संसद में विपक्ष से निराश होकर, उन्होंने एक संवैधानिक संशोधन पारित करने की कोशिश की, जिससे उन्हें शरिया क़ानून लागू करने में सक्षम बनाया जा सके.

उन्होंने अन्य सत्ता केंद्रों का भी सामना किया- उनके समर्थकों की भीड़ ने सुप्रीम कोर्ट में तोड़फोड़ की और उन्होंने पाकिस्तान की शक्तिशाली सेना पर लगाम लगाने की कोशिश की.

लेकिन साल 1999 में सेना के शक्तिशाली जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ ने नवाज़ शरीफ़ की सरकार का तख़्तापलट कर दिया. इससे एक बार फिर ये साबित हुआ कि देश में सेना के प्रभाव कम करने की कोशिशों का क्या अंजाम हो सकता है.

शरीफ़ को गिरफ़्तार कर लिया गया, उन्हें जेल भेज दिया गया और अंततः आतंकवाद और हाइजैकिंग के आरोप में उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुना दी गई. उन्हें भ्रष्टाचार के आरोप में भी दोषी क़रार दिया गया और उन पर राजनीतिक गतिविधियों से आजीवन प्रतिबंध लगा दिया गया.

लेकिन, कथित रूप से सऊदी अरब की मध्यस्थता में हुए एक समझौते के बाद उन्हें और उनके परिवार के लोगों को जेल नहीं भेजा गया.

शरीफ़ और उनके परिवार के 40 लोगों को सऊदी अरब निर्वासित कर दिया गया. उन्हें दस साल तक सऊदी में निर्वासित जीवन बिताना था.

उस समय इस्लामाबाद में बीबीसी की संवाददाता रहीं ओवेन बेनेट जोंस याद करती हैं कि जब शरीफ़ को सत्ता से हटाया गया था तब बहुत से पाकिस्तानी लोगों ने राहत की सांस ली थी और शरीफ़ को एक भ्रष्ट, अक्षम और सत्ता का भूखा राजनेता बताया गया था.

भ्रष्टाचार के आरोप

राजनीतिक बीहड़ में शरीफ़ का पहला वनवास साल 2007 में सेना के साथ हुए एक समझौते के बाद समाप्त हुआ.

नवाज़ शरीफ़ वापस पाकिस्तान लौटे और विपक्ष में रहते हुए सब्र के साथ अपना वक़्त काटते रहे.

2008 के चुनाव में उनकी पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ पार्टी को लगभग एक चौथाई सीटें हासिल हुईं.

हालांकि, ये अनुमान लगाए जा रहे थे कि 2013 का चुनाव वो जीत लेंगे, लेकिन जिस बहुमत के साथ उन्होंने सत्ता में वापसी की उससे राजनीतिक विश्लेषक भी हैरान रह गए.

पाकिस्तान के पूर्व क्रिकेट कप्तान इमरान ख़ान की पार्टी ने पूरे जोश के साथ ये चुनाव लड़ा था लेकिन इमरान नवाज़ शरीफ़ को कोई ख़ास टक्कर नहीं दे सके थे.

इमरान ख़ान की पार्टी ने राजनीतिक रूप से अहम पंजाब प्रांत में नवाज़ की पार्टी को इन चुनावों में टक्कर दी थी.

हालांकि, साल 2013 में सत्ता संभालते ही नवाज़ शरीफ़ को पाकिस्तान की पीटीआई पार्टी से कड़े जनवविरोध का सामना करना पड़ा.

पीटीआई ने उन पर चुनावों में धांधली के आरोप लगाए और पार्टी के कार्यकर्ताओं ने राजधानी इस्लामाबाद को घेर लिया.

ऐसे आरोप भी लगे कि राजधानी की घेराबंदी पाकिस्तान की कुख़्यात ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसएआई के कुछ शीर्ष अधिकारियों के इशारे पर की गई. ये घेराबंदी क़रीब छह महीनों तक चली.

विश्लेषक ये मानते हैं कि पाकिस्तान का सैन्य प्रतिष्ठान नवाज़ शरीफ़ पर भारत के साथ कारोबारी रिश्तों को और न बढ़ाने के लिए दबाव बनाना चाहता था.

पिछली सरकार के कार्यकाल के दौरान भारत और पाकिस्तान के कारोबारी रिश्तों को बेहतर करने की प्रक्रिया शुरू हुई थी.

अपने तीसरे कार्यकाल के दौरान नवाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तान को एशिया का टाइगर बनाने का वादा किया था.

उन्होंने नया इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित करने और भ्रष्टाचार को बर्दाश्त न करने की नीति पर चलने का वादा किया था.

लेकिन समस्याएं बढ़ती ही गईं और पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था की एकमात्र सुर्खी रहा चीन के निवेश वाला 56 अरब डॉलर का चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कारिडोर (सीपेक) भी विवादों में फँस गया.

पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कमज़ोर होती गई और अब तक इस प्रोजेक्ट के कुछ ही हिस्से पूरे हो सके हैं.

2016 में पनामा पेपर लीक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ के लिए नए ख़तरे लेकर आया. उन पर लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच सुप्रीम कोर्ट ने शुरू कर दी.

ये आरोप सेंट्रल लंदन के एक पॉश इलाक़े में उनके परिवार के अपार्टमेंट के स्वामित्व से जुड़े हुए थे.

इन संपत्तियों को ख़रीदने के लिए जिस पैसे का इस्तेमाल हुआ था उस पर सवाल उठे. मनी ट्रेल की जांच शुरू हुई और नवाज़ इसमें फंसते चले गए.

नवाज़ शरीफ़ ने सभी आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताते हुए ख़ारिज कर दिया. हालांकि 6 जुलाई 2018 को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें भ्रष्टाचार का दोषी क़रार दिया और उनकी ग़ैरमौजूदगी में उन्हें दस साल जेल की सज़ा सुना दी गई.

जब इस सज़ा का एलान हुआ, नवाज़ शरीफ़ लंदन में अपनी बीमार पत्नी के पास थे. शरीफ़ की बेटी मरियम नवाज़ और दामाद को भी सज़ा सुनाई गई.

और फिर आया मौका…

नवाज़ के प्रतिद्वंद्वी इमरान ख़ान देश पर शासन कर रहे थे और शरीफ़ लंदन में अपना समय काट रहे थे.

लेकिन इमरान ख़ान का शासन भी उथल-पुथल भरा रहा और सेना के साथ उनके रिश्ते ख़राब होते चले गए.

साल 2022 में अविश्वास प्रस्ताव के बाद इमरान ख़ान को सत्ता से हटा दिया गया और नवाज़ शरीफ़ की पार्टी के एक बार फिर से सत्ता में आने का रास्ता साफ़ हो गया.

नवाज़ शरीफ़ के छोटे भाई शाहबाज़ शरीफ़ ने इस बार पार्टी का कमान संभाली.

इमरान ख़ान के पतन के बाद से ही नवाज़ शरीफ़ ने अपनी राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ा दीं और सत्ता में आने के प्रयास में लग गए.

नवाज़ शरीफ़ जोर शोर के साथ अक्तूबर 2022 में पाकिस्तान वापस लौटे और उसके बाद से उनके ख़िलाफ़ चल रहे लगभग सभी मुक़दमे समाप्त हो गए हैं और क़ानूनी चुनौतियां ख़त्म हो गई हैं.

ये बिडंबना ही है कि जिस सेना ने नवाज़ शरीफ़ का तख़्तापलट किया था, इस बार उसने ही उनका स्वागत किया.

यदि नवाज़ शरीफ़ की पार्टी चुनाव जीत लेती है तो सत्ता में उनका लौटना लगभग तय माना जा रहा है.

ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान के सभी लोग शरीफ़ को पसंद ही करते हैं.

नवाज़ शरीफ़ और उनकी पार्टी के ख़िलाफ़ ख़ासी नाराज़गी है क्योंकि पाकिस्तान के लोग उन्हें देश की ख़राब हालत का ज़िम्मेदार मानते हैं.

भ्रष्टाचार के आरोपों से भी उनकी छवि दागदार रही है.

चैटम हाउस के एशिया पैसिफ़िक कार्यक्रम की एसोसिएट फैलो डॉ. फरज़ाना शेख़ कहती हैं, "वे चुनाव जीत रहे हैं लेकिन नवाज़ शरीफ़ की पार्टी के एक बार के रिकॉर्ड को छोड़ दें तो पाकिस्तान में कभी कोई पार्टी स्पष्ट बहुमत के साथ सत्ता में नहीं आई है."

"सभी संकेत उनके प्रधानमंत्री बनकर लौटने या फिर सबसे बड़ी पार्टी के नेता के रूप में उभरने के हैं. हालांकि अभी ये स्पष्ट नहीं है कि सदन में उन्हें किस तरह का बहुमत मिलता है."

क्या नवाज़ चौथी बार प्रधानमंत्री बनेंगे?

पाकिस्तान की राजनीति में ये उथल-पुथल भरा नाज़ुक वक़्त है और नवाज़ शरीफ़ ख़ुद को एक अनुभवी राजनेता के रूप में पेश कर रहे हैं. वे अपने तीन कार्यकालों का रिकॉर्ड दिखा रहे हैं. वे अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और पाकिस्तान को सही दिशा में ले जाने का वादा कर रहे हैं.

माइकल कूगलमैन कहते हैं, "शरीफ़ के समर्थक ये उम्मीद करते हैं कि उनका स्थिरता लाने का वादा, अनुभव और भरोसेमंद नेतृत्व उन्हें वोट दिलाएगा. वे उम्मीद कर रहे हैं कि सेना भी नवाज़ शरीफ़ को लेकर सहज होगी या कम से कम उनकी पार्टी से सहज होगी."

लेकिन विश्लेषक अब भी सावधान हैं. नवाज़ शरीफ़ को अभी कई चुनौतियों को पार करना हैं, सिर्फ़ पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ही संकट में नहीं हैं. आर्थिक संकट के लिए उनकी पार्टी को ही ज़िम्मेदार ठहराया जाता रहा है. ये आम धारणा भी है कि चुनाव निष्पक्ष नहीं होंगे क्योंकि मुख्य विपक्षी इमरान ख़ान जेल में हैं.

डॉ. शेख़ कहती हैं, "वे संघर्ष कर रहे हैं क्योंकि उनकी पार्टी जिसका नेतृत्व उनके भाई कर रहे हैं, पूर्व गठबंधन सरकार की वरिष्ठ सहयोगी है, सरकार को कई सख़्त आर्थिक नीतियां लागू करनी पड़ी हैं, जिनकी भारी क़ीमत चुकाई गई है."

शेख कहती हैं, "देश जिस संकट में घिरा है, भले ही उसके लिए न सही लेकिन देश की आर्थिक हालत के लिए नवाज़ शरीफ़ और उनकी पार्टी को ही ज़िम्मेदार माना जाता है. फिर पाकिस्तान में सेना भी है, जिसका पाकिस्तान के शासन में सबसे बड़ा दख़ल रहता है."

विदेश में रहते हुए, नवाज़ शरीफ़ ने कई बार सेना के ख़िलाफ़ खुलकर बयान दिए हैं. ख़ास तौर पर उन्होंने आईएसआई के एक पूर्व प्रमुख और पूर्व सेना प्रमुख को देश की राजनीतिक अस्थिरता के लिए ज़िम्मेदार ठहराया था. हालांकि इन जनरलों ने आरोपों को ख़ारिज किया था.

नवाज़ शरीफ़ ने देश की न्यायपालिका की भी सख़्त आलोचना की है और जजों पर मिलीभगत के आरोप लगाते हुए दावा किया है कि उन्हें फ़र्ज़ी मुक़दमों में फँसाया गया.

नवाज़ शरीफ़ का कहना है कि इसका नतीजा ये हुआ कि पाकिस्तान में लोकतंत्र कमज़ोर हुआ और इस वजह से देश का एक भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया.

पाकिस्तान की सेना ने कभी ये नहीं कहा कि वो नवाज़ शरीफ़ को पसंद करती है या फिर इमरान ख़ान को या देश के किसी अन्य राजनेता को.

पाकिस्तान की सेना का अधिकारिक बयान यही रहा है कि वह देश की राजनीति में दख़ल नहीं देती है.

हालांकि, विश्लेषक ये मानते हैं कि नवाज़ शरीफ़ ने पाकिस्तान वापसी को लेकर सेना के साथ समझौता किया होगा.

कूगलमैन कहते हैं, "ये एक तथ्य है कि पाकिस्तान लौटने के बाद से उन्हें बहुत अधिक क़ानूनी राहतें मिली हैं और इससे ये साबित होता है कि वो शक्तिशाली सेना के चहेते बन गए हैं. पाकिस्तान की न्यायपालिका पर सेना का भारी प्रभाव है."

वे कहते हैं कि शरीफ़ की सफलता की 'बड़ी बिडंबना' ये है कि भले ही इस वक़्त वे सेना के क़रीब नज़र आ रहे हों लेकिन वो हमेशा सेना से झगड़ा ही करते रहे हैं.

कूगलमैन कहते हैं, "अगर आप पाकिस्तान में एक राजनेता हैं और आपकी पीठ पर सेना का हाथ है तो आपकी चुनावी कामयाबी की संभावना अधिक होती है."

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