- दिल्ली दंगों के चार साल: सैकड़ों एफ़आईआर, हज़ारों गिरफ़्तारियाँ, लेकिन कितनों को मिला इंसाफ़ | सच्चाईयाँ न्यूज़

गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

दिल्ली दंगों के चार साल: सैकड़ों एफ़आईआर, हज़ारों गिरफ़्तारियाँ, लेकिन कितनों को मिला इंसाफ़

चार साल पहले दिल्ली के उत्तर-पूर्वी हिस्से में 23 से 26 फ़रवरी, 2020 के बीच दंगे हुए थे.

इन दंगों में 53 लोगों की जान गई थी. चार दिनों तक चले दंगों में जान-माल का भारी नुक़सान हुआ था.

कई लोगों के घर और दुकानों में आग लगा दी गई थी.

दिल्ली पुलिस के आँकड़े बताते हैं कि मरने वालों में 40 मुसलमान और 13 हिंदू थे.

लेकिन इन दंगों के पीड़ितों और उनके परिवार वालों की न्याय की लड़ाई आज भी जारी है.

बीबीसी हिंदी ने ऐसे ही कुछ परिवारों तक पहुँच कर ये जानने की कोशिश की कि उनकी लड़ाई कहाँ तक पहुँची है.

'पुलिस ने कहा बयान बदल दो'

इसके लिए हमने सबसे पहले उत्तर पूर्वी दिल्ली के कर्दमपुरी इलाक़े का रुख़ किया.

दंगों के दौरान कर्दमपुरी इलाक़े से एक वीडियो वायरल हुआ था.

इस वीडियो में पुलिस की वर्दी में नज़र आ रहे कुछ लोग पाँच लड़कों को डंडों से पीटते हुए नज़र आ रहे थे.

ये लोग उन लड़कों को 'जन गण मन' और 'वंदे मातरम' गाने के लिए कह रहे थे. ये वीडियो आज भी इंटरनेट पर मौजूद है.

दिल्ली दंगों के जिन मामलों की वजह से दिल्ली पुलिस की भूमिका पर सबसे ज़्यादा सवाल उठे हैं, उनमें से ये एक अहम मामला है.

वीडियो में नज़र आए पाँच लड़कों में एक फ़ैज़ान भी थे. फ़ैज़ान की 26 फ़रवरी, 2020 को मौत हो गई.

कर्दमपुरी के तंग इलाक़ों से होते हुए हम फ़ैज़ान के घर तक पहुँचे.

घर पर फ़ैज़ान की माँ क़िस्मतून थीं. घर के हालात दिखाते हुए क़िस्मतून ने हमें बताया कि फ़ैज़ान की कमाई से ही उनका घर चलता था.

वो हमें उस जगह ले गईं, जहाँ उनका दावा है कि उनके बेटे को पीटा गया था.

फ़ैज़ान की मौत कैसे हुई और उनका मामला कहाँ तक पहुँचा है, इस सवाल पर क़िस्मतून कहती हैं, ''चार साल हो गए हैं. अभी तक कुछ नहीं हुआ है. इसी सदमे में मेरी तबीयत ख़राब रहती है. एक दिन पुलिस वाले आए और कहने लगे बयान बदल दो.''

क़िस्मतून बताती हैं कि उस घटना के बाद पुलिस फ़ैज़ान को पहले अस्पताल लेकर गईं फिर एक रात वो ज्योति नगर थाने में रहा.

इसके बाद अगले दिन पुलिस ने उन्हें कहा कि वो अपना बेटा ले जाएँ. 26 फ़रवरी को फ़ैज़ान की मौत हो गई.

लेकिन पुलिस की ओर से कोर्ट में दिए दस्तावेज़ों के मुताबिक़, 'फ़ैज़ान के साथ कोई दुर्व्यवहार नहीं किया गया था, वो अपनी मर्ज़ी से थाने में रुके थे.'

चार साल बाद भी इस केस में पुलिस की जाँच अब तक पूरी नहीं हुई है.

बेटे को इंसाफ़ ना मिलता देख क़िस्मतून ने साल 2020 में दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया.

वो कहती हैं कि उनकी अब बस एक ही चाहत है कि उनके बेटे के गुनाहगारों को सज़ा होनी चाहिए.

दिल्ली हाई कोर्ट में क़िस्मतून का केस वकील वृंदा ग्रोवर लड़ रही हैं.

वो कहती हैं कि केस में गिरफ़्तारी तो दूर अब तक पुलिस वालों की पहचान तक नहीं हुई है.

दिल्ली पुलिस का रवैया कैसा है?

वृंदा ग्रोवर कहती हैं, ''वैसे तो हिंदुस्तान में पुलिस का रवैया ऐसा होता है कि शक़ के आधार पर गिरफ़्तार कर लेते हैं और अदालत में कहते हैं कि हिरासत में पूछताछ की सख़्त ज़रूरत है. इस केस में हर चीज़ इतनी ज़्यादा ढीली चल रही है, हर तारीख़ पर कोर्ट के सामने एक नई कहानी पेश कर दी जाती है.''

उन्होंने आगे बताया, ''मुश्किल ये है कि यहाँ पर एक साधारण ग़रीब तबक़े के मुसलमान लड़के की हत्या हुई है और पुलिस को ही उसकी जाँच करनी है. उस दिन कौन ड्यूटी पर था, इन सबके काग़ज़ात पुलिस के पास होते हैं. उससे आप ये जाँच कर सकते हैं. हमारा मानना है कि इसकी जाँच इस तरह चलती रही तो अगले छह साल तक चलती रहेगी. इसमें विशेष जाँच टीम की ज़रूरत है.''

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक़ ये ज़रूरी है कि थाने में सीसीटीवी कैमरा हो. लेकिन वकील वृंदा ग्रोवर बताती हैं कि पुलिस ने ये कहा है कि उस वक़्त पुलिस स्टेशन में सीसीटीवी काम नहीं कर रहा था.

फ़ैज़ान के घर से थोड़ी दूर पर क़ौसर अली का घर है. उसी वीडियो में पिटते हुए लोगों में से एक क़ौसर अली भी थे.

वो कहते हैं उस दिन की याद आज भी उनके शरीर में सिहरन पैदा कर देती है.

वे बताते हैं, ''उस दिन जो हुआ था उसके बाद मुझे आज भी पुलिस से डर लगता है. ऐसा लगता है कि कहीं फिर से मुझे उठा कर नहीं ले जाएँ. मैं चाहता हूँ कि गुनाहगारों को सज़ा मिले.''

दरअसल, दिल्ली पुलिस ने इस बात से इनकार नहीं किया है कि इस वीडियो में फ़ैज़ान और क़ौसर सहित इन लोगों को पीटते नज़र आ रहे लोग पुलिस वाले ही थे.

बल्कि दिल्ली पुलिस ने हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान कहा कि वो वीडियो में नज़र आ रहे पुलिस वालों की पहचान करने की कोशिश कर रही है.

इस मामले में पीड़ित पक्ष की दलील अदालत में पूरी हो चुकी है और अब पुलिस को अपनी दलीलें पेश करनी है.

दिल्ली पुलिस की जाँच इस मामले में कहाँ तक आगे बढ़ी ये जानने के लिए हमने दिल्ली पुलिस से संपर्क किया.

दिल्ली दंगों की जाँच के लिए बनी एसआईटी का नेतृत्व करने वाले आईपीएस अधिकारी राजेश देव ने इस मामले के कोर्ट में होने का हवाला देते हुए बात करने से इनकार कर दिया.

बहरहाल हमने यह समझने की कोशिश की कि आख़िर दंगों पर दिल्ली पुलिस के आँकड़े क्या कहते हैं.

क्या कहते हैं आँकड़े

बीबीसी को दिल्ली पुलिस में सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक़, पुलिस ने दंगों से जुड़ी कुल 758 एफ़आईआर दर्ज़ की है.

इनमें अब तक कुल 2619 लोगों की गिरफ़्तारी हुई थी, इनमें से 2094 लोग ज़मानत पर बाहर हैं.

अदालत ने अब तक सिर्फ़ 47 लोगों को दोषी पाया है और 183 लोगों को बरी कर दिया.

वहीं 75 लोगों के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत ना होने के कारण कोर्ट ने उनका मामला रद्द कर दिया है.

न्यूज़ वेबसाइट 'द प्रिंट' में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ दिल्ली दंगों में मारे गये 53 लोगों की मौत से जुड़े मामलों में से 14 मामले में अब तक जाँच जारी है.

हमने ऐसे ही एक मामले में पीड़ित परिवार से संपर्क किया है, लेकिन जाँच जारी रहने के कुल मामलों की संख्या को लेकर बीबीसी स्वतंत्र रूप से पुष्टि नहीं कर पाया है.

सीसीटीवी तोड़ते 'पुलिस वाले'

एक और घटना में उत्तर पूर्वी दिल्ली के खुरैजी में सीएए प्रदर्शन स्थल के पास पुलिस की वर्दी में कुछ लोग सीसीटीवी कैमरे तोड़ते नज़र आ रहे हैं.

ये वीडियो भी काफ़ी वायरल हुआ था.

क्या इस मामले में पुलिसवालों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई हुई?

इस सवाल पर दिल्ली दंगों से जुड़े कई मामलों में पीड़ित पक्ष के वकील महमूद प्राचा कहते हैं, ''दिल्ली पुलिस के ख़िलाफ़ उन मामलों में भी एक्शन नहीं हुआ, जिनमें उनका नाम आया है. इस तरह से कार्रवाई जो किसी जनहित याचिका में होनी चाहिए थी, वो नहीं हुई है.''

बीबीसी ने दिल्ली पुलिस से इस मामले के बारे में भी जानकारी लेनी चाहिए लेकिन अब तक दिल्ली पुलिस की ओर से कोई जवाब नहीं आया है.

रतन लाल-अंकित शर्मा के मामले में क्या हुआ

लेकिन ऐसा नहीं है कि दिल्ली पुलिस की जाँच की रफ़्तार सभी मामलों में धीमी ही है.

दिल्ली दंगों में ड्यूटी के दौरान मारे गए हेड कॉन्स्टेबल रतन लाल के मामले में दिल्ली पुलिस ने अब तक कम से कम 24 लोगों को गिरफ़्तार किया, जिनमें से 10 ज़मानत पर रिहा हो गए हैं.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, पिछले साल रतन लाल केस में दो लोगों को मणिपुर और बेंगलुरु से पकड़ा गया था.

इस केस में पुलिस ने पाँच चार्ज़शीट फ़ाइल की है. लेकिन इस मामले में भी ट्रायल अब तक शुरू नहीं हो पाया है.

वहीं इंटेलिजेंस ब्यूरो में काम करने वाले अंकित शर्मा की हत्या मामले में 11 अभियुक्त फ़िलहाल गिरफ़्तार हैं.

अंकित शर्मा का शव चांद बाग़ के एक नाले में 26 फ़रवरी, 2020 को मिला था.

चार्ज़शीट के मुताबिक़ उनके शरीर में 51 चोटें थी.

मीडिया में छपी ख़बरों के मुताबिक़, इस केस में एक अभियुक्त को दिल्ली पुलिस ने अक्तूबर 2022 में तेलंगाना से गिरफ़्तार किया था.

पिछले साल मार्च में अदालत ने अभियुक्तों पर आरोप तय किए और अब गवाहों के बयान सुने जा रहे हैं.

उमर ख़ालिद और एफ़आईआर नंबर 59

दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल और क्राइम ब्रांच का कहना है कि दिल्ली दंगों के पीछे एक गहरी साज़िश थी, जिसकी नींव 2019 में सीएए और एनआरसी के प्रदर्शनों के दौरान पड़ी.

इस साज़िश का ज़िक्र एफ़आईआर नंबर 59/2020 में किया गया है, जिसकी तहक़ीक़ात क्राइम ब्रांच की स्पेशल सेल कर रही है.

दिसंबर 2019 में केंद्र सरकार ने नागरिकता अधिनियम में एक संशोधन पारित किया. इसके तहत बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के छह अल्पसंख्यक समुदायों (हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख) से ताल्लुक़ रखने वाले लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है.

इसी के ख़िलाफ़ देश भर में प्रदर्शन हुए थे. कोर्ट के आदेश के मुताबिक़, अब तक एफ़आईआर नंबर 59 में 18 लोग गिरफ़्तार हो चुके हैं.

इनमें से फ़िलहाल छह ज़मानत पर बाहर हैं. इस केस में भी अब तक मुक़दमा शुरू नहीं हो पाया है.

दिल्ली पुलिस जेएनयू के पूर्व छात्र नेता उमर ख़ालिद को दिल्ली दंगों का मास्टरमाइंड मानती है. उमर ख़ालिद सितंबर 2020 से जेल में हैं.

उन पर अनलॉफुल एक्टिविटीज़ (प्रिवेंशन) एक्ट (यूएपीए) और इंडियन पीनल कोड के तहत आतंकवाद, दंगा फैलाने और आपराधिक साज़िश रचने जैसे कई आरोप लगे हैं.

यूएपीए के तहत ज़मानत मिलना आसान नहीं है. उमर ख़ालिद की ज़मानत याचिका दो बार दो अलग-अलग अदालतों से ख़ारिज हो चुकी है.

सुप्रीम कोर्ट में उनकी ज़मानत याचिका मई 2023 से जनवरी 2024 तक लंबित रही, लेकिन एक बार भी उस पर बहस शुरू नहीं हो पाई.

अब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से अपनी ज़मानत की अर्ज़ी वापस ले ली है और ये कहा है कि वो अब वापस ट्रायल कोर्ट जाएँगे.

उमर ख़ालिद के पिता सैयद क़ासिम रसूल इलयास बताते हैं कि क़रीब 15-20 दिन पहले उनकी अपने बेटे से बात हुई थी.

उमर के केस में ट्रयल में देरी पर वो कहते हैं, ''आप सोचिए बगैर ट्रायल के साढ़े तीन साल बीत गए हैं. चार साल से केस शुरू नहीं हुआ है. ये उत्पीड़न नहीं है तो और क्या है. निचली अदालत में डेढ़ साल ज़मानत पर बहस हुई. फिर हम हाई कोर्ट गए.''

वे आगे बताते हैं, ''बेल अर्ज़ी पर छह महीने बहस हुई फिर चार महीने ऑर्डर रिज़र्व रख दिया गया. सुप्रीम कोर्ट में मई, 2023 से केस लिस्ट हुआ है. 14 बार लिस्ट हो चुका है. हर बार स्थगित हो रहा है. मैं समझता हूँ कि ये पूरा केस मनगढ़ंत है. जब इसका ट्रायल होगा तो पुलिस कैसे अपनी सफ़ाई पेश करेगी इसका अंदाज़ा नहीं है.''

वैसे उमर ख़ालिद के पिता कहते हैं कि उनको देश की न्याय प्रणाली पर अब भी पूरा भरोसा है.

कोर्ट की टिप्पणी

इन चार सालों में कई बार अदालत में सुनवाई के दौरान ऐसे मौक़े आए, जब कोर्ट ने दिल्ली पुलिस पर सख़्त टिप्पणी की और उनकी जाँच के स्तर को ख़राब बताया.

अगस्त, 2023 में दयालपुर पुलिस थाना के एफ़आईआर नंबर 71/20 केस में तीन लोगों की दंगा फ़ैलाने के मामले में हुई गिरफ़्तारी पर सुनवाई करते हुए कड़क़डूमा कोर्ट में जज पुलस्त्य प्रमचाला ने कहा था, ''इन घटनाओं की ठीक से और पूरी तरह से जाँच नहीं की गई है. मामले में चार्ज़शीट पूर्वाग्रह और ग़लत तरीक़े से दायर की गई है ताकि शुरुआत में हुई ग़लतियों को छिपाया जा सके.''

इन तीन लोगों पर पत्थर फ़ेंकने, गाड़ियों में आग लगाने, सरकारी और निजी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाने के आरोप थे.

वहीं सितंबर 2021 में दिल्ली के कड़कड़डूमा अदालत में जज विनोद यादव ने इन तीन लोगों को बरी करते हुए ये टिप्पणी की थी, ''आज़ादी के बाद हुए दिल्ली के सबसे भीषण सांप्रदायिक दंगे को इतिहास देखेगा, तो इसमें जाँच एजेंसियों की नाकामी पर लोकतंत्र समर्थकों का ध्यान जाएगा कि किस तरह से जाँच एजेंसियाँ वैज्ञानिक तौर तरीक़े का इस्तेमाल नहीं कर पाईं.''

इससे पहले 2022 में चार पूर्व जजों और भारत के एक पूर्व गृह सचिव ने दिल्ली दंगों पर फ़ैक्ट फ़ाइडिंग रिपोर्ट जारी की थी.

रिपोर्ट ने दिल्ली पुलिस की जाँच पर गंभीर सवाल उठाए थे. साथ ही केंद्रीय गृह मंत्रालय, दिल्ली सरकार और मीडिया की भूमिका पर भी सख़्त टिप्पणियाँ की गई थीं.

पटना हाई कोर्ट की पूर्व जज और सुप्रीम कोर्ट की वकील अंजना प्रकाश इस रिपोर्ट की सह लेखिका थीं.

वो कहती हैं, ''बहुत सारे गवाहों के बयान देर से दर्ज किए गए. अब दिल्ली पुलिस इन बयानों को अभियुक्तों के बयानों से मिलाने की कोशिश कर रही है. सोचिए कि एक मकड़ी का जाल है, लेकिन मकड़ी का जाल ठीक से रखना मुश्किल है. अगर एक सिरा भी टूटा तो पूरा जाल ख़त्म हो जाएगा.''

इसी फ़ैक्ट फ़ाइंडिंग रिपोर्ट में बीजेपी नेताओं जेसे कपिल मिश्रा के दिए हुए भाषण के लिए कहा गया था कि उन्होंने भी लोगों को उकसाया था, जिससे हिंसा भड़की थी. हालांकि अभी तक बीजेपी नेता कपिल मिश्रा पर कोई एफ़आईआर दर्ज नहीं हुई है.

सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर ने दिल्ली के पटियाला कोर्ट में एक याचिका डाल कर कहा है कि कपिल मिश्रा के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज होनी चाहिए.

ये याचिका अभी कोर्ट में लंबित है.

वहीं जुलाई 2020 में दिल्ली पुलिस ने दिल्ली हाई कोर्ट में कहा था कि बीजेपी नेता कपिल मिश्रा और बाक़ी बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ ऐसे कोई सबूत नहीं मिले हैं कि उनके भाषण से दंगा भड़का हो.

क्या कहा दिल्ली पुलिस ने

दिल्ली पुलिस पर लग रहे तमाम आरोपों और केस स्टेटस को लेकर बीबीसी ने दिल्ली पुलिस से बात करने की कई कोशिशें की.

दिल्ली पुलिस के अतिरिक्त जन संपर्क अधिकारी रंजय अत्रिश्या ने बीबीसी से बातचीत में कहा, ''अब तक की गई जाँच क़ानून के तहत की गई है. जाँच पूरी होने के बाद हमने कई मामलों में अपनी अंतिम रिपोर्ट दाख़िल कर दी है. चूँकि मामले की सुनवाई अभी जारी है इसलिए यह माननीय अदालतों के दायरे में आता है. जिन मामलों में जाँच जारी है, उनमें हम फ़ाइनल रिपोर्ट डालेंगे. दोषियों पर पीनल एक्शन लिया जाएगा. चाहे वो कोई भी हो.''

इन दंगों में कई लोगों की ज़िंदगियाँ उजड़ गईं. साल दर साल बीत रहे हैं लेकिन पीड़ित परिवारों की न्याय के लिए लड़ाई ख़त्म नहीं हो रही है.

दंगे कैसे भड़के और इन्हें भड़काया किसने.

दंगे और उसकी जाँच के दौरान पुलिस की भूमिका पर जिस तरह के सवाल उठे, उसे लेकर दिल्ली पुलिस ने क्या किया- ऐसे कई सवाल हैं, जिनके जवाब अब तक सामने नहीं आए हैं.

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