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रविवार, 11 फ़रवरी 2024

पाकिस्तान चुनाव: क्या नतीजों के बाद जेल से बाहर आ पाएंगे इमरान ख़ान?

 

मरान खान की तस्वीर के साथ उनका एक समर्थक

काफी अनिश्चितता, राजनीतिक नौटंकी, लंबी कानूनी लड़ाई और हिंसक घटनाओं के बाद आखिरकार पाकिस्तान में अगली सरकार बनने वाली है.

इमरान खान की तहरीक-ए-इंसाफ समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव परिणामों में सबसे आगे हैं.

उसके बाद पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ (पीएमएल-एन) और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) हैं.

बैठकों और राय-मशविरे का दौर जारी है. सरकार गठन के लिए आपसी बातचीत शुरू करने से पहले पीएमएल-एन और पीपीपी ने छोटे दलों से संपर्क शुरू कर दिया है.

नेशनल असेंबली की 265 सीटों में बहुमत के लिए किसी राजनीतिक दल को 133 सीटें जीतने की जरूरत होती है. इतनी सीटें किसी भी दल को नहीं मिली हैं. ऐसे में एक बात साफ है कि मुख्यधारा के दलों का एक गठबंधन बनेगा. इन दलों को मिली सीटों के आधार पर सत्ता में उनको हिस्सा दिया जाएगा.

बहुत से विश्लेषक नवाज शरीफ को पाकिस्तान का अगला प्रधानमंत्री बता रहे हैं. लेकिन अन्य लोगों का मानना है कि यह इतना आसान नहीं होगा. उनका मानना है कि पीपीपी उपाध्यक्ष आसिफ अली जरदारी शरीफ को प्रधानमंत्री पद पर समर्थन देने से पहले अपने पद का उपयोग सौदेबाजी के लिए करेंगे. वो 'किंग मेकर' की भूमिका में हैं.

बड़ा सवाल पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के समर्थन से चुनाव जीते निर्दलीय उम्मीदवारों को लेकर हैं. ये उम्मीदवार इमरान खान को मिले जनसमर्थन की बदौलत जीते हैं. क्या वे इमरान खान के प्रति वफादार बने रहेंगे या अन्य दलों से सौदेबाजी कर पाला बदलकर सत्ता पक्ष के साथ हो लेंगे.

नवाज शरीफ ने लाहौर में विजयी भाषण दिया. इसमें उन्होंने कहा कि अन्य दलों के साथ-साथ वो निर्दलियों के जनादेश का भी सम्मान करते हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि निर्दलियों को ऐतिहासिक जीत से खरीद-फरोख्त की आशंका पहले से अधिक बढ़ गई हैं.

पीटीआई के समर्थन से जीते उम्मीदवारों के लिए किसी दूसरे दल में जाने से रोकने की कोई कानूनी बाध्यता नहीं है. लेकिन अगर उन्होंने इमरान खान का साथ छोड़ा तो उनका राजनीतिक करियर भी खतरे में पड़ सकता है.

पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ ने भी जीत का दावा किया है. सोशल मीडिया पर जारी इमरान खान के एआई आधारित संदेश में कहा गया है, "मतदान कर आपने असली आजादी की नींव डाली है. मैं 2024 का चुनाव जीतने के लिए आपको शुभकामनाएं देता हूं."

अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने क्या प्रतिक्रिया दी है?

कराची में चुनाव आयोग के सामने पीटीआई समर्थकों का प्रदर्शन

अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय यूनियन समेत अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने चुनाव प्रक्रिया पर चिंता जताई है. उन्होंने अनिमितता की खबरों और धांधली के आरोपों की जांच कराने की मांग की है.

अमेरिकी विदेश विभाग की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि चुनाव में शांतिपूर्ण सभाएं करने और अभिव्यक्ति की आजादी पर अनुचित पाबंदियां शामिल थीं.

यूरोपीय यूनियन की ओर से जारी बयान में सबके लिए समान अवसर की कमी का उल्लेख किया गया है. इससे कुछ राजनेता चुनाव लड़ने से वंचित रह गए और सभाएं करने की आजादी, अभिव्यक्ति की आजादी प्रभावित हुई और इंटरनेट तक लोगों की पहुंच नहीं हो पाई.

ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड कैमरन ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म 'एक्स' पर लिखा कि ब्रिटेन चुनाव में सामूहिकता और निष्पक्षता को लेकर पैदा हुई गंभीर चिंताओं को समझता है. उन्होंने पाकिस्तानी अधिकारियों से अनुरोध किया कि वो सूचनाओं तक पहुंच जैसे बुनियादी मानवाधिकार और कानून का शासन बहाल करें.

हालांकि, इन सभी संस्थाओं ने पाकिस्तान की अगली सरकार के साथ समान लक्ष्यों की दिशा में मिलकर काम करने का भी संकेत दिया है.

राजनीतिक विश्लेषक सज्जाद मीर का मानना है कि अगली सरकार की वैधानिकता पर गंभीर सवाल के बाद भी अंतरराष्ट्रीय समुदाय परिणामों को स्वीकार करेगा और अगली सरकार के साथ काम करने को तैयार होगा.

वो कहते हैं, "जब वे पहले अफगानिस्तान और हाल ही में बांग्लादेश के चुनाव परिणाम को स्वीकार कर सकते हैं- निष्पक्षता और समान अवसर को लेकर आपत्तियों के बाद भी तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अगली सरकार के साथ काम करने में कोई दिक्कत नहीं होगी."

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कुछ देशों और संगठनों की नकारात्मक प्रतिक्रियाओं पर कहा है कि इनमें इस बात की अनदेखी की गई है कि प्रायोजित चरमपंथ की चुनौतियों के बीच पाकिस्तान ने आम चुनाव शांतिपूर्ण और सफलतापूर्वक संपन्न कराए हैं.

अगली सरकार की चुनौतियां क्या होंगी?

राजनीतिक विश्लेषक डॉक्टर हसन रिज़वी का मानना है कि अगर नवाज शरीफ की पार्टी सरकार बना भी लेती है तो, जिसकी अधिक संभावना है, उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती गठबंधन के सहयोगियों को एकजुट रखने की होगी.

वो कहते हैं, "यह पीडीएम जैसी गठबंधन वाली सरकार होगी, सभी लोगों को खुश रखना काफी कठिन होगा, खासकर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी अधिक हिस्सेदारी मांगेगी. ऐसे में गठबंधन के सहयोगियों को एकजुट रखना और आर्थिक मोर्चे पर अच्छा प्रदर्शन करना काफी चुनौतीपूर्ण होगा."

वो कहते हैं, "पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ समर्थित उम्मीदवारों के साथ अगली सरकार के संबंधों की प्रकृति भी काफी महत्वपूर्ण होगा. उन्होंने केंद्र के साथ-साथ पंजाब में भी भारी संख्या में जीत दर्ज की है. अगर संबंध तनावपूर्ण बने रहे, जैसा कि फिलहाल लग रहा है, ऐसे में अगर पीटीआई समर्थित उम्मीदवार एकजुट रहे तो वे अगली सरकार के जीवन को नरक बना देंगे."

वहीं राजनीतिक विश्लेषक रसूल बख्श रईस का मानना है कि जनता के सामने अपनी वैधता साबित करना अगली सरकार की सबसे बड़ी चुनौती होगी.

वो कहते हैं, "लोग जानते हैं कि पीएमएल-एन और पीपीपी ने किस तरह से बहुमत जुटाया है. वो यह भी जानते हैं कि पीटीआई को बाकी के सभी दलों से अधिक सीटें मिली हैं. लोग यह भी जानते हैं कि चुनाव से पहले और चुनाव के बाद बड़े पैमाने पर धांधली हुई है. इसलिए अगली सरकार के लिए लोगों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अपनी विश्वसनीयता बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती होगी."

राजनीतिक विश्लेषकों में इस बात पर आम सहमति है कि अर्थव्यवस्था का पुनरुद्धार अगली सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण और अत्यधिक चुनौती वाला काम होगा.

वरिष्ठ पत्रकार अहमद वलीद कहते हैं कि लोग सरकार से तंग आ चुके हैं. उनका बिल तेजी से बढ़ रहा है. महंगाई आसमान छू रही है. लोगों का जीवन-यापन कठिन हो गया है. ऐसे में लोगों को तत्काल और पर्याप्त मदद की जरूरत है.

वो कहते हैं, "लोग पहले से ही हताश हैं. लोगों ने पीटीआई को वोट देकर पीएमएल-एन के नेतृत्व वाली पीडीएम सरकार के खिलाफ अपना गुस्सा जताया है. यदि अगली सरकार उन्हें किसी प्रकार की राहत देने के लिए कठिन लेकिन सही विकल्प चुनने की जगह वह गठबंधन सहयोगियों को खुश करने के लिए लोकलुभावन फैसले लेती है तो, पीएमएल-एन इतनी तेजी से अलोकप्रिय होगी, जिसकी उसने कल्पना नहीं की होगी. यह किसी के लिए गुलाब की सेज की तरह नहीं होगी. जो लोग सत्ता संभालेंगे, उन्हें तेजी से काम भी करना होगा."

सज्जाद मीर कहते हैं कि अगली सरकार की बड़ी प्राथमिकता लोगों, राजनेताओं और संस्थाओं में सद्भावना लानी होगी.

वो कहते हैं, "पिछले कुछ सालों में देश में इतना गहरा ध्रुवीकरण हुआ है कि परिवार ही आपस में लड़ रहे हैं. नई सरकार को एकजुटता लानी होगी. सरकार को अन्य दलों और ताकतों के साथ मिलकर एक नया सामाजिक-राजनीतिक समझौता करना होगा."

इमरान खान के लिए चुनाव परिणामों के क्या मायने हैं

राजनीति विज्ञानी डॉक्टर हसन असकरी का मानना है कि इमरान खान अभी जेल में ही रहेंगे. लेकिन चुनाव ने उन्हें राजनीतिक तौर पर ताकतवर बनाया है. चुनाव ने उनके समर्थन और लोकप्रियता को और मजबूत किया है.

वो कहते हैं, "अब वो विधानसभाओं में ताकतवर आवाज होंगे. पीटीआई अब एक प्रभावी और सच्चे विपक्ष की भूमिका निभाने की स्थिति में है. उनके पास सरकार को अक्षम बनाने के लिए जरूरी संख्या है. इमरान खान को अभी भी मुकदमों का सामना करना पड़ेगा. वे कानून के जरिए ही बाहर आ सकते हैं. अब उनसे निपटने के लिए संकीर्ण कानूनी रुख अपनाया जाएगा. लेकिन चुनाव ने उन्हें देश में सबसे बड़े और सबसे लोकप्रिय राजनेता के रूप में स्थापित कर दिया है."

वहीं, रसूल बख्श रईस की राय में इन नतीजों की वजह से इमरान खान अपने राजनीतिक और गैर राजनीतिक विरोधियों के लिए और बड़ा खतरा बन गए हैं.

वो कहते हैं, "पिछली बार के चुनाव में मिली उनकी जीत सेना के समर्थन के आरोपों से धूमिल हुई थी. उन पर सेना के समर्थन से सत्ता हासिल करने का आरोप लगाया गया था. लेकिन इन नतीजों के साथ जहां उन्हें सेना और अन्य सभी राजनीतिक ताकतों ने परेशान किया और सताया, वे जनसमर्थन से जिस तरह से उभरे हैं, उसने उन्हें और अधिक खतरनाक बना दिया है."

वो कहते हैं कि मतदाताओं ने उन लोगों को भी नकार दिया, जिन्होंने 9 मई के बाद इमरान खान को धोखा दिया और निष्ठा बदलकर अलग-अलग समूह बना लिए, ऐसे अधिकांश उम्मीदवार चुनाव हार गए हैं."

रईस का यह भी मानना ​​है कि अगली सरकार इतनी कमजोर होगी कि वह सेना के समर्थन के बिना सरकार नहीं चला पाएगी.

अंत में वो कहते हैं, "इसका मतलब यह हुआ कि सेना की कृपा पाने के लिए नवाज शरीफ को उसके आदेश का पालन करना पड़ेगा. इससे उनकी बची-खुची विश्वसनीयता भी खत्म हो जाएगी."

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