मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने बीते शनिवार (17 फरवरी) को एक बार फिर दोहराया कि उनकी सरकार भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही व्यवस्था (एफएमआर) को खत्म करने के विरोध में है.
एनजीओ समन्वय समिति (एनजीओसीसी) के नेताओं के साथ बातचीत के दौरान, लालदुहोमा ने कहा कि वर्तमान सीमा ब्रिटिशों द्वारा मिज़ो समुदाय के लोगों को अलग करने वाली 'फूट डालो और राज करो' की नीति के माध्यम से लगाई गई थी.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने कहा कि भारत और म्यांमार में रहने वाले मिज़ो लोग अभी भी एक प्रशासनिक इकाई के तहत पुन: एकीकरण का सपना देखते हैं.
मुख्यमंत्री ने कहा कि उनकी सरकार चाहती है कि म्यांमार के साथ मुक्त आवाजाही व्यवस्था जारी रहे.
उन्होंने कहा कि उन्होंने जनवरी और फरवरी में दो मौकों पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात कर उन्हें भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही व्यवस्था हटाने पर मिजोरम के रुख के बारे में बताया था.
उन्होंने कहा कि उन्होंने गृह मंत्री से मिजोरम की ओर बाड़ का निर्माण नहीं करने का आग्रह किया है, भले ही भारत-म्यांमार सीमा के मणिपुर की ओर बाड़ लगाई गई हो.
मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने आशा व्यक्त की कि केंद्र 510 किलोमीटर लंबी मिजोरम-म्यांमार सीमा पर बाड़ नहीं लगा सकता है.
इस बीच एनजीओ समन्वय समिति ने कहा कि वह भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही व्यवस्था को खत्म करने के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ विरोध दर्ज कराने के लिए 21 फरवरी को राजधानी आइजोल में प्रदर्शन करेगा.
एनजीओ समन्वय समिति पांच प्रमुख नागरिक समाज संगठनों और छात्र निकायों का एक समूह है, जिसमें सेंट्रल यंग मिज़ो एसोसिएशन (सीवाईएमए) और मिज़ो ज़िरलाई पावल (एमजेडपी) शामिल हैं.
समिति ने पहले गृह मंत्री शाह को एक ज्ञापन भेजकर केंद्र से भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही व्यवस्था को समाप्त करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था.
मालूम हो कि बेहतर निगरानी की सुविधा के लिए संपूर्ण 1,643 किलोमीटर लंबी म्यांमार सीमा पर बाड़ बनाने की घोषणा के कुछ दिनों बाद बीते 8 फरवरी कोकेंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था, 'यह हमारी सीमाओं को सुरक्षित करने का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का संकल्प है. गृह मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि देश की आंतरिक सुरक्षा सुनिश्चित करने और म्यांमार की सीमा से लगे भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों की जनसांख्यिकीय संरचना को बनाए रखने के लिए दोनों के बीच मुक्त आवाजाही व्यवस्था को खत्म कर दिया जाए. चूंकि विदेश मंत्रालय फिलहाल इसे खत्म करने की प्रक्रिया में है, इसलिए गृह मंत्रालय ने इस व्यवस्था को तत्काल निलंबित करने की सिफारिश की है.'
भारत और म्यांमार के बीच की सीमा
चार राज्यों - मिजोरम, मणिपुर, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है. मुक्त आवाजाही व्यवस्था दोनों देशों के बीच एक पारस्परिक रूप से सहमत व्यवस्था है, जो सीमा पर रहने वाली जनजातियों को बिना वीजा के दूसरे देश के अंदर 16 किमी तक की यात्रा करने की अनुमति देती है.
इस व्यवस्था के तहत पहाड़ी जनजातियों का प्रत्येक सदस्य, जो या तो भारत का नागरिक है या म्यांमार का नागरिक है और जो सीमा के दोनों ओर 16 किमी के भीतर किसी भी क्षेत्र का निवासी है, वह एक साल की वैधता के साथ सीमा पास दिखाकर सीमा पार कर सकता है और दो सप्ताह तक रह सकता है.
मुक्त आवाजाही को साल 2018 में मोदी सरकार की एक्ट ईस्ट नीति के हिस्से के रूप में उस समय लागू किया गया था, जब भारत-म्यांमार के बीच राजनयिक संबंध बढ़ रहे थे. दरअसल इसे 2017 में ही लागू किया जाना था, लेकिन अगस्त में उभरे रोहिंग्या शरणार्थी संकट के कारण इसे टाल दिया गया था.
इस बीच 3 मई 2023 को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से आरोप लग रहे हैं कि सीमा पार से घुसपैठियों और आतंकवादी समूहों ने मणिपुर में परेशानी पैदा करने में प्रमुख भूमिका निभाई है. यहां तक कि मणिपुर सरकार और मेईतेई संगठन भी बाड़ लगाने और मुक्त आवाजाही व्यवस्था खत्म करने की मांग कर रहे थे.
हालांकि, मणिपुर के कुकी-जो और मिजोरम का मिजो समुदाय, जो म्यांमार के चिन समुदाय के साथ जातीय संबंध साझा करते हैं, इस कदम का विरोध कर रहे हैं. इसके बजाय वे राज्य में हिंसा के लिए एन. बीरेन सिंह सरकार और मेईतेई कट्टरपंथी संगठनों को जिम्मेदार ठहराते हैं.
भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने की केंद्रीय गृह मंत्री शाह की घोषणा का मिजोरम और नगालैंड में कई हलकों से विरोध हुआ था. भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के फैसले का पुरजोर विरोध करते हुए मिजोरम के मुख्यमंत्रीलालदुहोमा पहले भी इसे 'अस्वीकार्य' बता चुके हैं.
बीते 26 जनवरी कोनगालैंड के मुख्यमंत्री नेफ्यू रियोने भी केंद्र सरकार से कहा था कि भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का उसका निर्णय एकतरफा नहीं लिया जा सकता है, बल्कि संबंधित हितधारकों से परामर्श के बाद केवल 'चर्चा के माध्यम से' ही इस पर निर्णय लिया जा सकता है.
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