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India-Taiwan Agreement: भारत की मोदी सरकार ने काफी सावधानी बरतते हुए एक निर्णायक कदम उठाया है और भारत ने ताइवान के साथ अपने लेबर समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। इस समझौते के तहत अब भारत, ताइवान में श्रमिकों की सप्लाई करेगा।
माना जा रहा है, भारत और ताइवान के बीच हुए इस समझौते के बाद चीन की तरफ से काफी सख्त प्रतिक्रिया आ सकती है, मगर एक्सपर्ट्स का कहना है, कि ताइवान काफी तेजी से चीन के ऊपर से अपनी निर्भरता खत्म करना चाहता है, क्योंकि उसे डर है, कि आज नहीं तो कल, चीन उसपर हमला करके ही दम लेगा।
वन चायना पॉलिसी को भारत ने छोड़ा?
चीन के गुस्से को नजरअंदाज करते हुए भारत उसके 'एक चीन नीति' को दरकिनार कर रहे हैं और भारत ने ताइवान के साथ अहम समझौता कर लिया है, जिसका मकसद ताइपे में श्रम की कमी को कम करना है। 16 फरवरी को दोनों देशों के बीच इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गये हैं।
इस समझौते से भारत और ताइवान के बीच द्विपक्षीय संबंधों में मजबूती मिलेगी और ताइवान में मजदूरों का संकट खत्म हो जाएगा। ऐसा माना जा रहा है, कि ताइवान भारत से एक लाख से ज्यादा सैनिकों को बुलाना चाहता है और इसी को लेकर दोनों देशों के बीच ये अहम समझौता किया गया है।
हालांकि इस रिपोर्ट को लिखते वक्त तक चीन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन भारत-ताइवान के बीच किए गये इस समझौते ड्रैगन का बौखलाना तय माना जा रहा है।
ताइवान के श्रम मंत्रालय के अनुसार, ताइपे और दिल्ली में ताइवान और भारत, दोनों के दूतावासों के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। हालांकि, इस समझौते में क्या क्या है, फिलहाल इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की गई है।
कितना अहम है भारत-ताइवान समझौता?
ताइवान के साथ श्रम समझौते की बारीकियों का खुलासा नहीं किया गया है, लेकिन यह समझौता, दोनों देशों के बीच व्यापक बातचीत के बाद किया गया है। सीएनए की रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों के बीच श्रम सहयोग पर बातचीत 2020 में ही शुरू हो गई थी, लेकिन महामारी के कारण ये बातचीत रूक गई थी। महामारी के बाद बातचीत फिर से शुरू हुई और पिछले साल सितंबर तक समझौते के प्रमुख तत्व काफी हद तक तय हो गए थे।
ताइवान, जो अपने सेमीकंडक्टर उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है, वो अपनी घटती आबादी से जूझ रहा है। वर्तमान में ताइवान में 7 लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर रहते हैं, जो मुख्य रूप से वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलीपींस और थाईलैंड से आते हैं। इनमें से कई श्रमिक विनिर्माण भूमिकाओं में या बुजुर्गों की देखभाल करने वाले के रूप में कार्यरत हैं।
भारत ने नोट किया है, कि ताइवान में विनिर्माण, निर्माण और कृषि जैसे क्षेत्रों में श्रम की मांग स्थानीय उपलब्धता से ज्यादा हो रही है, जिससे प्रवासी श्रमिकों की मांग में सालाना वृद्धि हो रही है।
भारतीय श्रमिकों को विश्वसनीय और मेहनती बताते हुए ताइवान मंत्रालय ने प्रारंभिक पायलट कार्यक्रम की योजना का खुलासा किया है। इसकी सफलता के आधार पर आगे भारतीय कामगारों के प्रवेश पर विचार किया जाएगा। हालांकि, भर्ती किए जाने वाले श्रमिकों की सटीक संख्या ताइवान द्वारा निर्धारित की जाएगी।
दिसंबर 2023 में, ताइवान में एक लाख भारतीय श्रमिकों को भेजने को लेकर समझौते पर बात चलने की रिपोर्ट सामने आई थी, लेकिन ताइवानी अधिकारियों ने तुरंत इन रिपोर्टों को खारिज कर दिया था।
इस फैसले की वजह से उस समय ताइवान में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया था और प्रदर्शनकारियों ने सरकार से अपनी योजना को रद्द करने की मांग की थी। उन्होंने तर्क दिया था, कि एक और देश से मजदूरों को नहीं बुलाया जाना चाहिए। वहीं, चीन की तरफ से भी काफी प्रोपेगेंडा की गई थी।
भारतीय श्रम मंत्रालय के मुताबिक, वर्तमान में लगभग 2,700 भारतीय प्रोफेशनल ताइवान में काम कर कर रहे हैं, जो मुख्य तौर पर हाई-टेक्नोलॉजी फिल्ड में हैं।
भारतीय श्रम मंत्रालय ने कहा है, कि लगभग एक करोड़ 80 लाख भारतीय कामगार ऑस्ट्रेलिया, जापान, सिंगापुर, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और सऊदी अरब सहित वैश्विक स्तर पर विभिन्न देशों में फैले हुए हैं।
भारत-ताइवान में मजबूत होते संबंध
ज्यादातर देशों की तरह, भारत में ताइवान के साथ औपचारिक राजनयिक संबंधों का अभाव है, इसके बजाय वह वास्तविक राजनयिक मिशन के रूप में कार्य करने वाले ताइवानी प्रतिनिधि कार्यालयों पर निर्भर है। इसके अलावा, ताइपे में नई दिल्ली का प्रतिनिधित्व, भारत-ताइपे एसोसिएशन की देखरेख एक वरिष्ठ राजनयिक द्वारा की जाती है।
भारत अभी तक वन चाइना पॉलिसी को मानता आया है, यानि वो ताइवान को एक स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता नहीं देता है। हालांकि, भारत में धीरे धीरे वन चायना पॉलिसी को त्यागने की मांग की जाती रही है।
नवंबर 2023 में विल्टन पार्क में पत्रकार लियोनेल बार्बर के साथ बातचीत के दौरान भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस आर्थिक संबंध को रेखांकित किया था। जयशंकर ने गतिशीलता समझौते जैसे सहयोगात्मक प्रयासों पर जोर देते हुए भारत और ताइवान के बीच बढ़ती आर्थिक और तकनीकी साझेदारी पर प्रकाश डाला था। उनकी टिप्पणियों ने दोनों देशों के बीच जुड़ाव की गहराई को रेखांकित किया, जो बढ़ते सहयोग की बदलती गतिशीलता को दर्शाता है।
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