- रूस-यूक्रेन के बीच भारत करेगा मध्यस्थता? जयशंकर से पूछा गया सवाल, जानें क्या दिया जवाब | सच्चाईयाँ न्यूज़

बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

रूस-यूक्रेन के बीच भारत करेगा मध्यस्थता? जयशंकर से पूछा गया सवाल, जानें क्या दिया जवाब

 विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संकेत दिए कि जरूरत पड़ने पर रूस और यूक्रेन के विवादों को सुलझाने के लिए भारत मध्यस्थ की भूमिका निभाने के लिए तैयार है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इस मामले में भारत खुद से कोई कदम नहीं उठाने वाला है।

भारत और रूस के संबंधों पर बोले जयशंकर
जर्मन अखबार को दिए साक्षात्कार में जयशंकर ने कहा, "फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन विवादों के बीच मध्यपूर्व में भारत के ऊर्जी आपूर्तिकर्ताओं ने पेट्रोलियम उत्पादों की आपूर्ति के लिए यूरोप को प्राथमिकता दी। यूरोप ने इन उत्पादों के बदले अधिक भुकतान किया। ऐसे में भारत को पास रूसी कच्चा तेल खरीदने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।"

जयशंकर ने कहा, "भारत ने रूस के साथ अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार किया है। उन्होंने कहा कि रूस ने कभी भी भारत के हितों का उल्लंघन नहीं किया है और दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध स्थिर और मैत्रीपूर्ण है।" उन्होंने आगे कहा, "वहीं दूसरी तरफ चीन के साथ राजनीतिक और सैन्य संबंध कुछ खास नहीं है।"

रूसी कच्चे तेल की खरीद को जयशंकर ने उचित ठहराया
जयशंकर ने आगे कहा कि भारत यूक्रेन युद्ध को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने बताया, "सभी इस संघर्ष से परेशान है। मुझे नहीं मालूम कि इसे खत्म कैसे करना है।" यूक्रेन में रूसी सैन्य के हस्तक्षेप के बावजूद रूस के साथ सैन्य संबंध पर पूछे जाने पर जयशंकर ने कहा, "इतिहास में देखा जाए तो रूस ने कभी भी हमारे हितों को नुकसान नहीं पहुंचाया है। यूरोप, अमेरिका, चीन या जापान के साथ के रूस के संबंधों में उतार-चढ़ाव देखा गया है।"

जयशंकर ने भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल की खरीद को भी उचित ठहराया। उन्होंने कहा, "जब यूक्रेन में लड़ाई शुरू हुई, तो यूरोप ने अपनी ऊर्जा खरीद का एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व में स्थानांतरित कर दिया था, उससे पहले तक यह भारत और अन्य देशों के लिए मुख्य आपूर्तिकर्ता था। इसपर हम क्या कर सकते थे। मध्यपूर्व ने यूरोप को प्रथमिकी दी। यूरोप ने उन्हें अधिक भुगतान किया।" उन्होंने आगे कहा कि उस समय या तो हमारे पास कोई ऊर्जा नहीं होती क्योंकि सब कुछ उनके पास चला जाता। या हमें बहुत अधिक भुगतान करना पड़ता क्योंकि यूरोप अधिक भुगतान कर रहा था।

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