समाजवादी पार्टी ने मंगलवार शाम को कुछ और प्रत्याशियों के टिकट घोषित कर दिए। लेकिन इन घोषित टिकटो में सबसे चौंकाने वाला नाम बदायूं से शिवपाल यादव का रहा। अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव को यह टिकट उनके अपने भतीजे धर्मेंद्र यादव का टिकट काटने के बाद मिला है।
समाजवादी पार्टी ने मंगलवार को पांच और प्रत्याशी घोषित कर दिए। इसमें कैराना से इकरा हसन को प्रत्याशी बनाया गया। जबकि बरेली से प्रवीण सिंह एरन और हमीरपुर से राजेंद्र सिंह राजपूत को लोकसभा का टिकट दिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र वाराणसी से सुरेंद्र सिंह पटेल को प्रत्याशी बनाया गया। जबकि बदायूं से शिवपाल सिंह यादव को प्रत्याशी बनाकर मैदान में उतारा गया। जबकि पहली सूची में पार्टी ने बदायूं से धर्मेंद्र यादव को प्रत्याशी बनाया था। अचानक हुए बदायूं सीट के फेर बदल को लेकर उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में तमाम तरह की चर्चाएं होने लगी। अंदरूनी चर्चाओं में कहा यह तक जाने लगा कि वैसे तो बदायूं समाजवादी पार्टी के लिए सुरक्षित सीट मानी जाती रही है। लेकिन हाल में हुए कुछ बड़े घटनाक्रमों के बाद यह सीट अब असुरक्षित मानी जाने लगी है। ऐसे में शिवपाल यादव को यहां से टिकट देने का क्या मतलब निकाला जाए।
राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो बदायूं से समाजवादी पार्टी के चार बार के सांसद सलीम इकबाल शेरवानी के पार्टी छोड़ने के बाद सीट बदलने जैसा फैसला लिया गया है। 1996 से लेकर 2009 तक समाजवादी पार्टी के नेता सलीम इकबाल शेरवानी बदायूं से लगातार सांसद रहे हैं। 2009 में मुलायम सिंह यादव के भतीजे धर्मेंद्र यादव बदायूं से चुनाव लड़े और सांसद बने। 2014 में भी धर्मेंद्र यादव इसी लोकसभा सीट से चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। लेकिन 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने यह सीट समाजवादी पार्टी के हाथ से छीन ली। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि चार बार के सांसद और समाजवादी पार्टी के बड़े मुस्लिम नेता सलीम इकबाल शेरवानी के पार्टी छोड़ने से समाजवादी पार्टी की पूरी सियासी चौसर बिगड़ गई।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक राजकुमार कहते हैं कि बदायूं अब समाजवादी पार्टी के लिए उतनी मजबूत सीट नहीं रही। उनका कहना है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने यहां पर विजय हासिल की। समाजवादी पार्टी के बड़े नेता सलीम इकबाल शेरवानी के साथ मुस्लिम और यादव के कांबिनेशन से पार्टी मजबूती से आगे की सियासी राह पर बढ़ रही थी। लेकिन शेरवानी के पार्टी छोड़ने से बदायूं की पूरी सियासी गणित बिगड़ गई। वह कहते हैं कि इन्हीं सियासी समीकरणों को देखकर कयास लगाए जा रहे हैं कि बदायूं की सीट समाजवादी पार्टी के लिए अब उतनी मजबूत नहीं रही। राजनीतिक जानकार भी मानते हैं कि शिवपाल यादव को उस लोकसभा सीट पर मैदान में उतारा गया है जो सियासी गुणा गणित के लिहाज से फिलहाल कमजोर हो चुकी है। हालांकि समाजवादी पार्टी से जुड़े नेताओं का मानना है कि शिवपाल यादव का जमीनी नेटवर्क मुलायम सिंह यादव की तरह ही मजबूत है। बदायूं की विपरीत सियासी परिस्थितियों में भी शिवपाल यादव पार्टी के बड़े खेवनहार हो सकते हैं। इसलिए उनको उनको बदायूं से चुनावी मैदान में उतारा गया है।
वहीं, दूसरी और चर्चा इस बात की हो रही है कि धर्मेंद्र यादव को सुरक्षित मानी जाने वाली सीट कन्नौज या आजमगढ़ से प्रत्याशी बनाया जा सकता है। सियासी जानकार भी मानते हैं कि कन्नौज और आजमगढ़ सीट समाजवादी पार्टी के लिए मजबूत गढ़ रही है। 1999 से लेकर 2019 तक इस सीट पर मुलायम सिंह अखिलेश यादव और डिंपल यादव सांसद रह चुके हैं। 2019 में भारतीय जनता पार्टी ने यह सीट समाजवादी पार्टी से छीन ली थी। आजमगढ़ सीट पर भी मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव सांसद रह चुके हैं। हालांकि उपचुनाव में अखिलेश यादव के भाई धर्मेंद्र यादव यहां से भारतीय जनता पार्टी से चुनाव हार गए थे। वावजूद इसके सियासी गलियारों में कहां यही जा रहा है कि कन्नौज और आजमगढ़ समाजवादी पार्टी के लिए पुराने गढ़ और मजबूत सीट है। इसलिए यहां पर धर्मेंद्र यादव या कोई और यादव परिवार से मजबूत प्रत्याशी उतारा जा सकता है।
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