- महिला का पीछा करना, अपशब्‍द कहना शील भंग करना नहीं: हाई कोर्ट | सच्चाईयाँ न्यूज़

बुधवार, 3 जनवरी 2024

महिला का पीछा करना, अपशब्‍द कहना शील भंग करना नहीं: हाई कोर्ट


 बॉम्बे उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने कहा है कि एक महिला का पीछा करना, उसे अपशब्द कहना और उसे धक्का देना आईपीसी की धारा 354 के तहत शील भंग करने का अपराध नहीं होगा. टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक वर्धा में न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी (जेएमएफसी) अदालत द्वारा सात साल पहले दोषी ठहराए गए एक व्यक्ति को राहत देते हुए हाई कोर्ट ने यह बात कही.न्यायमूर्ति अनिल पानसरे ने वर्धा के 36 वर्षीय मजदूर व्यक्ति को बरी करते हुए कहा, 'शिकायतकर्ता का पीछा करना और उसे अपशब्द कहना कष्टप्रद हो सकता है, लेकिन निश्चित रूप से एक महिला की शालीनता की भावना को ठेस नहीं पहुंचाएगा.'

आरोपी पर लगे थे ये आरोप
शिकायतकर्ता, जो एक कॉलेज छात्रा है, के अनुसार आरोपी ने कई बार उसका पीछा किया और उनके अपशब्द कहे. एक बार जब वह बाज़ार जा रही थी, तो उसने साइकिल से उसका पीछा किया और उसे धक्का दिया. नाराज़ होने के बावजूद वह अपना काम करती रहीं. लेकिन वह आदमी उसका पीछा करता रहा. शिकायतकर्ता ने कहा कि उसने फिर उसकी पिटाई की और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई.जज ने कहा, 'यह ऐसा मामला नहीं है कि याचिकाकर्ता ने उसे अनुचित तरीके से छुआ है या उसके शरीर के किसी विशिष्ट हिस्से को धक्का दिया है जिससे उसकी स्थिति शर्मनाक हो गई है. पीड़िता द्वारा भी उसके शरीर के किसी अंग से संपर्क की बात नहीं कही गई है. केवल इसलिए कि साइकिल पर सवार आवेदक ने उसे धक्का दे दिया, मेरी राय में यह ऐसा कृत्य नहीं कहा जा सकता है जो उसकी शालीनता की भावना को झकझोरने में सक्षम है.'

2016 में सुनाया जेएमएफसी अदालत ने फैसला
जेएमएफसी अदालत ने 9 मई, 2016 को उस व्यक्ति को आईपीसी की धारा 354 के तहत दोषी ठहराया था और उसे दो साल के कठोर कारावास और 2,000 रुपये का जुर्माना भरने की सजा सुनाई थी. इसके बाद आरोपी ने सत्र अदालत का दरवाजा खटखटाया जिसने 10 जुलाई, 2023 को उनकी अपील खारिज करते हुए फैसले को बरकरार रखा.याचिकाकर्ता ने वकील अश्विन इंगोले के माध्यम से एचसी में एक रिविजन आवेदन के माध्यम से दोनों आदेशों को चुनौती दी, जिसमें वैधता, शुद्धता और औचित्य पर सवाल उठाया गया. सहायक सरकारी वकील अमित चुटके ने व्यक्ति की दलीलों का विरोध किया.टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक यह देखते हुए कि मामले में महिला सहित केवल तीन गवाह हैं, न्यायमूर्ति पानसरे ने कहा कि उसकी गवाही के अलावा, याचिकाकर्ता के अपराध को साबित करने के लिए कोई अन्य सबूत नहीं है. उन्होंने कहा, 'उसके साक्ष्य धारा 354 की सामग्री को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. इसलिए, अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे मामले को साबित करने में विफल रहा. निचली अदालतों ने स्वीकार किए गए तथ्यों पर कानून लागू नहीं करने में गलती की है और इस प्रकार, गलत निष्कर्ष दिए हैं. इसलिए, याचिकाकर्ता ने एक मामला बनाया है.'

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