- बीजेपी को कर्नाटक में जेडीएस की बैसाखी की जरूरत क्यों पड़ रही है? | सच्चाईयाँ न्यूज़

शुक्रवार, 19 जनवरी 2024

बीजेपी को कर्नाटक में जेडीएस की बैसाखी की जरूरत क्यों पड़ रही है?

 

बीजेपी और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस का एनडीए में शामिल होना तो चार महीने पहले ही फाइनल हो गया था, बस सीटों को लेकर बातचीत होनी थी - और गठबंधन को औपचारिक रूप देना भर बाकी था.

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात में सारी चीजें पक्का करने की कोशिश हो रही है. 2006 के बाद से ये दूसरी बार है जब बीजेपी और जेडीएस साथ आये हैं. इससे पहले जेडीएस और कांग्रेस मिल कर गठबंधन सरकार चला चुके हैं, लेकिन 2019 में एचडी कुमारस्वामी की सरकार बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा के ऑपरेशन लोटस के शिकार हो गई थी - 4 साल बाद कुमारस्वामी गिले शिकवे भुला कर फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन की राजनीति के लिए तैयार हो गये हैं.

2023 के विधानसभा चुनाव की बात और है, लेकिन जेडीएस का बीजेपी के साथ आना कर्नाटक में सत्ताधारी कांग्रेस के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. असल में बीजेपी को जेडीएस की मदद की उन इलाकों में ही जरूरत है, जहां वो कमजोर पड़ रही है.

बीते दो लोक सभा चुनावों की बात करें, 2014 और 2019, तो कर्नाटक की सत्ता में न होने के बाद भी लोक सभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन कांग्रेस से बेहतर रहा है - 2019 में बीजेपी ने कर्नाटक की 28 में से 25 सीटें अकेले ही जीत ली थी.

कर्नाटक को बीजेपी के लिए दक्षिण का द्वार माना जाता रहा है. ऐसे में जबकि देश की राजनीति में दक्षिण और उत्तर की राजनीति चरम पर है, कर्नाटक अब बीजेपी के लिए दक्षिण का रास्ता आसान कर सकता है.

बीजेपी-जेडीएस गठबंधन क्यों?

कर्नाटक में बीजेपी को खड़ा करने और सत्ता दिलाने का क्रेडिट पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को हासिल है. येदियुरप्पा भले ही अपने ऑपरेशन लोटस के लिए कुख्यात रहे हों, लेकिन कर्नाटक की राजनीति में खासा दबदबा रखने वाले लिंगायत समुदाय के वो सबसे बड़े नेता हैं.

2023 के विधानसभा चुनावों के दौरान बीजेपी नेतृत्व येदियुरप्पा के साथ कुछ कुछ वैसे ही पेश आ रहा था जैसे राजस्थान में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ. लेकिन चुनाव हार जाने के बाद बीजेपी नेतृत्व को गलती का एहसास हुआ और येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र को सूबे में पार्टी की कमान सौंपनी पड़ी. अगर राजस्थान के नतीजे भी कर्नाटक जैसे होते तो वसुंधरा राजे को फायदा हो सकता था.

लिंगायत समुदाय के अलावा कर्नाटक की राजनीति में जिसका दबदबा है, वो है वोक्कालिगा समुदाय. बीजेपी की मुश्किल ये है कि वोक्कालिगा समुदाय में अब तक बीएस येदियुरप्पा जैसा कोई नेता नहीं मिल सका है. वोक्कालिगा समुदाय का समर्थन हासिल करने के लिए ही बीजेपी ने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री एसएम कृष्णा को पार्टी में लिया था, लेकिन वो कोई चुनावी फायदा नहीं दिला सके. अब भी बीजेपी को वोक्कालिगा से लिंगायत समुदाय जैसे समर्थन की दरकार है. जेडीएस से गठबंधन के बाद बीजेपी अब दक्षिण कर्नाटक के वोक्कालिगा समुदाय के वोट मिलने की उम्मीद कर सकती है.

जेडीएस का बीजेपी के साथ जाना कांग्रेस के लिए काफी नुकसानदेह साबित हो सकता है. कर्नाटक में जेडीएस करीब 14 फीसदी वोट शेयर है. हसन, मांड्या, चिक्काबल्लापुर और बेंगलुरू ग्रामीण जैसी लोक सभा सीटों पर कुमारस्वामी और उनकी पार्टी जेडीएस का अच्छा प्रभाव है - और बीजेपी को इन्हीं इलाकों में मदद की जरूरत है.

बेंगलुरू ग्रामीण सीट फिलहाल कांग्रेस के पास है, जहां से कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के भाई डीके सुरेश सांसद हैं. पुराने मैसुरू के इलाकों में 2023 के चुनाव में वोक्कालिगा लोगों ने कांग्रेस का सपोर्ट किया था, क्योंकि वे डीके शिवकुमार को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में देखने लगे थे. लोक सभा चुनाव में कांग्रेस को वोक्कालिगा लोगों की नाराजगी झेलनी पड़ सकती है - और जेडीएस को साथ लेकर बीजेपी ऐसी ही बातों का फायदा उठाने की कोशिश करेगी.

जेडीएस से क्या चाहती है बीजेपी?

न तो 2014 और न ही 2019, बीजेपी बीते दोनों चुनावों में कर्नाटक की सत्ता में नहीं थी. फिर भी बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा. 2014 की तुलना में देखें तो 2019 में बीजेपी ने बेहतरीन प्रदर्शन किया था. कर्नाटक की 28 में से 25 लोक सभा सीटों पर बीजेपी ने कब्जा कर लिया था, और एक सीट ऐसी भी थी जिस पर निर्दलीय उम्मीदवार सुमनलता की जीत हुई थी, जिसे बीजेपी का समर्थन हासिल था.

2019 के आम चुनाव में जेडीएस और कांग्रेस दोनों को एक एक सीट से ही संतोष करना पड़ा था. हालांकि, 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी 224 विधानसभा सीटों में सिर्फ 66 पर ही जीत हासिल कर सकी, और 135 सीटें जीतकर कांग्रेस ने सरकार बना ली.

लगता नहीं कि बीजेपी और जेडीएस के बीच सीटों के बंटवारे में कोई दिक्कत आने वाली है. अव्वल तो बीजेपी अपनी जीती हुई सीटें अपने पास ही रखेगी, और हारी हुई संसदीय सीटों पर जेडीएस को चुनाव लड़ने को कहेगी, लेकिन एक-दो सीट पर फेरबदल तो हो ही सकती है. गठबंधन की राजनीति में हर जगह ये होता ही है.

जेडीएस को बीजेपी की जरूरत अस्तित्व बचाने के लिए जरूरी हो गया है, और कुछ न सही कम से कम जेडीएस एचडी देवगौड़ा के गढ़ में तो अपना दबदबा कायम रखना चाहेगी ही - बदले में तो बीजेपी के लिए बहुत कुछ किया जा सकता है. बीजेपी भी तो बस यही चाहती है.

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