भारत में कुश्ती विवाद खत्म होता नहीं दिख रहा है। रेसलिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया का निलंबित पैनल और तदर्थ समिति आमने-सामने आ गई है। दोनों ही नेशनल चैंपियनशिप का आयोजन कराना चाहते हैं। यह खिलाड़ियों के लिए असमंजस की स्थिति है।
इसके साथ ही यह भी दावा किया गया कि चुनाव जीतने वाले पहले निलंबन को कोर्ट में चुनौती देगा।
16 जनवरी को कार्यकारी समिति की बैठक होने वाली है जिसमें वह आगे की रणनीति को लेकर चर्चा करेंगे। वहीं इस बैठक में एजग्रुप के नैशनल्स को लेकर चर्चा की जाएगी। तदर्थ पैनल पहले ही घोषणा कर चुका है कि वह तीन फरवरी से जयपुर में सीनियर राष्ट्रीय चैम्पियनशिप और अगले छह हफ्तों के अंदर ग्वालियर में आयु ग्रुप की चैम्पियनशिप का आयोजन करेगा।
सरकार ने राष्ट्रीय खेल संहिता और डब्ल्यूएफआई संविधान के उल्लंघन का हवाला देते हुए 24 दिसंबर को नवनिर्वाचित संस्था को महासंघ के चुनाव के तीन दिन बाद निलंबित कर दिया था। डब्ल्यूएफआई कह चुका है कि वह न तो निलंबन को स्वीकार करता है और न ही कुश्ती का कामकाज देखने के लिए भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) द्वारा गठित तदर्थ पैनल को मान्यता देता है।
डब्ल्यूएफआई के अध्यक्ष संजय सिंह ने पीटीआई से कहा, ''हमें सुचारू रूप से काम करने वाले महासंघ की जरूरत है। हम इस मामले को अगले हफ्ते अदालत में ले जा रहे हैं। हमें यह निलंबन स्वीकार्य नहीं है क्योंकि हमारा चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से हुआ था। हमने 16 जनवरी को कार्यकारी समिति की बैठक भी बुलाई है। '' वाराणसी के संजय सिंह ने बताया कि तदर्थ पैनल मुश्किल की घड़ी में काम करने के लिए किस तरह ठीक नहीं था।
उन्होंने कहा, ''आपने देखा होगा कि जगरेब ओपन के लिए किस तरह टीम की घोषणा की गई थी। पांच वजन वर्गों में प्रतिनिधित्व ही नहीं था। उचित महासंघ के बिना ऐसा ही होगा। अगर कुछ पहलवान अपने संबंधित वर्ग में उपलब्ध नहीं थे तो उनकी जगह किसी अन्य खिलाड़ी को क्यों नहीं लिया गया? '' संजय सिंह ने कहा, ''जब महासंघ काम कर रहा था तो कभी भी किसी भी टूर्नामेंट में ऐसा कोई भी वजन वर्ग नहीं रहा जिसमें भारत ने प्रतिनिधित्व नहीं किया हो। और एशियाई खेलों में हिस्सा लेने वाली उसी टीम को चुनने के पीछे का औचित्य क्या था। अन्य दावेदार भी शामिल थे। ''
खेल मंत्रालय ने डब्ल्यूएफआई की 21 दिसंबर को आम परिषद की बैठक में महासचिव की अनुपस्थिति पर आपत्ति व्यक्त की थी। डब्ल्यूएफआई ने कहा कि उसने किसी भी नियम का उल्लघंन नहीं किया है और संविधान के अनुसार अध्यक्ष के पास फैसले लेने का अधिकार है और महासचिव उसके इन फैसलों को लागू करने के लिए बाध्य होगा।
एक टिप्पणी भेजें