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शनिवार, 6 जनवरी 2024

संदीप पांडेय ने 21 साल बाद मैग्सेसे अवॉर्ड लौटाने का क्यों लिया फ़ैसला


 लेखक-चिंतक एवं सोशलिस्ट पार्टी के महासचिव संदीप पांडेय ने 30 दिसंबर की रात को वर्ष 2002 में मिले प्रतिष्ठित पुरस्कार रेमन मैग्सेसे को वापस करने की घोषणा की है.साथ ही उन्होंने अमेरिकी विश्वविद्यालयों से हासिल की गई डिग्रियां भी लौटाने की घोषणा की है.उन्होंने यह क़दम इसराइल-फ़लस्तीन संघर्ष में अमेरिका की भूमिका के चलते उठाया है.लेकिन संदीप पांडेय की घोषणा को लेकर कई सवाल भी उठ रहे हैं कि उन्होंने रेमन मैग्सेसे अवॉर्ड वापस करने के लिए यही वक्त क्यों चुना?क्या जब उन्हें यह अवॉर्ड दिया जा रहा था तब उन्हें नहीं पता था कि इस अवॉर्ड को अमेरिकी संस्था के सहयोग से दिया जाता है, उस वक़्त उन्होंने इस अवॉर्ड को क्यों नहीं वापस किया?उन्होंने इन सवालों के जवाब में कहा, "इस अवॉर्ड को वापस करने का मन तो कुछ समय पहले बना चुका था लेकिन मैं ये ज़रूर कहूंगा कि इस ठोस निर्णय को लेने में मुझे महिला पहलवानों से प्रेरणा मिली. उनके सामने एक बहुत शक्तिशाली आदमी है जो सत्ता पक्ष से जुड़ा है. इसके बावजूद जब विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया ने उसके ख़िलाफ़ निर्णय लिया और फुटपाथ पर जाकर अपने मेडल रख दिए तो मुझे उनकी बहादुरी ने प्रेरित किया."संदीप पांडेय ने अवॉर्ड वापसी की घोषणा की मुख्य वजह के बारे में बताया, "वर्तमान में अमेरिका फ़लस्तीन के ख़िलाफ़ युद्ध में बेशर्मी से खुलकर इसराइल का साथ दे रहा है और अभी भी इसराइल को हथियार बेच रहा है. ऐसे में मेरे लिए यह असहनीय हो गया है कि मैं रेमन मैग्सेसे पुरस्कार रखूं, इसलिए इसे लौटाने का फैसला लिया है."दरअसल मैग्सेसे पुरस्कार रॉकफेलर फ़ाउंडेशन और फ़ोर्ड फ़ाउंडेशन से प्रायोजित होते हैं और ये दोनों अमेरिकी संस्थाए हैं.

अमेरिकी विश्वविद्यालयों की डिग्रियां भी वापस करेंगे

संदीप पांडेय ने न्यूयॉर्क स्थित सिरैक्यूस विश्वविद्यालय से मैन्यूफैक्चरिंग व कम्प्यूटर अभियांत्रिकी की और कैलिफोर्निया के विश्वविद्यालय बर्कले से मैकेनिकल अभियांत्रिकी की डिग्रियां हासिल की थीं. वे इसे भी लौटा रहे हैं.हालांकि वे स्पष्टता से कहते हैं कि अमेरिकी जनता या अमेरिका से उनका कोई विरोध नहीं है.

वो कहते हैं कि अमेरिका में मानवाधिकारों के उच्च आदर्शों का पालन होता है. लेकिन ऐसा तीसरी दुनिया में भी हो, अमेरिका इसको लेकर चिंतित नहीं है.संदीप पांडेय को जब पुरस्कार मिला था, तब भी ये पुरस्कार अमेरिकी संस्थाएं ही प्रायोजित कर रही थीं, ऐसे में एक सवाल यह भी उभर रहा है कि उन्होंने इसे स्वीकार ही क्यों किया था.इसके जवाब में वे कहते हैं, "वहां जाने से पहले तक केवल यह पता था कि यह बहुत बड़ा अवॉर्ड है. मैग्सेसे के बारे में सुना था कि वो कम्युनिस्ट विरोधी थे. उस वक़्त 2001 में अमेरिका पर आतंकवादी हमला हुआ था. एसोसिएट प्रेस के एक पत्रकार ने उस प्रेस कांफ्रेंस में पूछा कि अमेरिका की आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध की जो नीति है उस पर क्या कहना है? मैंने कहा कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी देश है."

50,000 डॉलर की अवॉर्ड राशि लौटा दी

संदीप पांडेय इस बातचीत में यह भी दावा करते हैं कि वे पुरस्कार की राशि पहले ही लौटा चुके हैं.

वे कहते हैं, "फिलीपींस की राष्ट्रपति से पुरस्कार प्राप्त करने के अगले दिन मुझे मनीला स्थित अमेरिकी दूतावास पर अमेरिका के इराक़ पर होने वाले सम्भावित हमले के ख़िलाफ़ एक प्रदर्शन में शामिल होना था. तब मुझसे कहा गया कि आपके वहां से जाने से फ़ाउंडेशन की बदनामी होगी."मैंने उन्हें याद दिलाया कि जिन चार कारणों से उन्होंने मुझे यह पुरस्कार दिया है उसमें एक भारत के नाभिकीय परीक्षण के ख़िलाफ़ 1998 में वैश्विक नाभिकीय निशस्त्रीकरण के उद्देश्य से पोकरण से सारनाथ तक निकाली गई पदयात्रा थी. यह 88 दिन की 1500 किलोमीटर की पदयात्रा थी. उस वक़्त मैंने उनसे कहा कि आप मुझे मजबूर कर रही हैं कि मैं अपनी स्वतंत्रता और आपके पुरस्कार के बीच में किसे चुनूं"अंततः मैं प्रदर्शन में शामिल हुआ. उसके बाद फिलीपींस के एक अखबार ने दो सितंबर 2002 को एक संपादकीय में मुझे चुनौती दी और लिखा कि यदि मैं उतना ही सिद्धांतवादी हूं जितना कि मैं चाहता हूं तो मैं यह पुरस्कार अमेरिकी दूतावास को वापस देकर जाऊँ. यह पुरस्कार मैं अमेरिकी दूतावास को क्यों वापस करता क्योंकि यह तो मैग्सेसे फ़ाउंडेशन से मिला था. लेकिन इस चुनौती ने मेरे लिये निर्णय लेना ज़रूर आसान कर दिया. मैंने भारत लौटने से पहले 50,000 डॉलर की अवॉर्ड राशि को हवाई अड्डे पर ही वापस कर दिया."पुरस्कार उस वक़्त मैंने इसलिए रखा क्योंकि यह फिलीपींस के बहुत ही सम्मानित लोकप्रिय भूतपूर्व राष्ट्रपति के नाम पर है और भारत में यह ऐसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों को मिल चुका है, जैसे जयप्रकाश नारायण, विनोबा भावे और बाबा आम्टे, जो मेरे आदर्श हैं."

अवॉर्ड वापसी से क्या फ़र्क पड़ेगा

हालांकि अवॉर्ड वापसी को लोग राजनीतिक चश्मे से भी देखते हैं. भारत की मौजूदा केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ कई लेखक और कलाकार और इन दिनों पहलवानों ने अपने अवॉर्ड वापस लौटाएं हैं.अवॉर्ड वापसी से वास्तविकता में कितना अंतर पड़ता है, इस पर संदीप पांडेय कहते हैं, "अन्याय करने वाला उतना ही दोषी है जितना अन्याय सहने वाला. अन्याय, अत्याचार, शोषण को ख़त्म करना है तो उसके ख़िलाफ़ लोगों को बोलना पड़ेगा. अगर हम चुप रहेंगे तो हम उस अन्याय में भागीदार होंगे.""अगर यह आरोप लगाया जाता है कि यह किसी राजनीति से प्रेरित है तो मुझे लगता है कि निश्चित रूप से यह एक ग़लत आरोप है. हम जो राजनीति कर रहे हैं वह इस दुनिया को बेहतर बनाने वाली राजनीति है, कब्ज़ा करने वाली राजनीति नहीं है. साहित्यकार हों चाहे वह महिला पहलवान ऐसे बहुत से लोगों ने अपने अवॉर्ड वापस किये हैं और अपने करियर को दांव पर लगाया है. यह एक भावनात्मक आधार है लेकिन इस आधार को लोकतंत्र मानती ही नहीं है. हम अपना रोष प्रकट करने के लिए ऐसा करते हैं ताकि लोकतंत्र और भारत का संविधान ज़िंदा रहे."अबतक जितने लोगों ने भी पुरस्कार वापस किये हैं उन्होंने आर्थिक, सामाजिक और बराबरी की कल्पना को साकार देने वाली इस विचारधारा और इस राजनीति से प्रेरित होकर अपने पुरस्कारों को वापस किया है और इसी भावना से मैं भी अपना पुरस्कार वापस कर रहा हूं."

संदीप पांडेय और विवाद

संदीप पांडेय बीएचयू आईआईटी में प्रोफ़ेसर भी रह चुके हैं लेकिन वैचारिक संघर्ष में उन्हें संस्थान से विदा लेना पड़ा था.संदीप पांडेय विभिन्न मुद्दों पर मुखर रहे हैं. 2016 में उन्हें बीएचयू आईआईटी में गेस्ट फ़ैकल्टी के पद से मुक्त कर दिया गया. तब आरोप लगे थे कि प्रशासन ने राजनीतिक मंशा से उनको हटाया है.

साल 2019 में जब केंद्र सरकार ने जब भारत प्रशासित जम्मू कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करते हुए अनुच्छेद 370 हटा दिया था तो उन्होंने विरोध में लखनऊ में धरने पर बैठने की घोषणा की थी. बाद में उन्होंने आरोप लगाया कि यूपी पुलिस ने उन्हें घर में ही नज़रबंद कर लिया था.उनका दावा है कि आज इसराइल और फ़लस्तीनी संघर्ष की स्थिति में बदलाव तभी होगा जब अमेरिका पर दुनिया का दबाव बढ़ेगा.वे कहते हैं, "मैं यह नहीं कह रहा हूं कि मेरे अवॉर्ड वापस करने से दवाब बनेगा लेकिन अगर पूरी दुनिया में आवाज उठेगी तो अमेरिका मजबूर होगा और मध्यस्थता करके शांति स्थापित करेगा."

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