नई दिल्ली:प्रवर्तन निदेशालय ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), 2002 के प्रावधानों के तहत मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति राजेंद्र प्रसाद की लाखों की संपत्ति को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया है।ईडी की ओर से दी गई जानकारी के मुताबिक ईडी ने मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति राजेंद्र प्रसाद की आय से अधिक संपत्ति (डीए) मामले के संबंध में पीएमएलए के तहत 64.53 लाख रुपये की अचल और चल संपत्ति को अस्थायी रूप से जब्त कर लिया है।जब्त की गई अचल संपत्तियां परिवार के सदस्यों और राजेंद्र प्रसाद के परिवार के स्वामित्व वाले ट्रस्ट के नाम पर पंजीकृत हैं और उत्तर प्रदेश के संत कबीर नगर जिले के धनघटा में स्थित हैं।ईडी ने पूर्व वीसी राजेंद्र प्रसाद और अन्य के खिलाफ भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 और आईपीसी, 1860 के प्रावधानों के तहत विशेष सतर्कता इकाई (एसवीयू), पटना द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के आधार पर जांच शुरू की। प्रसाद पर आरोप था कि उन्होंने बोधगया में मगध विश्वविद्यालय के कुलपति रहने के दौरान अन्य के साथ मिलकर आपराधिक साजिश रची और विभिन्न गोपनीय मुद्रण कार्यों (ओएमआर शीट और अन्य) की छपाई और अन्य प्रक्रिया में बिहार सरकार को धोखा देकर अकूत संपत्ति बनाई।ईडी की कार्रवाई से पहले विशेष सतर्कता इकाई मे पटना ने राजेंद्र प्रसाद से संबंधित परिसरों पर तलाशी ली और 1.84 करोड़ रुपये की नकदी जब्त की और राजेंद्र प्रसाद के बैंक खातों में जमा 90.79 लाख रुपयों को फ्रीज कर दिया।जांच से पता चला कि सितंबर 2019 से नवंबर 2021 तक, प्रसाद ने फर्जी तरीके से प्रप्त धन से अपने बेटे अशोक कुमार के नाम पर 5 संपत्तियां खरीदी। वहीं आरपी कॉलेज का मैनेजमेंट उनके भाई अवधेश प्रसाद करते थे, जिनके जरिये राजेंद्र प्रसाद ने आरपी कॉलेज के नाम पर हासिल की गई संपत्तियों को प्यारी देवी मेमोरियल वेलफेयर ट्रस्ट को लीज पर ट्रांसफर कर दिया।ईडी के मुताबिक राजेंद्र प्रसाद ने कैश के रूप में प्राप्त पैसों को प्यारी देवी मेमोरियल वेलफेयर ट्रस्ट (प्रसाद का परिवार के स्वामित्व वाला ट्रस्ट) के बैंक खाते में जमा कर दिया, ताकि इसे उक्त ट्रस्ट की आय के रूप में दर्शाया जा सके।जांच एजेंसी का कहना है कि केस की तहकीकात में पता चला है कि राजेंद्र प्रसाद द्वारा एक 'सुनियोजित साजिश' रची गई थी, जिसमें उनके परिवार के सदस्यों को शामिल किया गया था ताकि अपराध की आय से अर्जित संपत्तियों को बेदाग संपत्तियों के रूप में पेश किया जा सके और उक्त परिवार के स्वामित्व वाले ट्रस्ट को एक माध्यम के रूप में इस्तेमाल किया जा सके।
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