- लश्कर-ए-तैयबा से कनेक्शन. कैसे बना नया आतंकी संगठन TRF, जिसका आतंकी कश्मीर में मारा गया? | सच्चाईयाँ न्यूज़

मंगलवार, 14 नवंबर 2023

लश्कर-ए-तैयबा से कनेक्शन. कैसे बना नया आतंकी संगठन TRF, जिसका आतंकी कश्मीर में मारा गया?


श्मीर की शांति पाकिस्तान को रास नहीं आ रही है. वह अपने गुर्गों को किसी न किसी रूप में यहां भेज रहा है. ऐसा ही एक संगठन है द रेजिस्टेंस फ्रंट. हाल में जम्मू-कश्मीर के शोपियां में सुरक्षा बलों ने इसका एक आतंकी मार गिराया है.आतंकी की पहचान मयस्सर अहमद डार के तौर पर हुई है. मयस्सर हफ्तेभर पहले ही संगठन टीआरएफ में शामिल हुआ था. हाल में हुई कई घटनाओं में इस संगठन का नाम सामने आया है.ऐसे में जानना जरूरी हो चला है कि आखिर यह संगठन क्या है, कहां से आया, कौन हैं इसको चलाने वाले, पहले से मौजूद आतंकी संगठन के बावजूद इसे बनाने की जरूरत क्यों पड़ी और भारत सरकार भारत सरकार इसे किस रूप में देखती है?द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) यूं तो साल 2019 में चर्चा में आया था, पर साल 2020 में यह कश्मीर घाटी में होने वाले ज्यादातर छोटे-बड़े हमले की जिम्मेदारी लेने लगा. तब सुरक्षा बलों को शक हुआ और वे इस नतीजे पर पहुंचे कि यह नई बोतल में पुरानी शराब है. इनके आका पाकिस्तान में बैठकर ऐसे संगठन को बनाने में कामयाब हो गए जो देखने में भारतीय लगे और काम आतंकियों वाले करे. इससे पूरी दुनिया में पाकिस्तान की बदनामी भी नहीं होगी और उसकी आतंक की दुकान भी चलती रहेगी.

लश्कर-ए-तैयबा का सहयोगी

जांच-पड़ताल में पता चला कि यह संगठन लश्कर-ए-तैयबा का ही सहयोगी है. सुरक्षा बलों को कन्फ्यूज करने के इरादे से ये कभी हिजबुल मुजाहिदीन या किसी और स्थापित आतंकी संगठन का नाम भी प्रचारित करते हैं. इस संगठन के साथ कश्मीर के भटके हुए युवाओं को जोड़ने की का काम बराबर चल रहा है. उन्हें ट्रेनिंग पाकिस्तान में दी जा रही है. चूंकि, वे स्थानीय हैं, ऐसे में किसी भी गड़बड़ी में पकड़े या मारे जाने पर पाकिस्तान खुद को महफूज पाता है.

पिछले साल इसके 108 आतंकी मारे गए

पाकिस्तान को लगता है कि यह स्थापित करना उसके लिए बेहद आसान होगा कि इस संगठन का उससे कोई रिश्ता नहीं है. भारत सरकार ने इस संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया है. इनकी सक्रियता का पता इस बात से भी चलता है कि पिछले साल मारे गए सर्वाधिक 108 आतंकी इसी संगठन से थे. 35 जैश-ए-मोहम्मद के मारे गए. भटके हुए 74 फीसदी युवा इसी संगठन से जुड़े. ज्यादातर हमलों की जिम्मेदारी भी आगे बढ़कर इसी ने ली. इसके नेता के रूप में कश्मीरी युवा साजिद जट्ट, सज्जाद गुल, स्लिम रहमानी प्रचारित किये गए. ये सबके सब हाफीज सईद के संगठन लश्कर के लिए काम करते रहे हैं.इसके कर्ता-धर्ता चाहते हैं कि आतंक की यह पौध कश्मीर और कश्मीरियों के आंदोलन के रूप में जानी-पहचानी जाए, जिसे भारत सरकार, सेना, कश्मीर पुलिस ने बेनकाब कर दिया है. इसकी सक्रियता के बाद पुराने स्थापित आतंकी संगठनों का नाम सामने आना बंद हो गया. इस बीच जो लोग पकड़े गए उन सबने इसी का नाम लिया. बड़े पैमाने पर इस संगठन से युवाओं को जोड़ने का काम जारी है. प्रतिबंध की वजह से अब यह सारा काम छिपकर हो रहा है. केंद्र सरकार ने अब तक करीब चार दर्जन ऐसे आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित किया है.

कहां से हो रही फंडिंग?

इस संगठन के उद्देश्य के पीछे फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स से मिलने वाली मदद को जारी रखना है. पाकिस्तान पर दबाव था कि वह आतंकी फंडिंग पर सफाई दे. मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी फंडिंग की वजह से पेरिस स्थित इस संस्था ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट में डाल रखा है. फंडिंग को जारी रखने और अंतर्राष्ट्रीय आरोपों से बचने को जरूरी है कि पाकिस्तान ऐसा शो करे कि उसका किसी भी आतंकी संगठन या आतंकवाद से कोई लेना-देना नहीं है.

द रेजिस्टेंस फ्रंट

नए संगठन का नाम जानबूझकर ऐसा रखा गया है कि यह स्वदेशी आंदोलन लगे, धार्मिक नहीं. क्योंकि अब तक सामने आए सभी आतंकी संगठनों के नाम धार्मिक से लगते हैं. साल 2019 में कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद लश्कर-ए-तैयबा के ऑनलाइन सहयोगी के रूप में इसकी शुरुआत हुई. इसका इरादा भारत के खिलाफ प्रोपेगंडा फैलाना था. देखते ही देखते यह पॉपुलर हो गया और फिर इसे सीधे मैदान में उतारने का फैसला इसके आकाओं ने कर लिया.फिलहाल यह संगठन सेना, पुलिस के निशाने पर है. केंद्र सरकार ने इसी साल की शुरुआत में इसकी गतिविधियों को देखते हुए इस पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. इसी संगठन ने अनंतनाग में बीते सितंबर में हुए एक बड़े हमले की जिम्मेदारी भी ली थी, जिसमें सेना और कश्मीर पुलिस के तीन बहादुर अफसर कर्नल मनप्रीत, मेजर आशीष और डीएसपी हुमायूं भट्ट शहीद हुए थे.

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