डॉलर की बादशाहत को खत्म करने के लिए दुनिया के कई देश एकजुट हो रहे हैं. कुछ समय पहले चर्चा थी कि चीन और रूस समेत मिलकर नई करंसी लाने की तैयारी चल रही है. जो डॉलर को पीछे छोड़ने की दिशा में अहम कदम बताया गया.
सऊदी अरब के साथ चीन का ताजा समझौता 6.93 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है. इस एग्रीमेंट के बाद दोनों देश पैसे भी बचा पाएंगे और समय भी. व्यापार भी आसान होगा. जानिए क्या है करंसी स्वैप एग्रीमेंट और यह कैसे डॉलर की बादशाहत को झटका देगा.
क्या है करंसी स्वैप एग्रीमेंट?
यह दो देशों के बीच एक वित्तीय समझौता है. जिसमें दोनों देश अपनी करंसी का एक्सचेंज रेट और अन्य चीजें कुछ समय के लिए तय कर लेते हैं फिर उसी के मुताबिक लेनदेन आगे चलता है. मीडिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि यह समझौता 6.93 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हुआ है.
इसका मतलब यह हुआ कि एक-दूसरे देश के केन्द्रीय बैंक अपने यहां इतनी राशि रख सकेंगे. जब भी चीन सऊदी अरब से तेल खरीदेगा तो उसे डॉलर में पेमेंट नहीं करना होगा. सऊदी अरब के केन्द्रीय बैंक में उपलब्ध चीनी करंसी युवान से वह अपना रकम पहले से तय दरों पर ले लेगा. ठीक इसी तरह सऊदी अरब को चीन से कुछ भी आयात करने पर डॉलर नहीं देना होगा. चीन के पास मौजूद सऊदी मुद्रा रियाल से तय डर पर भुगतान ले लेगा. यह दोनों के लिए व्यापार को आसान बनाता है.
चीन का 40 देशों के साथ हो चुका है करंसी स्वैप एग्रीमेंट
इस तरह का समझौता चीन ने पहली बार नहीं किया है. अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के मुताबिक, चीन अब तक दुनिया के 40 से अधिक देशों के साथ इसी तरह का एग्रीमेंट कर चुका है. इतना बड़ा आर्थिक नेटवर्क और किसी देश ने अब तक नहीं बनाया है.
कितना असर दिखेगा?
अमेरिकी डॉलर के प्रभाव को कुछ समय के अंदर खत्म करना संभव नहीं है, लेकिन भारत-चीन जैसे बड़े देशों की ओर से किए जा रहे इस तरह के छोटे-छोटे प्रयास आर्थिक रूप से न केवल इन देशों को आजादी देने में मददगार होंगे, बल्कि डॉलर पर निर्भरता भी कम होगी. जितने ज्यादा देशों के साथ इस तरह के समझौते होते जाएंगे, उतनी ही डॉलर पर निर्भरता भी कम होती जाएगी. नतीजा, डॉलर की बादशाह धीरे-धीरे घटती जाएगी.
लंबे समय से दुनिया के देश आयात-निर्यात के लिए डॉलर का उपयोग करते आ रहे हैं. लोकल करंसी में खरीद-फरोख्त नहीं हो पाती थी. डॉलर पाने के लिए देश के केन्द्रीय बैंक को मशक्कत तो नहीं करना पड़ता लेकिन एक्सचेंज करने में अतिरिक्त धन जरूर जाता है. इस तरह के समझौते डॉलर पाने में लगने वाले समय को भी बचाएंगे और पैसा भी.
हाल के वर्षों में यह प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है. इसी कड़ी में सऊदी अरब-चीन, भारत-श्रीलंका जैसे समझौते सामने आ रहे हैं. पूरी उम्मीद है कि आने वाले दिनों में ऐसे समझौते और देखने को मिलेंगे.
भारत का 23 देशों के साथ है करंसी स्वैप एग्रीमेंट
हाल के वर्षों में भारत ने भी डॉलर पर निर्भरता कम करने की ओर ध्यान दिया है. अब तक 23 देशों के साथ संभवतः दूसरा बड़ा नेटवर्क भारत ने ही बनाया है. भारत ने सबसे पहले उन देशों के साथ इस समझौते को आगे बढ़ाने पर जोर दिया जहां से व्यापार घाटा ज्यादा है. मतलब उन देशों से आयात ज्यादा और निर्यात बहुत कम होता है. ज्यादा आयात की स्थिति में ज्यादा डॉलर का इंतजाम करना पड़ता है.
इस समझौते के बाद भारत रुपए में भुगतान कर पा रहा है. भारत ने जो समझौते किये हैं उनमें तेल और गैस आपूर्ति वाले देश ज्यादा शामिल हैं. इनमें सऊदी अरब, यूनाइटेड अरब अमीरात, कतर जैसे देश भी हैं तो जापान, दक्षिण अफ्रीका और सिंगापुर जैसे देश भी शामिल हैं. इस तरह के सौदे निश्चित अवधि और निश्चित मुद्रा के लिए मित्र देशों के बीच हो रहे हैं.
भारत के साथ अपनी-अपनी मुद्रा के साथ व्यापार करने में कई देशों ने रुचि दिखाई है. यह प्रयास करंसी स्वैप एग्रीमेंट से अलग हैं. अब दुनिया के अनेक देशों के बैंकों ने 50 से ज्यादा वोस्ट्रो खाते खोले हैं. इसके माध्यम से भी दो देश अपनी मुद्रा में व्यापार कर सकते हैं. इनमें रूस, जर्मनी, इजरायल जैसे प्रभावशाली देश हैं तो कई छोटे देश भी इस सूची में शामिल हैं.
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