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शनिवार, 28 अक्तूबर 2023

ली केचयांग की मौत क्यों है शी जिनपिंग के लिए ख़तरनाक?

 


चीन के पूर्व प्रधानमंत्री ली केचयांग का 68 साल की उम्र में हार्ट अटैक से निधन हो गया. चीन के सरकारी मीडिया के अनुसार, शुक्रवार रात 12 बजकर 10 मिनट पर उन्होंने आख़िरी सांस ली.

ली इसी साल मार्च में प्रधानमंत्री पद से हटे थे.

एक समय उन्हें चीन का भावी राष्ट्रपति बताया जाता था मगर इस दौड़ में वह राष्ट्रपति शी जिनपिंग से पिछड़ गए थे.

एक अनुभवी अर्थशास्त्री रहे केचयांग चीन के दूसरे सबसे बड़े पद पर रहे मगर हाल के सालों में उन्हें वहां के शीर्ष नेतृत्व ने अलग-थलग कर दिया था.

वह इकलौते ऐसे पूर्व शीर्ष अधिकारी थे जो शी के वफ़ादारों में नहीं थे.

थिंक टैंक कार्निगी चाइना के नॉन रेज़िडेंट स्कॉलर इयान चोंग ने कहा, "ली की मौत का मतलब है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) में वरिष्ठ स्तर से नरम विचारों वाली आवाज़ का जाना. और अब वहां इस ज़िम्मेदारी को उठाने वाला कोई नहीं बचा है."

वह कहते हैं, "इसका मतलब है कि शी अब शायद बिना किसी विरोध के ताकत और सत्ता का इस्तेमाल कर सकते हैं."

शी जिनपिंग के लिए क्यों ख़तरनाक?

चीन में किसी नेता की मौत बड़े बदलावों को जन्म दे सकती है, जैसा कि माओ के मामले में हुआ था.

या फिर राजनीतिक उथल-पुथल भी पैदा हो सकती है, जैसा कि हु याओबांग की मौत के बाद हुआ था. 1989 में शोक का माहौल देखते ही देखते तियेनएनमेन चौक वाले विरोध प्रदर्शनों में बदल गया था.

इसलिए ली केचयांग के निधन के बाद स्थिरता बनाए रखने के लिए चीन में कई क़दम उठाए जा रहे हैं.

वीपीएन का इस्तेमाल रोकने की कोशिश की जा रही है ताकि चीनी नागरिक इंटरनेट के उन हिस्सों तक न पहुंच सकें जिनपर कम्युनिस्ट पार्टी का नियंत्रण नहीं है.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी नहीं चाहती है कि एक लोकप्रिय, उदार और दूसरे नम्बर के नेता रहे केचयांग की मौत का शोक वर्तमान राष्ट्रपति शी जिनपिंग के नेतृत्व वाले प्रशासन की आलोचना में बदल जाए.

ऐसा सिर्फ इसलिए नहीं कि ली की मौत अचानक हो गई बल्कि इसलिए क्योंकि वह चीन को शी जिनपिंग से अलग तौर तरीकों से चलाना चाहते थे.

वह ऐसे शख्स थे जिन्हें विचारधारा से ख़ास मतलब नहीं था. यही कारण था कि वह देश में सबसे अहम फ़ैसले लेने वाली ताक़तवर पोलितब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी के सात सदस्यों में अपनी तरह के इकलौते सदस्य थे.

स्मार्ट राजनेता

चीन के सोशल मीडिया पर उनकी मौत पर दुख जताया रहा है. कई लोग हैरानी और दुख ज़ाहिर कर रहे हैं मगर बहुत सी पोस्ट्स पर कॉमेंट करने पर रोक लगी हुई है.

चीनी सोशल मीडिया वेबसाइट वीबो पर एक यूज़र ने कहा, "यह बहुत चौंकाने वाली घटना है, वह अभी काफ़ी कम उम्र के थे."

एक अन्य ने लिखा कि 'उनकी मौत ऐसी है मानो हमारे घर का का एक पिलर हट गया हो.'

ली की मौत की ख़बरें सरकारी मीडिया में भी हैं. उनमें चीनी कम्युनिस्ट पार्टी और देश के लिए उनके योगदान को याद किया गया है.

चीन में पूर्व नेताओं की मौत पर विरोध प्रदर्शन होते रहे हैं. पिछले साल पूर्व राष्ट्रपति जियांग ज़ेमिन की मौत पर बहुत ज़्यादा शोक देखने को मिला था. इसे राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ख़िलाफ़ एक तरह की नाराज़गी भी माना गया.

ली को अपनी पीढ़ी के सबसे स्मार्ट राजनेताओं में गिना जाता था.

जब माओ की सांस्कृतिक क्रांति, जिसमें लाखों लोगों की जान जाने का अनुमान लगाया जाता है, ख़त्म हुई थी तो चीन में विश्वविद्यालयों को फिर से खोला गया था. उस समय केचयांग का दाख़िला प्रतिष्ठित पेकिंग यूनिवर्सिटी के लॉ स्कूल में हुआ था.

चीन के बाहर उन्हें 'ली केचयांग इंडेक्स' के लिए भी जाना जाता है. यह टर्म 'दि इकॉनमिस्ट' ने चीन की आर्थिक प्रगति को मापने के एक अनौपचारिक पैमाने के लिए गढ़ी थी.

साफ़गोई में यक़ीन रखने वाले शख़्स

जुलाई 1955 को जन्मे ली केचयांग एक ठीकठाक परिवार से सम्बंध रखते थे. उनके पिता पूर्वी चीन के अनहुइ प्रांत की दिंग्युआन काउंटी के एक अधिकारी थे.

ली केचयांग चीन में सबसे कम उम्र के प्रांतीय गवर्नर रहे और बाद में पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के शीर्ष लोगों के समूह यानी पोलितब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी में जगह बनाने में कामयाब रहे.

एक समय ये क़यास लगाए जा रहे थे कि उन्हें शी जिनपिंग से पहले चीन के राष्ट्रपति रहे हू जिनताओ का वारिस बनाया जा सकता है.

उन्हें हू का 'शिष्य' भी माना जाता था. इस साल मार्च में हटने से पहले वह पोलितब्यूरो स्टैंडिंग कमेटी में हू जिनताओ प्रशासन द्वारा नियुक्त आख़िरी शख़्स थे.

हू के कार्यकाल को चीन को बाहरी दुनिया के लिए खोलने और नए विचारों के प्रति सहनशील होने के तौर पर देखा जाता है.

ली को आर्थिक नीतियों के मामले व्यावहारिक होने के लिए जाना जाता था. उनका ध्यान अमीरों और ग़रीबों के फ़र्क को कम करने और लोगों को सस्ती रिहायश मुहैया करवाने पर था.

नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर में प्रोफ़ेसर बर्ट होफ़मन ने बीबीसी न्यूज़डे कार्यक्रम में बताया, "वह बहुत ही उत्साही और खुले विचारों वाले शख़्स थे जो चीन को आगे लेकर गए और हर तरफ़ खुले संवाद को बढ़ावा दिया."

डॉक्टर चोंग कहते हैं, "ली आर्थिक मामलों में खुले और सुधारवादी शख़्स के तौर पर याद आएंगे. उन्हें विचारधारा या वफ़ादारी को तरजीह देने वाले शख़्स के बजाय एक टेक्नोक्रैट के तौर पर याद किया जाएगा."

ली ने ऐसी नीतियों पर ज़ोर दिया जो उद्यमिता और टेक्नोलॉजी में इनोवेशन को बढ़ावा दें, ख़ासकर युवाओं के लिए.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में इंजिनियरों का दबदबा था मगर वहां पर केचयांग एक ऐसे अर्थशास्त्री थे जो हक़ीक़त को बिना लाग लपेट के बताने के लिए जाने जाते थे.

वह चीन की आर्थिक समस्याओं को सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करते थे ताकि उनका हल तलाशा जा सके.

लीकोनॉमिक्स

कर्ज लेकर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के बजाय आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए अपनाई उनकी नीतियों को लीकोनॉमिक्स कहा जाता है.

2016 में पार्टी के मुखपत्र 'पीपल्स डेली' में छपने वाले लेखों में लीकोनॉमिक्स शब्द का इस्तेमाल बंद कर दिया गया था ताकि शी जिनपिंग के उन आर्थिक विचारों को बढ़ावा दिया जा सके, जिनमें छोटे स्तर पर आर्थिक सुधारों और आपूर्ति पर ध्यान देने की वकालत की जाती है.

होफ़मन ने कहा कि ली के नेतृत्व में चीन ने वायु प्रदूषण के ख़िलाफ़ बड़ा अभियान छेड़ा था.

जब वह प्रधानमंत्री थे तब 2014 में उन्होंने प्रदूषण के ख़िलाफ़ जंग का आग़ाज़ करते हुए इसे देश के सामने एक बड़ा संकट बताया था. इसी कारण वहां प्रदूषण और उससे जुड़े स्वास्थ्य संबंधी ख़तरे काफ़ी हद तक कम हुए हैं.

आख़िरी दौर

ली के कार्यकाल का आख़िरी दौर चीन की ज़ीरो कोविड नीति के दौरान दब सा गया था.

जब कोविड संकट अपने चरम पर था तब उन्होंने चेताया था कि चीनी अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव है. उन्होंने अधिकारियों से इस बात का ध्यान रखने को कहा था कि बंदिशों के चलते आर्थिक प्रगति प्रभावित नहीं होनी चाहिए.

यहां तक कि वह तब भी सार्वजनिक स्थान पर बिना मास्क के नज़र आए थे, जब चीन ने ज़ीरो कोविड पॉलिसी हटाई नहीं थी.

लेकिन जब चीन को उनके अर्थव्यवस्था को बचाने के आदेश और शी जिनपिंग की बेहद सख़्त ज़ीरो कोविड नीति में से एक को चुनना था तो ज़ाहिर तौर पर उनके देश ने और भी सख़्त पाबंदियों को चुना था.

ज़ीरो कोविड नीति से चीन की अर्थव्यवस्था को बड़ी चोट पहुंची. सप्लाई चेन प्रभावित हुई और देश के आर्थिक केंद्र शंघाई से लेकर ग्रामीण क़स्बों तक कारोबार बंद हो गए थे.

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