भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारे की जो संकल्पना जी20 सम्मेलन के सामने पूरी दुनिया के सामने रखी गई है यह हमारे इतिहास का ही एक प्रतिबिंब है। यह ट्रेड रूट भारत और यूरोप को जोड़ेगा।
अथर्ववेद में है व्यापारिक मार्ग का जिक्र
जंबूद्वीप व्यापार के मामले में सदियों से अग्रणी रहा है। आज हम यूरोप जाने के बारे में सोचते हैं तो दिमाग में हवाई जहाज आता है। हालांकि भारत के लोग सड़क और जल मार्ग से प्राचीन समय से ही मिस्र से यूरोप तक व्यापार करते रहे हैं। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में पहली बार व्यापारिक मार्ग का जिक्र किया गया है। इसे 'पाणिहास' कहा गया है। इन व्यापारिक मार्गों का इस्तेमाल हर कोई कर सकता था और इसे बेहद सुरक्षित माना जाता था। लोग बैलगाड़ियों और रथों के जरिए इनपर आया जाया करते थे।
क्या है उत्तरापथ और दक्षिणापथ
प्रचीन साहित्य में दो मार्गों का जिक्र मिलता है। एक है उत्तरापथ और दूसरा दक्षिणापथ। उत्तरापथ भारत से उत्तरी अफगानिस्तान, उत्तरी ईरान और तुर्कमेनिया से होकर मेसोपोटामिया तक जाता था। आज इसे ईराक के रूप में जाना जाता है। वहीं दूसरी ओर दक्षिणापथ टेपे याह्या से जलालाबाद से कल्लेह निसार और सुसा उर तक था। उत्तरापथ और दक्षिणापथ इन समुद्री मार्गों से भारत के केंद्र को जोड़ते थे। समुद्री मार्ग फारस की खाड़ी तक जाता था।
सरस्वती-सिंधु सभ्यता की लिपियों को पढ़ने में कामयाबी नहीं मिली है वरना इन व्यापारिक मार्गों के बारे में और भी बातें पता चल सकती थीं। हालांकि उत्तरापथ का जिक्र पाणिनिकी अष्टाध्यायी में भी किया गया है। भारत के अंदर का व्यापारिक मार्ग भूमि और नदियों से जुड़ा हुआ था। अर्थशास्त्र में दक्षिणापथ के बारे में बताया गया है जो कि पाटलिपुत्र और कौशांबी से विदिशा, उज्जैन, प्रतिष्ठान से होकर गुजरता था। हालांकि जब हिंद महासागर से रास्ते की खोज हो गई तो व्यापार की सूरत बदल गई। कई जगहों पर सत्ताएं बदलीं और फिर समय के साथ भूमिमार्ग पर अवरोध होने लगा। कई शासकों ने प्रतिबंध लगा दिए। फिर जल मार्ग की ओर आकर्षण बढ़ा।
ईरान, अरब और मिस्र के साथ भारत के प्रचीन व्यापारिक संबंध रहे हैं। वहीं यूरोप में रोमन साम्राज्य के समय भी भारत के मसाले, लाल मिर्च, सूती माल खूब पहूंचते थे। इसके लिए एक थल मार्ग भी था जो कि पंजाब से होकर पेशावर, दर्रा खैबर, काबुल, हिरात, दर्रा बोलन, गांधार, हिरात से होकर ईरान और इंस्तांबुल तक जाता था। इसके आलावा कुछ मार्ग जल और थल दोनों से होकर गुजरते थे। जब 13वीं और 14 वीं शताब्दी ने तुर्कों ने अरब के बड़े हिस्से पर अधिकार कर लिया और उनका साम्राज्य भारत तक फैल गया तो कई व्यापारिक मार्ग बंद हो गए।
कैसा होगा नया मिडिल ईस्ट कॉरिडोर
नया मिडिल ईस्ट कॉरिडोर में दो गलियारे होंगे। एक पूर्व से पश्चिम की ओर जो कि भारत को पश्चिम एशिया से जोड़ेगा। उत्तरी गलियारा पश्चिम एशिया से यूरोप तक होगा। इसमें जल मार्ग, रेल लिंक और हाइवे शामिल होगा जो कि यूएई, सऊदी अरब, तुर्किए, इजरायल और यूरोप को जोड़ेगा। इससे व्यापार रास्ता आसान और तेज हो जाएगा। साथ ही शिपिंग लागत में भारी कमी आएगी।
एक टिप्पणी भेजें