चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान इन दिनों आराम कर रहे हैं. बैटरी बचाए रखने के लिए इसरो ने स्लीपिंग मोड में डाल दिया है. इन पर लगे पेलोड्स यानी उपकरणों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि इन्हें पॉवर मिलता रहे.
यही कारण है कि इन्हें सूरज के निकलने तक के लिए सुला दिया गया है.
चांद पर पृथ्वी के 14 दिन के बराबर उजाला और 14 दिन के बराबर अंधेरा रहता है. चंद्रयान-3 की प्लानिंग इसी हिसाब से तय की गई थी कि लैंड करते ही ये अपने काम कर जुट जाएं. 23 अगस्त से लगातार डेटा आया भी है, जो बचा होगा वह भी आ जाएगा.
इसरो ने क्यों लिया यह फैसला?
NIT कुरुक्षेत्र में स्थित उत्तर भारत के इसरो के एक मात्र सेंटर के प्रमुख प्रो. ब्रह्मजीत सिंह के मुताबिक, अभी लैंडर-रोवर को स्लीप मोड में डाले जाने जरूरत थी, क्योंकि अगले 14 दिन तक वहां सूरज की रोशनी नहीं रहेगी, ऐसे में इनका एक्टिव रहना ठीक नहीं होता. दोनों को ही पॉवर की जरूरत होती है. पॉवर इन्हें सूरज से ही मिलती है. स्लीपिंग मोड में डालने का लाभ यह मिलेगा कि उपकरण सुरक्षित रहेंगे और जैसे ही सूरज की रोशनी पड़ने लगेगी तो ये फिर एक्टिव किए जा सकते हैं. इसमें कहीं कोई दो मत नहीं है.
मून मिशन से भारत को कितनी जानकारी मिली?
चंद्रयान-3 की कामयाबी का जश्न हम मना चुके हैं. रोवर ने बीते दिनों अपनी बेस्ट परफ़ार्मेंस भी दी है. उसने बता दिया है कि चांद पर क्या-क्या संभावनाएं हैं. लैंडर-रोवर ने बताया कि भूकंप चांद पर भी आते हैं. 26 अगस्त को रिकार्ड भी किया गया. मिट्टी के प्रकार, केमिकल मिश्रण की जानकारी भी साझा की. पता यह भी चला कि साउथ पोल पर कैल्शियम, सल्फर, एल्यूमिनियम, टाइटेनियम, क्रोमियम जैसी धातु की उपलब्धता भी है.
चांद से आने वाली जानकारियों से इसरो के वैज्ञानिक खुश भी हैं और शोध भी कर रहे हैं.
मिशन सफल पर अब क्या करेंगे लैंडर-रोवर?
आम आदमी के मन में एक बड़ा सवाल है कि लैंडर-रोवर वहां अब क्या करने वाले हैं? जिसका सीधा-स्पष्ट जवाब इसरो के साइंटिस्ट पहले ही दे चुके हैं. प्रो. सिंह ने भी वही जानकारी साझा की. क्योंकि ये दोनों यंत्र घुप्प अंधेरे में माइनस 200 डिग्री तापमान पर हैं तो ऐसे में इनकी सुरक्षा एक बड़ा सवाल था. इसलिए इन्हें इस तरह से प्रोग्राम किया गया कि जब वहां सूरज की रोशनी न हो तो उपकरणों को कोई नुकसान न हो. वे एक्टिव रहें. यह सब पॉवर से होने वाला है.
चांद पॉवर का एक मात्र स्रोत लैंडर-रोवर में लगी बैटरी है. इस बैटरी को पॉवर सूर्य से मिलती है और वे चांद के उस हिस्से में अगले 12-13 दिन दिखने वाले नहीं हैं. इसलिए इन्हें स्लीपिंग मोड में डाल दिया गया. बैटरी की लाइफ बाढ़ जाएगी. जैसे ही सूरज की रोशनी मिलने लगेगी, इसरो इन्हें फिर से काम पर जुटा सकता है, इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए. हालांकि, यथासंभव जानकारियां आ चुकी हैं.
बैटरी चार्ज, अब कोई संकट नहीं
इसरो ने यह जानकारी पहले भी दी थी कि बैटरी पूरी तरह चार्ज है इसलिए कोई संकट नहीं आने वाला. लैंडर-रोवर के बीच की दूरी सौ मीटर बताई गयी है. इनके पैनल की दिशा इस तरह से रखी गई है कि सूरज की रोशनी आते ही ये फिर से चार्ज होने शुरू हो जाएंगे. इस तरह फिर इसरो के पास, देश के पास कुछ नया डाटा आएगा. यह सिलसिला तब तक चलेगा, जब तक लैंडर-रोवर में बैटरी यानी पॉवर बचा रहेगा. जब ये शांत भी हो जाएंगे तब भी भारत की मौजूदगी चांद पर बनी रहेगी, क्योंकि भौतिक तौर पर लैंडर-रोवर वहां मौजूद रहेंगे.
चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम और रोवर प्रज्ञान इन दिनों आराम कर रहे हैं. बैटरी बचाए रखने के लिए इसरो ने स्लीपिंग मोड में डाल दिया है. इन पर लगे पेलोड्स यानी उपकरणों की सुरक्षा के लिए जरूरी है कि इन्हें पॉवर मिलता रहे.
चांद पर पृथ्वी के 14 दिन के बराबर उजाला और 14 दिन के बराबर अंधेरा रहता है. चंद्रयान-3 की प्लानिंग इसी हिसाब से तय की गई थी कि लैंड करते ही ये अपने काम कर जुट जाएं. 23 अगस्त से लगातार डेटा आया भी है, जो बचा होगा वह भी आ जाएगा.
इसरो ने क्यों लिया यह फैसला?
NIT कुरुक्षेत्र में स्थित उत्तर भारत के इसरो के एक मात्र सेंटर के प्रमुख प्रो. ब्रह्मजीत सिंह के मुताबिक, अभी लैंडर-रोवर को स्लीप मोड में डाले जाने जरूरत थी, क्योंकि अगले 14 दिन तक वहां सूरज की रोशनी नहीं रहेगी, ऐसे में इनका एक्टिव रहना ठीक नहीं होता. दोनों को ही पॉवर की जरूरत होती है. पॉवर इन्हें सूरज से ही मिलती है. स्लीपिंग मोड में डालने का लाभ यह मिलेगा कि उपकरण सुरक्षित रहेंगे और जैसे ही सूरज की रोशनी पड़ने लगेगी तो ये फिर एक्टिव किए जा सकते हैं. इसमें कहीं कोई दो मत नहीं है.
मून मिशन से भारत को कितनी जानकारी मिली?
चंद्रयान-3 की कामयाबी का जश्न हम मना चुके हैं. रोवर ने बीते दिनों अपनी बेस्ट परफ़ार्मेंस भी दी है. उसने बता दिया है कि चांद पर क्या-क्या संभावनाएं हैं. लैंडर-रोवर ने बताया कि भूकंप चांद पर भी आते हैं. 26 अगस्त को रिकार्ड भी किया गया. मिट्टी के प्रकार, केमिकल मिश्रण की जानकारी भी साझा की. पता यह भी चला कि साउथ पोल पर कैल्शियम, सल्फर, एल्यूमिनियम, टाइटेनियम, क्रोमियम जैसी धातु की उपलब्धता भी है.
चांद से आने वाली जानकारियों से इसरो के वैज्ञानिक खुश भी हैं और शोध भी कर रहे हैं.
मिशन सफल पर अब क्या करेंगे लैंडर-रोवर?
आम आदमी के मन में एक बड़ा सवाल है कि लैंडर-रोवर वहां अब क्या करने वाले हैं? जिसका सीधा-स्पष्ट जवाब इसरो के साइंटिस्ट पहले ही दे चुके हैं. प्रो. सिंह ने भी वही जानकारी साझा की. क्योंकि ये दोनों यंत्र घुप्प अंधेरे में माइनस 200 डिग्री तापमान पर हैं तो ऐसे में इनकी सुरक्षा एक बड़ा सवाल था. इसलिए इन्हें इस तरह से प्रोग्राम किया गया कि जब वहां सूरज की रोशनी न हो तो उपकरणों को कोई नुकसान न हो. वे एक्टिव रहें. यह सब पॉवर से होने वाला है.
चांद पॉवर का एक मात्र स्रोत लैंडर-रोवर में लगी बैटरी है. इस बैटरी को पॉवर सूर्य से मिलती है और वे चांद के उस हिस्से में अगले 12-13 दिन दिखने वाले नहीं हैं. इसलिए इन्हें स्लीपिंग मोड में डाल दिया गया. बैटरी की लाइफ बाढ़ जाएगी. जैसे ही सूरज की रोशनी मिलने लगेगी, इसरो इन्हें फिर से काम पर जुटा सकता है, इसमें किसी को शक नहीं होना चाहिए. हालांकि, यथासंभव जानकारियां आ चुकी हैं.
बैटरी चार्ज, अब कोई संकट नहीं
इसरो ने यह जानकारी पहले भी दी थी कि बैटरी पूरी तरह चार्ज है इसलिए कोई संकट नहीं आने वाला. लैंडर-रोवर के बीच की दूरी सौ मीटर बताई गयी है. इनके पैनल की दिशा इस तरह से रखी गई है कि सूरज की रोशनी आते ही ये फिर से चार्ज होने शुरू हो जाएंगे. इस तरह फिर इसरो के पास, देश के पास कुछ नया डाटा आएगा. यह सिलसिला तब तक चलेगा, जब तक लैंडर-रोवर में बैटरी यानी पॉवर बचा रहेगा. जब ये शांत भी हो जाएंगे तब भी भारत की मौजूदगी चांद पर बनी रहेगी, क्योंकि भौतिक तौर पर लैंडर-रोवर वहां मौजूद रहेंगे.
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