कनॉट प्लेस के बारे में आपने कई कहानियां सुनी होंगी. यह कैसे बसा? इसका डिजाइन किसने तैयार किया? यहां सबसे पहले रहने कौन आया? जैसे कई सवालों के जवाब शायद आपको पता होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कनॉट प्लेस का मालिक कौन है?
यह दिल्ली के दिल की धड़कन कैसे बना? यहां खड़ी इमारतों का किराया कौन वसूलता है? सोशल साइट कोरा (Quora) पर कुछ लोगों ने यह सवाल पूछा, तो जो जवाब आया, वह काफी इंट्रेस्टिंग है.
कनॉट प्लेस का निर्माण ब्रिटिश शासन के दौरान 1929 में शुरू हुआ. 5 साल में बनकर यह तैयार हो गया. तब ब्रिटिश राजघराने के सदस्य ड्यूक ऑफ कनॉट और स्ट्रैथर्न के नाम पर इसका नाम रखा गया था. ब्रिटिश आर्किटेक्ट रॉबर्ट टोर रसेल ने डब्ल्यू. एच. निकोलस की मदद से इसका डिजाइन तैयार किया था. इन्हें कनॉट प्लेस का वास्तुकार कहा जाता है. इसे ऐसे बनाया गया था कि इंग्लैंड में मौजूद भवन रॉयल क्रीसेंट और रोमन कोलोसियम की तरह नजर आए. लेकिन आजादी के बाद यह जगह आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनती गई. आज यह दुनिया के सबसे महंगे मार्केट प्लेस में से एक है. यानी इस इलाके के किसी दफ्तरर में यदि आप काम कर रहे हैं तो मुमकिन है कि आप दुनिया के सबसे महंगे दफ्तर में काम कर रहे हों. लेकिन यहां की बिल्डिंगों का मालिक कौन है?
जानिए असली मालिक के बारे में
सोशल साइट कोरा (Quora)पर शिवम तिवारी नाम के एक यूजर ने जवाब दिया. कहा, कनॉट प्लेस में कई मालिक हैं. संपत्ति के हिसाब से देखें तो भारत सरकार इस जगह की असली मालिक है. लेकिन आजादी से पहले यहां की ज्यादातर संपत्तियां किराये पर दे दी गई थीं. यह किराया बेहद न्यूनतम, या यूं समझें कि कुछ सौ रुपये है. कई लोग तो ऐसे भी थे, जिन्हें 50 दुकानें भी मिल गई थीं. पुरानी दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम के अनुसार, आजादी से पहले किराए पर दी गई संपत्तियों में आधार मूल्य से हर साल 10℅ की वृद्धि होनी थी. तो कल्पना कीजिए कि एक मालिक जिसने 1945 में 50 रुपये में एक दुकान किराए पर दी थी, उसे इस अधिनियम का पालन करना होगा और किराया केवल 10℅ तक बढ़ा सकता है. यानी आज वह कुछ सौ रुपये ही किराया दे रहा होगा. 70 साल बाद भी इसमें कोई बदलाव नहीं आया.
किरायेदार हर साल करोड़ों रुपये कमा रहे
अब असली खेल देखिए. किराये पर संपत्ति लेने वालों ने महंगी स्टारबक्स, पिज़्ज़ा हट, वेयरहाउस कैफे जैसी कंपनियों, बैंकों को दफ्तर बनाने के लिए यह जगह दे दी और हर महीने लाखों रुपये कमा रहे हैं. यानी मूल मालिक को सिर्फ कुछ हजार रुपये मिल रहे जबकि किरायेदार इससे हर साल करोड़ों रुपये कमा रहे हैं. आप इसे ऐसे समझें कि 12*12 की दुकान अगर आपको लेनी है तो एक लाख से ज्यादा हर महीने किराया चुकाना होगा. अगर आप इस इलाके में किराए पर दफ्तर लेना चाहते हैं तो यह सपना साबित हो सकता है, क्योंकि इस इलाके में किराए की दर तेजी से बढ़ी है. अगर कोई दुकान किराये पर देना चाहता है तो बकायदा एग्रीमेंट होता है और उसे तय समय पर इसे खाली करना होता है. बता दें कि यह सारी जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर है.
कनॉट प्लेस के बारे में आपने कई कहानियां सुनी होंगी. यह कैसे बसा? इसका डिजाइन किसने तैयार किया? यहां सबसे पहले रहने कौन आया? जैसे कई सवालों के जवाब शायद आपको पता होंगे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि कनॉट प्लेस का मालिक कौन है?
कनॉट प्लेस का निर्माण ब्रिटिश शासन के दौरान 1929 में शुरू हुआ. 5 साल में बनकर यह तैयार हो गया. तब ब्रिटिश राजघराने के सदस्य ड्यूक ऑफ कनॉट और स्ट्रैथर्न के नाम पर इसका नाम रखा गया था. ब्रिटिश आर्किटेक्ट रॉबर्ट टोर रसेल ने डब्ल्यू. एच. निकोलस की मदद से इसका डिजाइन तैयार किया था. इन्हें कनॉट प्लेस का वास्तुकार कहा जाता है. इसे ऐसे बनाया गया था कि इंग्लैंड में मौजूद भवन रॉयल क्रीसेंट और रोमन कोलोसियम की तरह नजर आए. लेकिन आजादी के बाद यह जगह आर्थिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का केंद्र बनती गई. आज यह दुनिया के सबसे महंगे मार्केट प्लेस में से एक है. यानी इस इलाके के किसी दफ्तरर में यदि आप काम कर रहे हैं तो मुमकिन है कि आप दुनिया के सबसे महंगे दफ्तर में काम कर रहे हों. लेकिन यहां की बिल्डिंगों का मालिक कौन है?
जानिए असली मालिक के बारे में
सोशल साइट कोरा (Quora)पर शिवम तिवारी नाम के एक यूजर ने जवाब दिया. कहा, कनॉट प्लेस में कई मालिक हैं. संपत्ति के हिसाब से देखें तो भारत सरकार इस जगह की असली मालिक है. लेकिन आजादी से पहले यहां की ज्यादातर संपत्तियां किराये पर दे दी गई थीं. यह किराया बेहद न्यूनतम, या यूं समझें कि कुछ सौ रुपये है. कई लोग तो ऐसे भी थे, जिन्हें 50 दुकानें भी मिल गई थीं. पुरानी दिल्ली किराया नियंत्रण अधिनियम के अनुसार, आजादी से पहले किराए पर दी गई संपत्तियों में आधार मूल्य से हर साल 10℅ की वृद्धि होनी थी. तो कल्पना कीजिए कि एक मालिक जिसने 1945 में 50 रुपये में एक दुकान किराए पर दी थी, उसे इस अधिनियम का पालन करना होगा और किराया केवल 10℅ तक बढ़ा सकता है. यानी आज वह कुछ सौ रुपये ही किराया दे रहा होगा. 70 साल बाद भी इसमें कोई बदलाव नहीं आया.
किरायेदार हर साल करोड़ों रुपये कमा रहे
अब असली खेल देखिए. किराये पर संपत्ति लेने वालों ने महंगी स्टारबक्स, पिज़्ज़ा हट, वेयरहाउस कैफे जैसी कंपनियों, बैंकों को दफ्तर बनाने के लिए यह जगह दे दी और हर महीने लाखों रुपये कमा रहे हैं. यानी मूल मालिक को सिर्फ कुछ हजार रुपये मिल रहे जबकि किरायेदार इससे हर साल करोड़ों रुपये कमा रहे हैं. आप इसे ऐसे समझें कि 12*12 की दुकान अगर आपको लेनी है तो एक लाख से ज्यादा हर महीने किराया चुकाना होगा. अगर आप इस इलाके में किराए पर दफ्तर लेना चाहते हैं तो यह सपना साबित हो सकता है, क्योंकि इस इलाके में किराए की दर तेजी से बढ़ी है. अगर कोई दुकान किराये पर देना चाहता है तो बकायदा एग्रीमेंट होता है और उसे तय समय पर इसे खाली करना होता है. बता दें कि यह सारी जानकारी इंटरनेट पर उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर है.
एक टिप्पणी भेजें