जिसमें 3 मरीजों को एक ही एम्बुलेंस से वलसाड अस्पताल भेजा गया। दिनांक 03/09/2023 और दोपहर 03:00 बजे जिसमें टोकरदाहाड़ का एक 14 वर्षीय लड़का जिसका नाम (1) विकेशभाई महेंद्रभाई हिलिम था जो स्किल सेल रोग से पीड़ित था। (2) सुरेंद्रभाई भाईजीभाई कुँवर जिन्होंने मशरूम में चाटने दवा पी ली थी (3) ललिताबेन गणेशभाई वरखड़े जिनका शरीर सूजा हुआ था।
करोड़ों की लागत से बने आहवा सिविल अस्पताल में इमरजेंसी वार्ड तो है, लेकिन डॉक्टर नहीं। मरीज के परिजनों ने नर्स से पूछा कि यहां इलाज क्यों नहीं हो रहा है तो नर्स ने जवाब दिया कि यहां कोई डॉक्टर नहीं है, इसके बाद मरीज के परिजनों ने यह भी पूछा कि मरीज की तबीयत ठीक है तो मरीज को वलसाड क्यों भेजा जा रहा है. ? तो नर्सने बताया कि अगर वह यहां रहे तो हालत और खराब हो जाएगी,ऐसे जवाब सिविल अस्पताल आहवा से मिलता है। सिस्टम ऐसी बेदरकारी पर ध्यान देगा या नहीं....?
आहवा का सिविल अस्पताल एक ऐसा अस्पताल बन गया है, जहां गांवों से इलाज की अच्छी उम्मीद लेकर आने वाले मरीजों को हर बार पैसे खर्च करने पड़ते हैं। लोग मजदूरी करके घर चलाते हैं। जब वे बीमार पड़ते हैं तो, पैसों के अभाव में उम्मीद लेकर सिविल अस्पताल आते हैं।
जबकि इलाज करने से पहले वलसाड सिविल अस्पताल भेजा जाता है। और वलसाड जाने के बाद कोई भी डॉक्टर या कोई अधिकारी इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता क्योंकि मरीज के परिजनों के हस्ताक्षर और अंगूठे का निशान लेकर वलसाड भेज दिया जाता है। और वहां जाने पर मरीजों को पैसों की जरूरत पड़ती है। ऐसे में वलसाड अस्पताल में मरीजों को पैसों के लिए भी इधर-उधर भटकना पड़ता है। उसके लिए कौन जिम्मेदार है?
वलसाड भेजना तो मानो सिविल अस्पताल का फैशन बन गया है, ताकि अस्पताल की लापरवाही देखी जा सके कि हर बार छोटी या बड़ी बीमारी होने पर वलसाड भेज दिया जाता है। ऐसे में यह लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गया है। लोगों का सवाल है कि क्या करोड़ों का इतना बड़ा अस्पताल किस काम का जब लोगों को छोटी-बड़ी बीमारियों के लिए वलसाड भेजा जाता है, क्या जिम्मेदार अधिकारी इस पर ध्यान देंगे...?
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