भारत सरकार ने 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने के लिए बीते गुरुवार को एक बड़े फैसले में लैपटॉप और कंप्यूटर के आयात पर बैन की घोषणा की है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि अब इन सामानों के आयात के लिए वैध लाइसेंस लेना जरूरी है.
सरकार का यह फैसला 1 नवंबर 2023 से लागू हो जाएगा. भारत के इस कदम से चीन को बहुत बड़ा झटका लगा है क्योंकि वहां का इलेक्ट्रॉनिक मार्केट बहुत बड़ा है और लैपटॉप कंप्यूटर बेचने वाली लगभग सभी कंपनियां चीन जैसे देशों से ही भारत को सप्लाई करती हैं.
इस आयात प्रतिबंध से चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल बौखला गया है और उसने एक लेख में भारत के 'मेक इन इंडिया' पर अपनी भड़ास निकाली है.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र समझे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि जब से भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने 'मेक इन इंडिया' प्रोग्राम शुरू किया है, तब से भारत लगातार कई सामानों के आयात पर रोक लगाने और स्थानीय मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए संरक्षणवादी नीतियां जारी करता है.
चीनी अखबार ने लिखा, 'फिर भी भारत की सरकार अपनी कोशिश में नाकामयाब रही है जो दिखाता है कि भारत मैन्यूफैक्चरिंग की समस्याओं से निपटने में असफल रहा है. इससे भारत के कारोबारी माहौल में निवशकों का विश्वास भी कमजोर होगा.'
भारत ने दिया झटका तो बिलबिला उठा चीन
अखबार ने लिखा कि भारत के लैपटॉप और टैबलेट बाजार में विदेशी ब्रांड्स का दबदबा है. भारत के घरेलू ब्रांड्स लगातार खराब प्रदर्शन कर रहे हैं.
ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा, 'भारत सरकार का यह कदम भारत के संरक्षणवाद का एक और स्पष्ट प्रदर्शन है. लेकिन विडंबना यह है कि विदेशी निवेश के लिए बेचैन भारत की सरकार लगातार विदेशी कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है. चाहे वे Xiaomi जैसी चीनी कंपनियां हों, या शेल, नोकिया, आईबीएम, वॉलमार्ट और अन्य जैसी अन्य विदेशी कंपनियां हों, भारत कभी भी उनके खिलाफ जांच शुरू करने और उन विदेशी कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाने का बहाना ढूंढ सकता है.'
चीनी अखबार ने दावा किया है कि विदेशी कंपनियों के प्रति भारत की नीतियों ने मैन्यूफैक्चरिंग केंद्र के रूप में इसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और विदेशी निवेश आकर्षित करने की क्षमता को पहले ही नुकसान पहुंचा दिया है.
इसके साथ ही ग्लोबल टाइम्स ने भारत को एक सलाह भी दे डाली है. अखबार ने कहा है कि भारत के कारोबारी माहौल को और खुलने, विदेशी निवेशकों के प्रति नरम रवैया अपनाने और अपनी नीतियों को ढीला करने की जरूरत है. चीनी अखबार ने कहा है कि पश्चिमी देश भारत को चीन का विकल्प बनाने का सपना देख रहे हैं लेकिन इन सभी परेशानियों को देखते हुए भारत से ऐसी उम्मीद रखना नादानी है.
'चीन के बिना पूरा नहीं कर पाएगा भारत अपना सपना'
ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक और लेख में कहा है कि भारत की नरेंद्र मोदी सरकार को 'मेक इन इंडिया' के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए चीन की सख्त जरूरत है. विशेषज्ञों के हवाले से अखबार ने लिखा है कि मोदी सरकार के इस अभियान को 'मेड इन चाइना' के साथ मिलकर चलना होगा तभी जाकर यह सफल होगा.
ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक लेख में लिखा, 'भारत चीन की वैश्विक मैन्यूफैक्चरिंग पावर को चुनौती देने के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन भारत को अपने 'मेक इन इंडिया' के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभी भी चीन की कंपनियों के साथ जुड़कर काम करने की जरूरत है.'
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक रिपोर्ट में तीन आधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा है कि इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला ने भारतीय अधिकारियों के साथ एक बैठक में भारत सरकार से चीन को लेकर एक मांग रखी है. टेस्ला ने कहा है कि कंपनी सप्लाई चेन को बढ़ावा देने के लिए चीन के अपने कुछ वेंडर्स को भारत में लाना चाहती है.
'मेड इन चाइना के बराबर नहीं मेक इन इंडिया'
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर टेस्ला भारत में कोई प्लांट लगाना चाहती है और सस्ती इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने की लागत कम रखनी है तो ऐसे में चीन के आपूर्तिकर्ता भारत के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं. इसमें कहा गया है कि भारत इलेक्ट्रिक गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले बैटरी सेल आदि चीजों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है. टाटा मोटर्स अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए इन सामानों को चीन से आयात करती है.
ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में कहा, 'विशेषज्ञों ने कहा कि मेक इन इंडिया अभी मेड-इन-चाइना के बराबर नहीं है. भारत को अगर अपने मैन्युफैक्चरिंग की नींव को मजबूत करना है तो सप्लाई चेन के लिए चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूती देनी होगी.'
'भारत में विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल नहीं'
भारत सरकार ने पिछले कुछ सालों में चीनी कंपनियों के लिए अपने नियमों को सख्त किया है ताकि इससे कंपनियों के बड़े पदों पर भारतीयों को भी मौका मिले. भारत सरकार ने कंपनियों को यहां की टैक्स पॉलिसी को भी सख्ती से पालन करने को कहा है. इस सख्ती से चीन नाराज रहता है.
इसे लेकर चीनी अखबार ने भी अपनी भड़ास निकाली है. सिंघुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय रणनीति संस्थान के रिसर्च डिपार्टमेंट के निदेशक कियान फेंग के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'भारत में अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और भारत सरकार 'मेक इन इंडिया' के तहत अधिक से अधिक प्रोजेक्ट्स को शुरू कर नरेंद्र मोदी की सरकार वोट हासिल करना चाहती है. लेकिन इस राह में कई दिक्कतें हैं, खासकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सहारा देने के लिए भारत के पास सप्लाई चेन का अभाव है.'
वो कहते हैं कि भारत में कारोबारियों के लिए अनुकूल माहौल नहीं है. भारत को शिक्षित कामगार और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में सुधार करने की जरूरत है. इन सभी मामलों में भारत चीन से पीछे है. हालांकि, कई विकासशील देशों के उलट भारत में बड़ी संख्या में युवा श्रमिकों की उपलब्धता है.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'विशेषज्ञों का कहना है कि 2014 में मोदी सरकार की तरफ से शुरू की गई 'मेक इन इंडिया' पहल को लेकर शोर तो काफी किया गया लेकिन अब तक इसके पर्याप्त नतीजे सामने नहीं आए हैं.'
भारत का कारोबारी माहौल चीनी कंपनियों के लिए चिंता का विषय
चीनी अखबार ने लिखा है कि भारत का कारोबारी माहौल विदेशी निवेशकों, खासकर चीनी कंपनियों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और नवंबर 2021 के बीच 2,783 विदेशी कंपनियों और उनकी सहायक कंपनियों ने भारत में अपना काम बंद कर दिया. उनमें केयर्न एनर्जी, होल्सिम, दाइची सैंक्यो, कैरेफोर, हेन्केल, हार्ले डेविडसन और फोर्ड जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं.
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अखबार ने भारत के इस माहौल की तुलना चीन से करते हुए कहा है कि कोविड महामारी से उबरने के बाद चीन ने अपने औद्योगिक आधार को विकसित करने पर ध्यान दिया है जिसके कारण वो औद्योगिक सप्लाई चेन विकसित कर पाया है. समय के साथ चीन का इंफ्रास्ट्रक्चर और कारोबारी माहौल मजबूत हुआ है. चीन ने लंबे प्रयासों के बाद इसे हासिल किया है जिसकी बराबरी भारत नहीं कर सकता है.
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कई मामलों में चीन से पीछे है भारत
सालों से भारत में रह रहे इंफ्रास्ट्रक्टर उद्योग के एक सूत्र के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि भारत इंफ्रास्ट्रक्टर और टैलेंट के निर्माण में चीन से पीछे है. इसकी सोच अपने इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योग की नींव को मजबूत करना और विदेशी निवेश का स्वागत करना नहीं बल्कि यह शॉर्टकट ढूंढता है. सच कहें तो भारत की नीतियां विदेशी बिजनेस के लिए अनुकूल नहीं है.
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सूत्र ने कहा, 'एक बार जब भारत को लगने लगता है कि वो तो खुद भी उस काम को कर सकते हैं तो वो विदेशी निवेश वाले उद्यम को दबाना शुरू करते हैं जिससे विदेशी कंपनियां सावधानी बरतने लगती हैं.'
लेख के अंत में ग्लोबल टाइम्स ने विशेषज्ञ कियान फेंग के हवाले से भारत को सलाह भी दे डाली है. अखबार ने लिखा, 'अगर मोदी सरकार कारोबारी माहौल में सुधार नहीं करती है, विदेशी कंपनियों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार को कम नहीं करती और इंफ्रास्ट्रक्चर में बड़ा निवेश नहीं करती तो अधिक विदेशी निवेश हासिल करने और इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना मुश्किल होगा.'
भारत सरकार ने 'मेक इन इंडिया' को बढ़ावा देने के लिए बीते गुरुवार को एक बड़े फैसले में लैपटॉप और कंप्यूटर के आयात पर बैन की घोषणा की है. वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय ने एक नोटिफिकेशन जारी कर कहा कि अब इन सामानों के आयात के लिए वैध लाइसेंस लेना जरूरी है.
इस आयात प्रतिबंध से चीन का सरकारी अखबार ग्लोबल बौखला गया है और उसने एक लेख में भारत के 'मेक इन इंडिया' पर अपनी भड़ास निकाली है.
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कम्युनिस्ट पार्टी के मुखपत्र समझे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि जब से भारत की नरेंद्र मोदी सरकार ने 'मेक इन इंडिया' प्रोग्राम शुरू किया है, तब से भारत लगातार कई सामानों के आयात पर रोक लगाने और स्थानीय मैन्यूफैक्चरिंग को बढ़ावा देने के लिए संरक्षणवादी नीतियां जारी करता है.
चीनी अखबार ने लिखा, 'फिर भी भारत की सरकार अपनी कोशिश में नाकामयाब रही है जो दिखाता है कि भारत मैन्यूफैक्चरिंग की समस्याओं से निपटने में असफल रहा है. इससे भारत के कारोबारी माहौल में निवशकों का विश्वास भी कमजोर होगा.'
भारत ने दिया झटका तो बिलबिला उठा चीन
अखबार ने लिखा कि भारत के लैपटॉप और टैबलेट बाजार में विदेशी ब्रांड्स का दबदबा है. भारत के घरेलू ब्रांड्स लगातार खराब प्रदर्शन कर रहे हैं.
ग्लोबल टाइम्स ने आगे लिखा, 'भारत सरकार का यह कदम भारत के संरक्षणवाद का एक और स्पष्ट प्रदर्शन है. लेकिन विडंबना यह है कि विदेशी निवेश के लिए बेचैन भारत की सरकार लगातार विदेशी कंपनियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर रही है. चाहे वे Xiaomi जैसी चीनी कंपनियां हों, या शेल, नोकिया, आईबीएम, वॉलमार्ट और अन्य जैसी अन्य विदेशी कंपनियां हों, भारत कभी भी उनके खिलाफ जांच शुरू करने और उन विदेशी कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाने का बहाना ढूंढ सकता है.'
चीनी अखबार ने दावा किया है कि विदेशी कंपनियों के प्रति भारत की नीतियों ने मैन्यूफैक्चरिंग केंद्र के रूप में इसकी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा और विदेशी निवेश आकर्षित करने की क्षमता को पहले ही नुकसान पहुंचा दिया है.
इसके साथ ही ग्लोबल टाइम्स ने भारत को एक सलाह भी दे डाली है. अखबार ने कहा है कि भारत के कारोबारी माहौल को और खुलने, विदेशी निवेशकों के प्रति नरम रवैया अपनाने और अपनी नीतियों को ढीला करने की जरूरत है. चीनी अखबार ने कहा है कि पश्चिमी देश भारत को चीन का विकल्प बनाने का सपना देख रहे हैं लेकिन इन सभी परेशानियों को देखते हुए भारत से ऐसी उम्मीद रखना नादानी है.
'चीन के बिना पूरा नहीं कर पाएगा भारत अपना सपना'
ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक और लेख में कहा है कि भारत की नरेंद्र मोदी सरकार को 'मेक इन इंडिया' के अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए चीन की सख्त जरूरत है. विशेषज्ञों के हवाले से अखबार ने लिखा है कि मोदी सरकार के इस अभियान को 'मेड इन चाइना' के साथ मिलकर चलना होगा तभी जाकर यह सफल होगा.
ग्लोबल टाइम्स ने अपने एक लेख में लिखा, 'भारत चीन की वैश्विक मैन्यूफैक्चरिंग पावर को चुनौती देने के लिए विदेशी निवेश को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है. लेकिन भारत को अपने 'मेक इन इंडिया' के लक्ष्य को हासिल करने के लिए अभी भी चीन की कंपनियों के साथ जुड़कर काम करने की जरूरत है.'
समाचार एजेंसी रॉयटर्स ने एक रिपोर्ट में तीन आधिकारिक सूत्रों के हवाले से कहा है कि इलेक्ट्रिक कार निर्माता कंपनी टेस्ला ने भारतीय अधिकारियों के साथ एक बैठक में भारत सरकार से चीन को लेकर एक मांग रखी है. टेस्ला ने कहा है कि कंपनी सप्लाई चेन को बढ़ावा देने के लिए चीन के अपने कुछ वेंडर्स को भारत में लाना चाहती है.
'मेड इन चाइना के बराबर नहीं मेक इन इंडिया'
रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर टेस्ला भारत में कोई प्लांट लगाना चाहती है और सस्ती इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनाने की लागत कम रखनी है तो ऐसे में चीन के आपूर्तिकर्ता भारत के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं. इसमें कहा गया है कि भारत इलेक्ट्रिक गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाले बैटरी सेल आदि चीजों के लिए दूसरे देशों पर निर्भर है. टाटा मोटर्स अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए इन सामानों को चीन से आयात करती है.
ग्लोबल टाइम्स ने अपने लेख में कहा, 'विशेषज्ञों ने कहा कि मेक इन इंडिया अभी मेड-इन-चाइना के बराबर नहीं है. भारत को अगर अपने मैन्युफैक्चरिंग की नींव को मजबूत करना है तो सप्लाई चेन के लिए चीन के साथ अपने संबंधों को मजबूती देनी होगी.'
'भारत में विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल माहौल नहीं'
भारत सरकार ने पिछले कुछ सालों में चीनी कंपनियों के लिए अपने नियमों को सख्त किया है ताकि इससे कंपनियों के बड़े पदों पर भारतीयों को भी मौका मिले. भारत सरकार ने कंपनियों को यहां की टैक्स पॉलिसी को भी सख्ती से पालन करने को कहा है. इस सख्ती से चीन नाराज रहता है.
इसे लेकर चीनी अखबार ने भी अपनी भड़ास निकाली है. सिंघुआ विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय रणनीति संस्थान के रिसर्च डिपार्टमेंट के निदेशक कियान फेंग के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'भारत में अगले साल लोकसभा चुनाव होने वाले हैं और भारत सरकार 'मेक इन इंडिया' के तहत अधिक से अधिक प्रोजेक्ट्स को शुरू कर नरेंद्र मोदी की सरकार वोट हासिल करना चाहती है. लेकिन इस राह में कई दिक्कतें हैं, खासकर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को सहारा देने के लिए भारत के पास सप्लाई चेन का अभाव है.'
वो कहते हैं कि भारत में कारोबारियों के लिए अनुकूल माहौल नहीं है. भारत को शिक्षित कामगार और बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में सुधार करने की जरूरत है. इन सभी मामलों में भारत चीन से पीछे है. हालांकि, कई विकासशील देशों के उलट भारत में बड़ी संख्या में युवा श्रमिकों की उपलब्धता है.
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, 'विशेषज्ञों का कहना है कि 2014 में मोदी सरकार की तरफ से शुरू की गई 'मेक इन इंडिया' पहल को लेकर शोर तो काफी किया गया लेकिन अब तक इसके पर्याप्त नतीजे सामने नहीं आए हैं.'
भारत का कारोबारी माहौल चीनी कंपनियों के लिए चिंता का विषय
चीनी अखबार ने लिखा है कि भारत का कारोबारी माहौल विदेशी निवेशकों, खासकर चीनी कंपनियों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि भारत सरकार के आंकड़ों के अनुसार, 2014 और नवंबर 2021 के बीच 2,783 विदेशी कंपनियों और उनकी सहायक कंपनियों ने भारत में अपना काम बंद कर दिया. उनमें केयर्न एनर्जी, होल्सिम, दाइची सैंक्यो, कैरेफोर, हेन्केल, हार्ले डेविडसन और फोर्ड जैसी बड़ी कंपनियां शामिल हैं.
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अखबार ने भारत के इस माहौल की तुलना चीन से करते हुए कहा है कि कोविड महामारी से उबरने के बाद चीन ने अपने औद्योगिक आधार को विकसित करने पर ध्यान दिया है जिसके कारण वो औद्योगिक सप्लाई चेन विकसित कर पाया है. समय के साथ चीन का इंफ्रास्ट्रक्चर और कारोबारी माहौल मजबूत हुआ है. चीन ने लंबे प्रयासों के बाद इसे हासिल किया है जिसकी बराबरी भारत नहीं कर सकता है.
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कई मामलों में चीन से पीछे है भारत
सालों से भारत में रह रहे इंफ्रास्ट्रक्टर उद्योग के एक सूत्र के हवाले से ग्लोबल टाइम्स ने कहा कि भारत इंफ्रास्ट्रक्टर और टैलेंट के निर्माण में चीन से पीछे है. इसकी सोच अपने इंफ्रास्ट्रक्चर उद्योग की नींव को मजबूत करना और विदेशी निवेश का स्वागत करना नहीं बल्कि यह शॉर्टकट ढूंढता है. सच कहें तो भारत की नीतियां विदेशी बिजनेस के लिए अनुकूल नहीं है.
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सूत्र ने कहा, 'एक बार जब भारत को लगने लगता है कि वो तो खुद भी उस काम को कर सकते हैं तो वो विदेशी निवेश वाले उद्यम को दबाना शुरू करते हैं जिससे विदेशी कंपनियां सावधानी बरतने लगती हैं.'
लेख के अंत में ग्लोबल टाइम्स ने विशेषज्ञ कियान फेंग के हवाले से भारत को सलाह भी दे डाली है. अखबार ने लिखा, 'अगर मोदी सरकार कारोबारी माहौल में सुधार नहीं करती है, विदेशी कंपनियों के साथ पक्षपातपूर्ण व्यवहार को कम नहीं करती और इंफ्रास्ट्रक्चर में बड़ा निवेश नहीं करती तो अधिक विदेशी निवेश हासिल करने और इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करना मुश्किल होगा.'
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