इससे पहले कयास लगाए जा रहे थे कि रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के जोहानिसबर्ग ना जाने के फ़ैसले के बाद पीएम मोदी भी इस बैठक में वर्चुअली शामिल होंगे.
विदेश मंत्रालय ने बताया है कि गुरुवार शाम को पीएम नरेंद्र मोदी के साथ फोन पर बातचीत के दौरान दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफ़ोसा ने प्रधानमंत्री को ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया और उन्हें बैठक की तैयारियों के बारे में जानकारी दी.
विदेश मंत्रालय ने बताया है कि "प्रधानमंत्री ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया. वह शिखर सम्मेलन में शामिल होने के लिए जोहानिसबर्ग की यात्रा के लिए उत्सुक हैं."
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी गुरुवार को ट्वीट कर कहा कि उनकी बात दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामफोसा से हुई है और इस बातचीत में दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों की समीक्षा की. पीएम मोदी ने कहा कि वह इस महीने ब्रिक्स समिट में शामिल होने जोहानिसबर्ग जाने के लिए उत्साहित हैं.
रूस ने कहा है कि पुतिन शिखर सम्मेलन में वर्चुअली शामिल होंगे जबकि विदेश मंत्री सर्गेई लावरोफ़ जोहानिसबर्ग में एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व करेंगे.
चीन से असहज संबंधों के कारण भी पीएम मोदी के शामिल नहीं होने की अटकलें तेज़ थीं. अगले महीने सितंबर में ही नई दिल्ली में जी-20 समिट होना है.
जी-20 में ब्रिक्स के सभी देश हैं. ऐसे में भारत यह नहीं चाहेगा कि उसकी अध्यक्षता में जी20 देशों में से कोई भी देश नई दिल्ली समिट में ग़ैर-मौजूद रहे.
जी-20 समिट में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आने को लेकर कई तरह की अटकलें हैं. रूस ने कहा है कि राष्ट्रपति पुतिन के नई दिल्ली जी20 समिट में शामिल होने के लेकर अभी कोई फ़ैसला नहीं हुआ है
शी जिनपिंग को लेकर भी अभी स्थिति स्पष्ट नहीं है. ऐसे में भारत को लगता है कि वह ब्रिक्स की उपेक्षा कर जी20 को सफल नहीं बना सकता है.
ब्रिक्स के विस्तार को लेकर भारत की चिंता
रामफ़ोसा ने जी20 की अध्यक्षता के लिए भारत को पूरा अपना समर्थन किया है.
ये भी कहा जा रहा है कि पीएम मोदी के शिखर सम्मेलन में शामिल होने की पुष्टि के बाद ये संभव है कि बैठक से अलग वह चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से भी मिल सकते हैं.
मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर हुए सैन्य गतिरोध के बाद से दोनों नेताओं की मुलाक़ात नहीं हुई है.
हालांकि पिछले साल इंडोनेशिया में हुए जी20 के डिनर के दौरान मोदी और जिनपिंग के बीच एक संक्षिप्त मुलाक़ात ज़रूर हुई थी, जिसमें दोनों ने द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर करने की आवश्यकता पर बात की थी.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, बैठक की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि नए सदस्यों को शामिल करके ब्रिक्स का विस्तार करने के प्रस्ताव को सम्मेलन में प्रमुखता से उठाया जा सकता है.
अर्जेंटीना, क्यूबा, कांगो, ईरान, इंडोनेशिया, कज़ाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) उन 30 देशों में से हैं, जिन्होंने इस गुट में शामिल होने में इच्छा व्यक्त की है.
ब्रिक्स सर्वसम्मति से काम करता है और समूह के सभी पाँच सदस्यों को नए सदस्य के शामिल होने पर सहमत होना पड़ता है.
भारत की चिंता है कि ब्रिक्स में उन देशों का प्रवेश ना हो जो ब्रिक्स को चीन-केंद्रित समूह बना सकते हैं.
लोगों का कहना है कि भारत ब्रिक्स में यूएई जैसे देशों के आने से सहमत है लेकिन ऐसे देश जो चीन के करीब हैं उन्हें लेकर भारत असहज है.
भारत यह भी चाहता है कि ब्रिक्स पश्चिम विरोधी गुट के रूप में ना उभरे और ना ही इस गुट में चीन का प्रभुत्व बढ़े. पश्चिमी देशों में इस गुट की पहचान अमेरिका विरोधी के रूप में है. हालांकि रूस को इससे दिक़्क़त नहीं है क्योकि पुतिन खुलकर पश्चिम का विरोध कर रहे हैं और पश्चिम भी यूक्रेन जंग में यूक्रेन के साथ खुलकर खड़ा है.
भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने भारत की स्थिति को दोहरते हुए कहा है कि ब्रिक्स का विस्तार पाँचों सदस्यों के बीच "पूरे परामर्श और सर्वसम्मति" के साथ ही होना चाहिए.
मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, "हमने समूह के विस्तार पर अतीत में अपनी स्थिति स्पष्ट की है. जैसा कि पिछले साल नेताओं ने तय किया था, ब्रिक्स सदस्य पूरे परामर्श और सर्वसम्मति के साथ ब्रिक्स के विस्तार की प्रक्रिया के लिए सिद्धांतों, मानकों, मानदंडों और प्रक्रियाओं पर चर्चा कर रहे हैं."
बागची ने उन रिपोर्ट्स को ख़ारिज किया है, जिसमें दावा किया जा रहा था कि भारत ब्रिक्स के विस्तार के खिलाफ़ है.
उन्होंने कहा, "जैसा कि हमारे विदेश मंत्री ने बताया था हम खुले दिमाग़ और सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ इस पर विचार कर रहे हैं. हमने कुछ निराधार अटकलों से भरी रिपोर्ट देखी हैं कि भारत को विस्तार से आपत्ति है, यह बिल्कुल झूठ है. "
हाल ही में ब्राज़िल के राष्ट्रपति लुइस लूला डी सिल्वा के कहा था कि अर्जेंटीना और यूएई के साथ सऊदी अरब का भी ब्रिक्स में शामिल होना "महत्वपूर्ण" है.
इस बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए रूस सरकार के प्रेस सचिव दिमित्रि पेस्कोव ने कहा कि रूस के इन तीनों देशों के साथ बेहतर संबंध हैं, लेकिन ब्रिक्स के कुछ ख़ास सदस्यों से बातचीत के बिना और सम्मेलन में इस मुद्दे पर चर्चा से पहले हमें थोड़ा ठहरना होगा.
पुतिन क्यों नहीं हो रहे हैं ब्रिक्स की बैठक में शामिल
पुतिन के ख़िलाफ़ इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में वॉरंट जारी किया गया है. इसलिए अगर वो दक्षिण अफ्रीका जाते, तो वहां उनकी गिरफ़्तारी हो सकती थी.
दक्षिण अफ्रीका इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का सदस्य है, इसलिए उसे पुतिन की गिरफ़्तारी के क़दम उठाने पड़ सकते थे और ये दक्षिण अफ्रीका के लिए एक बड़ी कूटनीतिक और क़ानूनी दुविधा हो जाती.
बीते दिनों एशिया और ब्रिक्स के दक्षिण अफ्रीकी ऐम्बैस्डर-एट-लार्ज अनिल सुकलाल ने कहा था कि एक सामूहिक फ़ैसले के बाद यह तय हुआ कि पुतिन ब्रिक्स सम्मेलन में वर्चुअली हिस्सा लेंगे.
सुकलाल ने जोहानिसबर्ग में पत्रकारों से कहा,'' राष्ट्रपति पुतिन दक्षिण अफ्रीका की दुविधा समझते हैं. इसलिए वो ब्रिक्स सम्मेलन को ख़तरे में नहीं डालना चाहते.''
17 मार्च 2023 को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट यानी आईसीसी ने यूक्रेन में कथित युद्धापराधों के मामले में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की गिरफ़्तारी के लिए वॉरंट जारी किया था.
आईसीसी ने पुतिन पर यूक्रेन के रूसी कब्ज़े वाले इलाक़ों से बच्चों को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से बाहर ले जाने के आरोप लगाए हैं.
आईसीसी ने रूस के बाल अधिकार आयोग की प्रमुख मारिया लवोवा-बेलोवा की गिरफ़्तारी के लिए भी वॉरंट जारी किया था.
दक्षिण अफ्रीका ने रूस-यूक्रेन पर तटस्थ रवैया अपनाया है. लेकिन अगर पुतिन दक्षिण अफ्रीका जाते तो आईसीसी का सदस्य होने के नाते उसे रूसी राष्ट्रपति की गिरफ़्तारी के लिए वॉरंट जारी करना पड़ सकता था.
आईसीसी का मुख्यालय हेग (नीदरलैंड) में है. एक स्वतंत्र न्यायिक निकाय है, जिसने 1 जुलाई 2002 से काम करना शुरू किया था.
इंटरनेशल कोर्ट ऑफ जस्टिस किसी देश के मामले में काम करता है लेकिन आईसीसी अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए ख़तरा बने किसी व्यक्ति के ख़िलाफ़ मुक़दमा चलाता है.
रूस ने यूक्रेन में पिछले साल फ़रवरी में किए गए हमले के दौरान अत्याचार के आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि वो आईसीसी के फ़ैसले को कोई अहमियत नहीं देता.
इसके साथ ही आईसीसी का न्याय क्षेत्र 1 जुलाई 2002 के बाद हुए अपराधों तक ही सीमित है. वो भी उन देशों में जिन्होंने आईसीसी समझौते पर हस्ताक्षर किया है.
रूस उन 123 देशों में नहीं है जो आईसीसी के अधिकार को मान्यता देता है. अमेरिका ने भी इस पर दस्तखत नहीं किए हैं. भारत और चीन भी आईसीसी के न्याय क्षेत्र को मान्यता नहीं देते.
ब्रिक्स कितना मज़बूत
दक्षिण अफ्रीका इस साल ब्रिक्स की अध्यक्षता कर रहा है. ब्राजील, रूस, भारत और दक्षिण अफ्रीका के संगठन ब्रिक्स को पश्चिमी देशों के आर्थिक दबदबे को चुनौती देने के लिए खड़ा किया गया था.
2001 में गोल्डमैन सैक्श के अर्थशास्त्री जिम ओ नील इन देशों को ब्रिक्स नाम दिया था. उन्होंने कहा था कि 2050 तक पूरी दुनिया में इन देशों की अर्थव्यवस्थाओं का वर्चस्व होगा.
ब्रिक्स के सभी सदस्य देश जी-20 के भी सदस्य हैं. फ़िलहाल दुनिया की जीडीपी में ब्रिक्स देशों की हिस्सेदारी 26 फीसदी से ज्यादा है.
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