नई दिल्ली: लोग तब ज्यादा झुंझलाते और गुस्सा होते हैं, जब उन्हें पता चलता है कि उनकी बदहाली की वजह कोई और है. डायरेक्टर सुभाष कपूर का भी यही हाल था, जब रिसेशन की वजह से उन्हें कहीं अच्छा काम नहीं मिल रहा था.
ज्यादातर समस्याओं की तरह, वे अमेरिका की देन मानते हैं. उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की फेमस स्पीच ‘यस वी कैन’ पर व्यंग्य कसते हुए, एक फिल्म लिखी, जिसकी कहानी कुछ गैंगस्टर्स के इर्द-गिर्द बुनी गई, जिनकी जेब खाली हैं. उनकी एकमात्र उम्मीद वह एनआरआई है, जो रिसेशन की मार से पहले ही कंगाल है. फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ (Phas Gaye Re Obama) जब बनकर 2010 में रिलीज हुई, तो दर्शकों के साथ-साथ क्रिटिक्स का भी इसे भरपूर प्यार मिला. फिल्म हिट रही. (फोटो साभार: YouTube@Videograb)
सुभाष कपूर से एक इंटरव्यू में जब रिसेशन पर फिल्म बनाने की वजह पूछी गई, तो उन्होंने बताया कि पहली फिल्म ‘सलाम इंडिया’ की बॉक्स ऑफिस पर खराब परफॉर्मेंस के बाद, उन्हें काम पाने में दिक्कत हो रही थी. उन्होंने बताया था, ‘प्रोड्यूसर्स कहते कि हम सभी रिसेशन से जूझ रहे हैं. मैंने अपना फ्रस्ट्रेशन और गुस्सा निकालने के लिए, एक व्यंग्य लिख डाला. मैंन सोचा कि पूरी दुनिया रिसेशन से जूझ रही है, तो अंडरवर्ल्ड और राजनेता इससे कैसे बच सकते हैं.’ फिल्म का आइडिया शानदार था, तो प्रोडक्शन कंपनी ‘रेवेल फिल्म्स’ उनके सपोर्ट में आगे आई.
सुभाष कपूर ने फिर कंगाल गैंगस्टर्स और एक एनआरआई को लेकर ब्लैक कॉमेडी बनाई. खबरों की मानें, तो फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ 6 करोड़ में बनी थी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर लगभग 14 करोड़ रुपये कमाए थे. फिल्म में संजय मिश्रा, रजत कपूर, नेहा धूपिया, मनु ऋषि और अमोल गुप्ते जैसे माहिर कलाकार हैं.
फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ में रजत कपूर एक एनआरआई बने हैं, जो रिसेशन में अपना सबकुछ खो देते हैं, वे पैसों के जुगाड़ में इंडिया अपनी पैतृक संपत्ति बेचने आते हैं, लेकिन कुछ गैंगस्टर फिरौती के लिए उन्हें किडनैप कर लेते हैं, जिसके जंजाल में धीरे-धीरे दूसरे गैंगस्टर और राजनेता भी फंसते चले जाते हैं.
‘फंस गए रे ओबामा’ लोगों के साथ-साथ फिल्म विशेषज्ञों को भी पसंद आई थी. फिल्म में हर एक एक्टर का काम काबिलेगौर था, लेकिन भाई साहब के किरदार में संजय मिश्रा ने लोगों को खूब हंसाया. उन्हें बेस्ट कॉमेडियन का स्टार स्क्रीन अवॉर्ड मिला था. फिल्म पर तेलुगू सिनेमा में ‘Sankarabharanam’ नाम से रीमेक भी बनी है.
नई दिल्ली: लोग तब ज्यादा झुंझलाते और गुस्सा होते हैं, जब उन्हें पता चलता है कि उनकी बदहाली की वजह कोई और है. डायरेक्टर सुभाष कपूर का भी यही हाल था, जब रिसेशन की वजह से उन्हें कहीं अच्छा काम नहीं मिल रहा था.
ज्यादातर समस्याओं की तरह, वे अमेरिका की देन मानते हैं. उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की फेमस स्पीच ‘यस वी कैन’ पर व्यंग्य कसते हुए, एक फिल्म लिखी, जिसकी कहानी कुछ गैंगस्टर्स के इर्द-गिर्द बुनी गई, जिनकी जेब खाली हैं. उनकी एकमात्र उम्मीद वह एनआरआई है, जो रिसेशन की मार से पहले ही कंगाल है. फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ (Phas Gaye Re Obama) जब बनकर 2010 में रिलीज हुई, तो दर्शकों के साथ-साथ क्रिटिक्स का भी इसे भरपूर प्यार मिला. फिल्म हिट रही. (फोटो साभार: YouTube@Videograb)
सुभाष कपूर से एक इंटरव्यू में जब रिसेशन पर फिल्म बनाने की वजह पूछी गई, तो उन्होंने बताया कि पहली फिल्म ‘सलाम इंडिया’ की बॉक्स ऑफिस पर खराब परफॉर्मेंस के बाद, उन्हें काम पाने में दिक्कत हो रही थी. उन्होंने बताया था, ‘प्रोड्यूसर्स कहते कि हम सभी रिसेशन से जूझ रहे हैं. मैंने अपना फ्रस्ट्रेशन और गुस्सा निकालने के लिए, एक व्यंग्य लिख डाला. मैंन सोचा कि पूरी दुनिया रिसेशन से जूझ रही है, तो अंडरवर्ल्ड और राजनेता इससे कैसे बच सकते हैं.’ फिल्म का आइडिया शानदार था, तो प्रोडक्शन कंपनी ‘रेवेल फिल्म्स’ उनके सपोर्ट में आगे आई.
सुभाष कपूर ने फिर कंगाल गैंगस्टर्स और एक एनआरआई को लेकर ब्लैक कॉमेडी बनाई. खबरों की मानें, तो फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ 6 करोड़ में बनी थी, जिसने बॉक्स ऑफिस पर लगभग 14 करोड़ रुपये कमाए थे. फिल्म में संजय मिश्रा, रजत कपूर, नेहा धूपिया, मनु ऋषि और अमोल गुप्ते जैसे माहिर कलाकार हैं.
फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ में रजत कपूर एक एनआरआई बने हैं, जो रिसेशन में अपना सबकुछ खो देते हैं, वे पैसों के जुगाड़ में इंडिया अपनी पैतृक संपत्ति बेचने आते हैं, लेकिन कुछ गैंगस्टर फिरौती के लिए उन्हें किडनैप कर लेते हैं, जिसके जंजाल में धीरे-धीरे दूसरे गैंगस्टर और राजनेता भी फंसते चले जाते हैं.
‘फंस गए रे ओबामा’ लोगों के साथ-साथ फिल्म विशेषज्ञों को भी पसंद आई थी. फिल्म में हर एक एक्टर का काम काबिलेगौर था, लेकिन भाई साहब के किरदार में संजय मिश्रा ने लोगों को खूब हंसाया. उन्हें बेस्ट कॉमेडियन का स्टार स्क्रीन अवॉर्ड मिला था. फिल्म पर तेलुगू सिनेमा में ‘Sankarabharanam’ नाम से रीमेक भी बनी है.
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