- भारत को फ़्रांस आख़िर इतनी तवज्जो क्यों दे रहा है? | सच्चाईयाँ न्यूज़

मंगलवार, 11 जुलाई 2023

भारत को फ़्रांस आख़िर इतनी तवज्जो क्यों दे रहा है?

भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आगामी 13 जुलाई को अपने दो दिवसीय दौरे पर फ़्रांस की राजधानी पेरिस पहुँच रहे हैं.

पीएम मोदी इस मौक़े पर फ़्रांस के राष्ट्रीय वार्षिक कार्यक्रम 'बैस्टिल डे' कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल होंगे.

ये दूसरा मौक़ा है, जब फ़्रांस ने किसी भारतीय नेता को इस कार्यक्रम में गेस्ट ऑफ़ ऑनर बनाया है.

इससे पहले साल 2009 में भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसी कार्यक्रम में गेस्ट ऑफ़ ऑनर के रूप में शामिल हुए थे.

इस कार्यक्रम के साथ-साथ दोनों देशों के नेताओं के बीच सैन्य एवं रणनीतिक समझौतों से लेकर रूस-यूक्रेन युद्ध और हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिति जैसे बहुपक्षीय मुद्दों पर चर्चा हो सकती है.

कितने मज़बूत हैं भारत-फ़्रांस संबंध

फ़्रांस के वार्षिक कार्यक्रम बैस्टिल डे में भारतीय नेताओं को बार-बार आमंत्रित किया जाना, दोनों मुल्कों के क़रीबी रिश्तों को रेखांकित करता है.

भारत की आज़ादी के बाद चार दशकों तक यूरोप में ब्रिटेन भारत का सबसे क़रीबी साझेदार रहा था.

लेकिन पिछले तीन दशकों में विचारों और पारस्परिक हितों के स्तर पर क़रीब आने से फ़्रांस यूरोप में भारत का सबसे मज़बूत साझेदार बनकर उभरा है.

यही नहीं, रूस के बाद फ़्रांस भारत का सबसे बड़ा दोस्त बनकर भी सामने आया है.

दोनों देशों के आपसी रिश्तों को सबसे ज़्यादा मज़बूती 1998 में हुए रणनीतिक साझेदारी समझौते ने दी.

बीते 25 सालों में दोनों देश इस समझौते पर खरे उतरते नज़र आए हैं.

भारत ने इस समझौते के तुरंत बाद साल 1998 में ही राजस्थान के पोखरण में परमाणु हथियारों का परीक्षण किया था.

तमाम पश्चिमी देशों ने इसकी प्रतिक्रिया के रूप में भारत पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए थे. लेकिन फ़्रांस प्रतिबंध लगाने वाले इन मुल्कों में शामिल नहीं हुआ.

यही नहीं, फ़्रांस ने इन प्रतिबंधों को जल्द से जल्द हटाने के लिए भारत की ओर से किए जाने वाले प्रयासों का समर्थन भी किया.

इसके साथ ही कुछ मुल्कों ने भारत को हथियारों का निर्यात करने पर प्रतिबंध लगाए थे. लेकिन फ़्रांस इस मौक़े पर भी प्रतिबंध लगाने वाले देशों के साथ खड़ा नहीं हुआ.

इसी वजह से पिछले 25 सालों में फ़्रांस भारत को एयरक्राफ़्ट से लेकर सबमरीन तक अलग-अलग तरह के रक्षा उत्पाद बेचने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश बना है.

इस मामले में सिर्फ़ रूस ही फ़्रांस से आगे है.

रफ़ाल लड़ाकू विमान

किन रक्षा सौदों पर हो सकती है बात

पीएम मोदी इस दौरे पर फ़्रांस से नौसेना की ज़रूरतों के लिहाज़ से तैयार किए गए 26 रफ़ाल विमान ख़रीदने की घोषणा कर सकते हैं.

इस डील का मक़सद भारत के सबसे नए एयरक्राफ़्ट कैरियर आईएनएस विक्रांत को लड़ाकू विमानों से लैस करना है.

इसके साथ-साथ दोनों मुल्क रक्षा क्षेत्र में ऐसे समझौतों का भी एलान कर सकते हैं, जिनमें फ़्रांस की ओर से टेक्नोलॉजी ट्रांसफर किया जाना शामिल हो सकता है.

हालांकि, फ़्रांस जिन चीज़ों को भारत को बेचना चाहता है, उनकी लिस्ट लंबी है. फ़्रांस भारत से स्कॉर्पियन पनडुब्बियों का नया ऑर्डर देने का आग्रह कर रहा है.

इससे पहले हुए समझौते के तहत मुंबई के मझगांव डॉक्स पर अंतिम छह पनडुब्बियों को बनाया जा रहा है. और पांच पनडुब्बियां पहले ही बनाई जा चुकी हैं.

फ़्रांस ये भी चाहता है कि भारत एयरबस हेलिकॉप्टर नामक कंपनी की ओर से नौसेना के लिए बनाए गए NH90 हेलिकॉप्टर भी ख़रीदे.

इसके साथ ही फ़्रांस महाराष्ट्र में प्रस्तावित जैतापुर न्यूक्लियर पावर स्टेशन के लिए फ़्रांसीसी ईपीआर न्यूक्लियर रिएक्टर बेचने की कोशिश करेगा.

दोनों देशों के बीच इस डील को लेकर 15 साल पहले सहमति बनी थी. लेकिन दुनिया के इस सबसे महंगे न्यूक्लियर पावर रिएक्टर की क़ीमत, सुरक्षा और इसकी व्यावहारिकता के मुद्दे पर बातचीत रुकी हुई है.

बातचीत आगे न बढ़ने की एक वजह ये भी है कि फ़्रांसीसी कंपनी ईडीएफ़ अब तक फ्रांस में ही पहला

ये एक प्रोजेक्ट है, जिसकी लागत बजट की तुलना में कई गुना तक बढ़ गई है और इसे स्थापित करने के लिए जो समयसीमा दी गई थी, उसे गुज़रे एक दशक से भी ज़्यादा हो गया है.

किन रणनीतिक मुद्दों पर होगी बात

रक्षा सौदों से इतर फ़्रांस और भारत के बीच कई रणनीति मुद्दों पर भी बात हो सकती है.

इनमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र का मुद्दा सबसे अहम हैं क्योंकि दोनों मुल्क अंतरराष्ट्रीय समुद्र क्षेत्र में बढ़ते चीनी दबदबे को लेकर चिंतित हैं.

इसके साथ ही दक्षिण एशिया के हालात पर भी बातचीत हो सकती है. इनमें पाकिस्तान का आर्थिक संकट और अफ़ग़ानिस्तान में मानवाधिकार का हनन आदि शामिल है.

इस दौरान मैक्रों रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा उठा सकता है. अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की तरह पीएम मोदी पर रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी देशों के साथ खड़े होने और कुछ क़दम उठाने की अपील कर सकते हैं.

इस दौरान भारत से कहा जा सकता है कि अगर वह प्रतिबंध लगाने में पश्चिमी देशों का साथ नहीं देना चाहता है तो कम से कम वह रूस से कच्चा तेल ख़रीदना कम करे.

पीएम मोदी को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ये संकेत भी भेजा जा सकता है कि वह सितंबर में दिल्ली में होने जा रही जी20 समिट से पुतिन को बाहर रखें.

पेरिस में गणेश चतुर्थी के मौके पर नारियल फोड़ते लोग

इसके साथ ही दोनों मुल्कों के बीच सांस्कृतिक स्तर के साथ-साथ लोगों के बीच क़रीबी संबंध रहे हैं. फ्रांसीसी एक लंबे समय से भारतीय संस्कृति और विरासत के प्रति आकर्षित रहे हैं. इसमें योग और आयुर्वेद ने अहम भूमिका निभाई है

यही नहीं, भारतीय साहित्य, संगीत, और नृत्य कलाओं के साथ-साथ भारतीय फिल्में भी फ़्रांस में काफ़ी लोकप्रिय हैं. मसालेदार होने के बावजूद भारतीय भोजन फ़्रांस में लोकप्रिय हो गया है.

भारत में भी फ़्रांसीसी संस्कृति काफ़ी लोकप्रिय होती जा रही है. भारत में इस समय विदेशी भाषा के रूप में सबसे ज़्यादा छात्र फ्रेंच सीख रहे हैं.

भारत के कई स्कूलों और विश्वविद्यालयों में विदेशी भाषा के रूप में फ्रेंच सिखाई जा रही है.

फ्रेंच भाषा और फ्रांसीसी संस्कृति के प्रचार-प्रसार के लिए फ़्रांस की ओर से बनाए गए संस्थान एलायंस फ्रेंकेइस की सबसे ज़्यादा शाखाएं भारत में हैं.

हालांकि, फ़्रांस ने भारतीय छात्रों को स्वीकार करने में थोड़ा वक़्त लिया है.

लेकिन अब फ़्रांस में पढ़ने जा रहे भारतीय छात्रों की संख्या बढ़ रही है और पिछले बीस सालों में इस संख्या में दस गुना वृद्धि हुई है.

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर होगी बात?

दोनों नेताओं के बीच बहुपक्षीय मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन और वैश्विक व्यापारिक मार्गों जैसे मुद्दों पर भी बातचीत हो सकती है.

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर भारत और फ़्रांस कई मामलों पर एक दूसरे से सहमत हैं लेकिन कुछ मामलों में दोनों के बीच गंभीर मतभेद हैं.

दुनिया भर में सौर ऊर्जा तकनीक के प्रसार के लिए भारत और फ्रांस ने साल 2015 में अंतरराष्ट्रीय सोलर एलायंस प्रोजेक्ट लॉन्च किया था.

इस एलायंस ने पिछले 8 सालों में आर्थिक रूप से कमज़ोर देशों को सोलर ऊर्जा तकनीक का इस्तेमाल करके अपने कार्बन उत्सर्जन कम करने लायक बनाया है.

लेकिन समृद्ध देशों की ओर से विकासशील देशों को हर साल 100 अरब डॉलर देने के मुद्दे पर दोनों देश सहमत नहीं है.

विकासशील देशों की ओर से ये रक़म इसलिए मांगी जा रही है ताकि वे अपनी अर्थव्यवस्थाओं को हरित ऊर्जा की तरफ़ ले जा सकें.

व्यापार के मुद्दे पर भी दोनों देशों की सोच एक समान नहीं है.

क्योंकि विश्व व्यापार संगठन में कई मुद्दों पर फ्रांस और भारत अलग गुटों में खड़े दिखाई देते हैं.

इनमें पेटेंट्स, बाज़ार में पहुंच और लोगों एवं कृषि से जुड़े मुद्दे शामिल हैं.

व्यापारिक रिश्ते कितने मजबूत

भारत और फ़्रांस के बीच इतने अच्छे रिश्ते होने के बावजूद व्यापारिक स्तर पर दोनों के बीच रिश्ते समृद्ध नहीं हो पाए हैं.

साल 2010 से लेकर 2021 तक दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार में सिर्फ़ चार अरब डॉलर की वृद्धि हुई.

साल 2010 में फ़्रांस के साथ भारत का कारोबार 9 अरब डॉलर का था जो 2021 में 13 अरब डॉलर तक पहुंचा है.

इसी वजह से फ्रांस यूरोप में भारत का सबसे छोटा व्यापारिक साझेदार है.

व्यापारिक रिश्तों में प्रगति सबसे धीमी रफ़्तार से हुई है जबकि भारत एयरक्राफ़्ट से लेकर सेटेलाइट समेत कई चीज़ें ख़रीदता है.

इसकी तुलना में दूसरे देशों के साथ भारत के व्यापार में तेज उछाल आया है.

भारत और चीन के बीच सीमा से जुड़े संघर्षों के बावजूद साल 2010 में व्यापार 58 अरब अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2021 में 117 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है.

इस तरह चीन भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है.

इसी तरह अमेरिका के साथ भी 2010 में भारत का व्यापार सिर्फ़ 45 अमेरिकी डॉलर था जो 2021 में 110 अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है. सिर्फ़ अमेरिका और चीन जैसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ही नहीं जर्मनी का भी भारत के साथ कारोबार 2010 के 19 अरब अमेरिकी डॉलर की तुलना में 2021 में बढ़कर 27 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया है.

भारत और फ्रांस के बीच व्यापार में रक्षा सौदों की अहम भूमिका रही है. इसके साथ ही भारत सरकार ने मेट्रो रेलों से लेकर लोको मोटिव जैसे सौदे किए हैं.

अगर आप इन सौदों को हटा दें तो दोनों मुल्कों के बीच व्यापार के आंकड़े धड़ाम से नीचे गिर जाते हैं जो ये संकेत देते हैं कि दोनों मुल्कों के बीच वाणिज्यिक रिश्ते काफ़ी सीमित और उथले हैं.

दोनों देशों की सरकार दूसरे क्षेत्रों की तरह व्यापार के क्षेत्र में अपने करारों को मजबूती देने में विफल रहे हैं. इसकी वजह निचले और मध्यमस्तरीय व्यवसाय हैं जो कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं की रीढ़ हैं.

द्विपक्षीय ट्रेड में इस तरह की कंपनियों की ग़ैरमौजूदगी है क्योंकि दोनों ही देशों की कंपनियां एक दूसरे के मार्केट में घुसने को लेकर संशकित रहती हैं.

ऐसे में अब जब मोदी और मैक्रों पेरिस में मिलने जा रहे हैं तो द्विपक्षीय व्यापारिक रिश्तों को विस्तार और गहराई देने के साथ-साथ इस साझेदारी में छोटे और मंझोले व्यापारों को शामिल करना मुख्य उद्देश्य होना चाहिए.

क्योंकि द्विपक्षीय कारोबार बढ़ाना देशों देशों के भविष्य के लिए प्राथमिक लक्ष्य हो सकता है.

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