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मंगलवार, 11 जुलाई 2023

अकेला अरब देश, जहां मुस्लिम महिलाओं को गैर-मुसलमानों से शादी की है इजाजत, कैसे मिली मंजूरी

अरब देशों में मुस्लिम महिलाओं को गैर-मुसलमानों से शादी की इजाजत नहीं दी जाती थी. वहीं, अरब दुनिया में एक देश ऐसा भी है, जहां की मुस्लिम महिलाओं को गैर-मुसलमान लड़कों से शादी करने की इजाजत है. दरअसल, ट्यूनीशिया ने कुछ साल पहले सदियों से चली आ रही परंपरा को किनारे रखकर अपने देश की मुस्लिम महिलाओं की इसकी मंजूरी दे दी. ट्यूनीशिया के इस फैसले की दुनियाभर के मानवाधिकार समूहों और कार्यकर्ताओं ने जमकर तारीफ की. ट्यूनीशिया व‍ह देश है, जिसने अरब स्प्रिंग में लोकतंत्र समर्थक प्रदर्शनों की शुरुआत की थी. ये प्रदर्शन मध्य पूर्व में फैल गया था. ट्यूनीशिया में लोकतंत्र के लिए संघर्ष अशांति, युद्ध, सैन्य तख्तापलट या बड़े दमन में तब्‍दील नहीं हो पाया था. प्रगतिशील इस्लामिक देश ट्यूनीशिया की 99 फीसदी आबादी इस्लाम को मानती है. ट्यूनीशिया अफ्रीका के उत्तरी छोर पर है, जिसका क्षेत्रफल 1.63 लाख वर्ग किमी है. प्राचीन मुल्क ट्यूनीशिया का इतिहास काफी समृद्ध है. मौजूदा समय में इस देश की महिलाओं को पूरी इस्लामी दुनिया में सबसे ज्‍यादा आजादी है. ट्यूनीशिया में इसके लिए पुराने कानून को हटाकर नया कानून बनाया गया. नए कानून के तहत मुस्लिम महिलाओं को अधिकार दिया गया कि वे गैर-इस्लामिक लड़के का धर्म परिवर्तन कराए बिना शादी कर सकती हैं. दुनिया के ज्‍यादातर इस्लामिक देशों में मुस्लिम लड़की दूसरे धर्म के लड़के के साथ धर्म परिवर्तन कराकर ही शादी कर सकती है ट्यूनीशिया की जनता ने लोकतंत्र और पूरी आजादी के लिए 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति जीन अल एबिदीन बेन अली के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. इसके बाद 2017 में राष्ट्रपति बेजी कैद एसेब्सी की सरकार ने महिलाओं को बिना इस्‍लाम कबूल करवाए गैर-मुस्लिम लड़के से शादी का कानूनी अधिकार दे दिया. बता दें कि ट्यूनीशिया में 1973 में एक कानून लागू किया गया था. इसके तहत कोई मुस्लिम महिला तभी गैर-मुसलमान से शादी कर सकती थी, जब लड़का अपना धर्म छोड़कर इस्‍लाम कबूल कर ले. इस तरह के कानून अरब समेत ज्‍यादातर इस्लाम को मानने वाले देशों में लागू हैं. ट्यूनीशिया की जनता ने पूरी आजादी के लिए 2011 में तत्कालीन राष्ट्रपति जीन अल एबिदीन बेन अली के खिलाफ विद्रोह कर दिया था. सत्‍ता परिवर्तन के बाद आया सुलह कानून क्रांति के बाद शुरुआत में ट्यूनीशिया के लंबे समय से पीड़ित इस्लामवादी सत्ता में आए, लेकिन उन्‍हें 2014 में वोट के जरिये सत्‍ता से बेदखल कर दिया गया. इससे बेजी कैद एसेब्‍सी कई अन्य लोगों के साथ सत्‍ता में आ गए. उन्‍होंने पहले की क्रांतिकारी सरकारों में कई पदों पर काम किया था. उन्‍होंने एक के बाद एक हुए आतंकवादी हमलों के बाद जनता से क्षमता, समृद्धि और सुरक्षा का वादा किया. एसेब्‍सी ने अपने प्रचार अभियान के दौरान व्यवसायियों और सिविल सेवकों के लिए एक सुलह कानून लागू करने का वादा किया था. इसके तहत उन पर पिछली सरकारों की ओर से चलाए जा रहे अत्याचार, रिश्‍वतखोरी और गबन समेत तमाम मुकदमों को बंद किया जाना था. तर्क दिया गया कि जो देश चलाना जानते हैं, उन्हें काम पर वापस लाया जाए. दो कानूनों का आना महज संयोग नहीं था वाशिंगटन पोस्‍ट की रिपोर्ट के मुताबिक, ह्यूमन राइट्स वॉच की आमना गुएलाली ने बताया था कि महिलाओं की शादी के उदारीकरण के साथ सुलह कानून का समय संयोग नहीं हो सकता. उनके मुताबिक, महिलाओं के अधिकारों पर अपनी नीति के लिए पुरानी तानाशाही की प्रशंसा की जाती थी. यहां तक ​​​​कि विपक्ष के दमन को भी नजरअंदाज कर दिया जाता था. गुएलाली ने कहा कि लंबे समय तक पुराने शासन ने दमनकारी नीतियों से ध्यान हटाने के लिए महिलाओं के अधिकारों पर प्रगति को ढाल की तरह इस्तेमाल किया था. महिलाओं के अधिकारों की वकालत करते हुए और साथ ही भ्रष्टाचार के लिए दंडमुक्ति का विस्तार करते हुए ट्यूनीशियाई सरकार ने याद दिला दिया कि दो विपरीत वास्तविकताएं अतीत में कैसे काम करIती थीं. संसद से ही नदारद हो गए कई सांसद ट्यूनीशिया में व्यापक अनुभव रखने वाली ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की शोधकर्ता मोनिका मार्क्स के अनुसार, दोनों कानूनों को लेकर अलग नजरिया काम कर रहा है. सुलह कानून के मुकाबले मुस्लिम महिलाओं को शादी की आजादी के कानून को विदेशी प्रेस में तीन गुना कवरेज मिला. उनके मुताबिक, माफी कानून से साफ संकेत है कि सरकार क्रांति की उपलब्धियों को खत्‍म करने की कोशिश कर रही है. इससे साफ मिलता है कि राज्य शक्तिशाली लोगों के लिए दंडमुक्ति को मंजूरी देता है. यह कानून उन लोगों के समर्थन के बिना पारित नहीं हो सकता था, जो पुराने इस्लामवादी शासन के तहत सबसे अधिक पीड़ित थे. कई सांसदों ने इस कानून को पारित कराने की प्रक्रिया में हिस्‍सा ही नहीं लिया.

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