यूपी में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि अदालतें किसी आपराधिक मामले में फैसला सुना चुकी हैं तो उन्हें दोबारा उसी मामले में पुनर्विचार की शक्ति नहीं है। वह केवल लिपिकीय या अंकगणीतिय त्रुटि को ही ठीक कर सकती हैं।इसके अलावा उसमें बदलाव या समीक्षा नहीं कर सकती हैं। यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने मेरठ के गोविंद उर्फ अरविंद व तीन अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। कोर्ट ने कहा कि एक बार फैसला सुनाने के बाद उसी मामले पर फिर गुणदोष के आधार पर विचार नहीं किया जा सकता।
अदालत ऐसा करती है तो यह पहले के आदेश में बदलाव या समीक्षा होगी, जो सीआरपीसी की धारा 362 के तहत पूरी तरह प्रतिबंधित है। मामले के तथ्यों के अनुसार मेरठ सत्र न्यायालय ने याची के खिलाफ आईपीसी की धारा 147, 184, 149, 302, 506, 120 के तहत नए सिरे से विचार करने के लिए सम्मन किया था, जिसे याची ने याचिका दाखिल कर चुनौती दी थी। उसका कहना था कि मेरठ सत्र न्यायालय इस मामले में एक बार फैसला सुना चुका है। दोबारा इस मामले को गुणदोष के आधार सुनवाई कर फैसला सुनाने के लिए उसे सम्मन किया गया है।
कोर्ट ने कहा कि एक बार फैसला सुनाने के बाद उसी मामले को फिर से गुणदोष के आधार पर विचार नहीं किया जा सकता। कोर्ट ऐसा करती है तो यह पहले के आदेश में बदलाव या समीक्षा होगी, जो सीआरपीसी की धार 362 द्वारा पूरी तरह प्रतिबंधित है। हाईकोर्ट ने मोतीलाल बनाम मध्य प्रदेश राज्य के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए आदेश का उल्लेख भी किया। इस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने लिपिकीय या अंकगणितिय त्रुटि को ठीक करने के अलावा उस पर नए सिरे से विचार करने से मना कर दिया था।
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