यूनिवर्सिटी के मुद्दे पर पंजाब और हरियाणा के मुख्यमंत्रियों तथा यू.टी. के प्रशासक (जोकि पंजाब के राज्यपाल हैं) की लगातार बैठकों ने पंजाब के लोगों विशेषकर शिक्षा क्षेत्र से जुड़ीं शख्सियतों में एक नई जिज्ञासा पैदा कर दी है। बेशक ये दोनों बैठकें बेनतीजा रहीं और पंजाब के मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर हरियाणा की मांग को साफ तौर पर खारिज कर दिया है। भगवंत मान के इस स्टैंड के बावजूद राज्यपाल ने 3 जुलाई को दोबारा बैठक बुलाने का फैसला किया है पर इस बैठक का कोई नतीजा निकलेगा या नहीं या फिर पूर्व की बैठकों की तरह ही बेनतीजा खत्म हो जाएगी, इसका तो बैठक होने के बाद ही पता चलेगा।
बेनतीजा रही दोनों बैठकें किन कारणों से हुईं, बैठकों में किस मुद्दे पर बातचीत हुई तथा पंजाब के मुख्यमंत्री ने क्यों हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के परामर्श को प्राथमिक तौर पर खारिज कर दिया, यह विचार करने से पहले पंजाब यूनिवर्सिटी के इतिहास के बारे में जान लेना बेहद लाजिमी है।पंजाब यूनिवर्सिटी जोकि पंजाब या हिंदुस्तान ही नहीं दुनिया भर में एक शीर्ष स्थान रखती है की स्थापना 14 अक्तूबर 1882 में लाहौर में हुई थी।
उस समय इस यूनिवॢसटी के साथ आज के वर्तमान पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल तथा पाकिस्तानी पंजाब के सभी कालेज जुड़े हुए थे। यूनिवर्सिटी के चांसलर भारत के उप-राष्ट्रपति होते थे तथा उप-कुलपति केंद्र सरकार की ओर से नियुक्त किया जाता था। इस समय श्रीमती रेणु विग प्रथम महिला हैं जोकि कार्यकारी कुलपति के तौर पर कार्य कर रही हैं। जल्द ही यूनिवर्सिटी को नया उप-कुलपति भी मिलने की उम्मीद है। इस यूनिवॢसटी के साथ जुडऩे वाला सबसे पहला कालेज महिन्द्रा कालेज पटियाला था।
इस यूनिवर्सिटी के अध्यापकों तथा छात्रों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में विशेष योगदान डाला। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स. मनमोहन सिंह ने इसी यूनिवॢसटी से एम.ए. इकोनॉमिक्स में सबसे अधिक अंक अर्जित करने का रिकार्ड भी बनाया। इसके अलावा देश के बहुत ही सम्मानित और गण्यमान्य लोग इस यूनिवर्सिटी के साथ जुड़े रहे। भारत विभाजन के समय पंजाब यूनिवर्सिटी लाहौर में थी जिस कारण भारत सरकार ने 1 अक्तूबर 1947 को ईस्ट पंजाब यूनिवर्सिटी के नाम पर अध्यादेश जारी करके नई यूनिवर्सिटी बनाई।
इस यूनिवर्सिटी का मुख्यालय पहले हिमाचल के शिमला में, फिर कई सालों तक हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर में रहा और यूनिवर्सिटी के कैंपस पंजाब के जालंधर, हरियाणा के रोहतक तथा हिमाचल के शिमला में थे। चंडीगढ़ के मुख्य आर्किटैक्ट ली कारबुसुए की कमान के अंतर्गत यूनिवॢसटी का निर्माण हुआ। 10 सालों तक यह यूनिवर्सिटी बिना इमारत के ही रही। 1956 में सरकार की ओर से चंडीगढ़ के सैक्टर 14 और 25 में 550 एकड़ के क्षेत्र में इस यूनिवर्सिटी का निर्माण हुआ।
1950 में इस यूनिवर्सिटी का नाम ईस्ट पंजाब यूनिवर्सिटी से बदल कर पंजाब यूनिवर्सिटी कर दिया गया और पंजाब (Punjab) के स्पैलिंग बदल कर (panjab) कर दिए गए ताकि पाकिस्तानी यूनिवर्सिटी का नाम भी यही होने का कारण इंटरनैशनल समुदाय को कोई गलती न लगे परन्तु 1970 में, एक घटना जिसमें हरियाणा के मुख्यमंत्री बंसी लाल को एक समागम के मौके पर देरी से पहुंचने के कारण मंच पर कुर्सी न मिलने के कारण वे नाराज हो गए तथा इस यूनिवर्सिटी की बनावट को ही बिगाड़ दिया।
इस नाराजगी से बंसी लाल ने पंजाब यूनिवर्सिटी के साथ जुड़े कालेजों को पंजाब यूनिवर्सिटी से अलग कर कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी से जोड़ दिया। इस तरह यूनिवर्सिटी यू.टी. तथा पंजाब के अधीन रह गई और केंद्र ने हरियाणा की ओर से दिया जाने वाला हिस्सा आप देना शुरू कर दिया। इस कार्रवाई से हरियाणा पंजाब यूनिवर्सिटी से अलग हो गया परन्तु कुछ वर्षों से पंजाब की ओर से अपना बनता हिस्सा न देने के कारण यूनिवर्सिटी अपने खर्चे पूरे करने में असमर्थ हो गई।
एक अनुमान के अनुसार पंजाब यूनिवर्सिटी करीब 300 करोड़ से अधिक के घाटे में चल रही है। इस बात से जागरूक हरियाणा सरकार ने पंजाब को यह प्रस्ताव दिया कि हरियाणा पंजाब यूनिवर्सिटी को ग्रांट देने के लिए तैयार है मगर हरियाणा के कालेजों को इस यूनिवर्सिटी के साथ जोड़ा जाए जिस कारण दोनों मुख्यमंत्रियों और यू.टी. के प्रशासक के मध्य ये बैठकें हुईं जोकि बेनतीजा रहीं। इसका कारण यह है कि भगवंत मान ने यह प्रस्ताव को मानने से साफ इंकार कर दिया है।
मान ने खट्टर की ओर से दी गई पेशकशों को प्रैस वार्ता करके खारिज करने का दावा किया तथा कहा कि हरियाणा सरकार के प्रस्ताव वाजिब नहीं हैं तथा पंजाब यूनिवर्सिटी में हिस्सेदारी प्राप्त करने की कोशिश है। मान साहब की इस कार्रवाई का पंजाबियों की ओर से स्वागत तो किया गया है। पंजाब यूनिवर्सिटी का पिछला घाटा सरकार पूरा करेगी या नहीं जोकि 300 करोड़ से अधिक है यह भी स्पष्ट नहीं। इसके अलावा 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों के लागू होने के कारण घाटे के और बढऩे के आसार हैं।
लोगों ने आशंका जताई है कि मुख्यमंत्री ने यह तो कह दिया है कि सरकार पंजाब यूनिवर्सिटी के फंड का प्रबंध खुद करने के काबिल है पर इतने पैसे का प्रबंध करना कोई आसान कार्य नहीं है परन्तु फिर भी उम्मीद करनी चाहिए कि मुख्यमंत्री ने जो दावा किया है और जो उनकी सरकार ने शिक्षा का स्तर ऊपर उठाने का वायदा किया है उसे वह जरूर पूरा करेंगे।
एक टिप्पणी भेजें