चार बार उप्र में सत्ता के शिखर तक पहुंची बसपा के दुर्दिन जारी हैं। नगर निकाय चुनाव का परिणाम आया तो बसपा दूसरे नंबर से खिसककर जीरो पर पहुंच गई। बसपा प्रमुख मायावती ने इस चुनाव में दलित मुस्लिम समीकरण साधा था लेकिन मुस्लिमों ने ही बसपा का साथ नहीं दिया।उल्टा काडर वोटर दलितों ने भी बसपा को एकतरफा वोट नहीं किया। परिणाम यह रहा कि बसपा इस बार महपौर पद पर खाता भी नहीं खोल पाई।
नगर निकाय चुनाव 2017 की बात करें तो दो नगर निगमों में महापौर पद बसपा ने कब्जाकर दूसरे स्थान पर जगह बना ली थी। कुल 16 में से 14 पदों पर भाजपा का कब्जा हुआ था जबकि मेरठ और अलीगढ़ में बसपा ने भाजपा का विजयी रथ रोक दिया था। सपा और कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुला था। इस बार बसपा भी चारों खाने चित हो गई और उसकी मेरठ और अलीगढ़ की सीट भी भाजपा ने जीत ली। इसके अलावा आगरा, झांसी व सहारनपुर में बसपा नंबर दो पर ही थी। सहारनपुर में तो बसपा ने जमकर मुकाबला किया था और मामूली अंतर से ही हारी थी। चूंकि सहारनपुर में बसपा का काडर वोटर काफी है, इसलिए इस बार भी माना जा रहा था कि बसपा वहां तगड़ा मुकाबला करेगी।
बसपा ने इस बार दलित मुस्लिम दांव खेला। 17 में से 11 महापौर प्रत्याशी के रूप में मुस्लिमों को टिकट दिया था। बसपा थिंक टैंक का मानना था कि यदि दलितों के साथ मुस्लिम आ गए तो नैया पार हो ही जाएगी। चूंकि विधानसभा चुनाव में मुस्लिमों ने सपा का साथ दिया था पर सपा सत्ता प्राप्त नहीं कर सकी थी। ऐसे में बसपा मुस्लिमों को यह संदेश देना चाहती थी कि दलित मुस्लिम समीकरण से ही भाजपा को रोका जा सकता है और यह समीकरण बसपा के पास है। बावजूद इसके यह गणित पूरी तरह से फ्लॉप ही साबित हुई। मुस्लिम भी बंटे तो दलितों ने भी अपना वोट बांटा। इससे पहले विधानसभा चुनाव में भी बसपा की दुर्गति हुई थी। बसपा का मात्र एक विधायक ही जीता था। ऐसे में यह माना जा रहा था कि इस बार बसपा मेहनत कर रही है और नगर निकाय चुनाव में कुछ इसकी भरपाई करेगी पर ऐसा नहीं हो पाया।
वर्ष 2017 में बसपा का प्रदर्शन
महापौर 02
पालिका अध्यक्ष 29
पंचायत अध्यक्ष 45
पार्षद 147
पालिका सदस्य 262
पंचायत सदस्य 218
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