स्कीजोफ्रेनिया (मनोविदलता) एक मानसिक रोग है, लेकिन लोग अक्सर इसका इलाज कराने के बजाय इसे भूत-प्रेत, आत्मा और जादू टोने का असर समझकर झाड़-फूंक के चक्कर में पड़ जाते हैं।इलाज नहीं कराते। इससे यह बीमारी और बढ़ जाती है। एलएलआरएम मेडिकल कॉलेज और जिला अस्पताल में पिछले 12 महीने इस बीमारी के एक हजार से ज्यादा मरीज आए हैं।
लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 24 मई को विश्व स्कीजोफ्रेनिया दिवस मनाया जाता है। यह एक ऐसा मानसिक रोग है जिसमें रोगी को अपने व्यक्तित्व का कुछ पता नहीं रहता। उसके जीवन में न तो खुशी रहती है और न ही गम। उसे अपने खिलाफ साजिश होने की आशंका का डर लगा रहता है। जिस व्यक्ति में भी ये लक्षण हैं उसे तुरंत डॉक्टर से मशविरा लेना चाहिए।
आमतौर पर स्कीजोफ्रेनिया के लक्षणों की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। डॉक्टरों का कहना है कि स्कीजोफ्रेनिया कई वजहों से हो सकता है। तनाव और पारिवारिक कारण भी हो सकते हैं। इसके लिए मरीजों को सामान्य तौर पर एंटी साइकोटिक दवाएं दी जाती हैं।
शास्त्रीनगर की रहने वाली 31 वर्षीय महिला को परिजन झाड़-फूंक करा रहे थे, मगर आराम नहीं हो रहा था। परेशान होकर मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग में दिखाया तो पता चला स्कीजोफ्रेनिया बीमारी है। अब महिला का इलाज चल रहा है। पहले से काफी आराम है।
दिल्ली रोड के रहने वाले 46 साल के व्यक्ति को यह भ्रम हो जाने पर कि कोई उसकी हत्या कर देगा, परिजन उस पर जादू या ऊपरी असर समझ रहे थे। उसके गंडे-ताबीज करा रहे थे। आराम न मिलने पर जिला अस्पताल के मनोरोग ओपीडी में दिखाया तो बीमारी का पता चला और इलाज शुरू हुआ।
ये बरतें सावधानियां
-मरीज को कभी अकेला और खाली न छोड़ें
-मरीज से खुल कर बात करें और उसके विचार जानें
-उसे काम में व्यस्त रखें और नए कार्यों के लिए प्रोत्साहित करें
-उसमें हीन भावना न आने दें
-तनाव दूर करने के लिए योग का सहारा लें
अपने आप में खोये रहना भी है लक्षण
मेडिकल के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. तरुण पाल ने बताया कि अपने आप में खोये रहना, अपने आप से बातें करना, चेहरे पर भाव न होना, सारा दिन लेटे रहना, ज्यादा कोशिश करने पर उग्र हो जाना, बिना बात हंसना और कई लोग आपस में बात कर रहे हों तो मरीज को लगता है कि उसका मजाक बना रहे हैं, उसके खिलाफ साजिश रच रहे हैं आदि स्कीजोफ्रेनिया के लक्षण हैं।
युवावस्था में होती है शुरुआत
वरिष्ठ मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. रवि राणा ने बताया कि अगर माता-पिता, भाई-बहन को यह बीमारी है, तो बच्चों में यह रोग होने की आशंका रहती है। इसकी शुरुआत युवा अवस्था से होती है। जितनी बार बीमारी का अटैक आता है, उतनी ही बार व्यक्तित्व में कमी आती जाती है। हालांकि एक चौथाई मरीज बिल्कुल ठीक हो जाते हैं।
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