मंगलवार, 28 मार्च 2023
सुप्रीम कोर्ट ने सजा ए मौत के एक केस की सुनवाई करते हुए एक व्यक्ति को फौरन रिहा करने का आदेश दिया है. कोर्ट ने सुनवाई के बाद याचिकाकर्ता की दलील और साक्ष्यों को लेकर सहमति जताई कि वारदात के समय उसकी उम्र 12 साल थी.यानी वो तब नाबालिग था. जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय की बेंच ने 28 साल से जेल में बंद नारायण चेतनराम चौधरी की नाबालिगता सिद्ध होने पर उसे रिहा करने का आदेश दिया.
दरअसल, पुणे में 1994 में राठी परिवार का कत्ल किया गया था. जिनकी हत्या हुई उनमें एक गर्भवती महिला और 2 बच्चे शामिल थे. जबकि नारायण चेतनराम चौधरी पिछले 28 साल से जेल में बंद है.
इस सामूहिक हत्याकांड में नारायण चेतनराम चौधरी के अलावा मौत की सजा पाने वाले जितेंद्र नरसिंह गहलोत ने 2016 में राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल की थी. उसकी याचिका पर सजा-ए-मौत को उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया था. हालांकि चौधरी ने अपनी दया याचिका वापस लेकर नाबालिग होने की दलील पर 2015 में सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू याचिका लगाई.
इसके प्रमाण स्वरूप नारायण चौधरी ने राजस्थान में अपने स्कूल रिकॉर्ड के दस्तावेज लगाए. उनसे चौधरी के नाबालिग होने की पुष्टि हो गई. उसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दे दी. उससे पहले नारायण चौधरी के पास अपनी किशोरावस्था के प्रमाण के लिए कोई दस्तावेज नहीं था. क्योंकि महाराष्ट्र में वह नौवीं और दसवीं यानी सिर्फ डेढ़ साल ही पढ़ा था.
सुप्रीम कोर्ट ने चार साल पहले जनवरी 2019 में पुणे के प्रिंसिपल जिला और सत्र न्यायाधीश को कहा था कि नारायण चौधरी की उम्र का पता लगाकर बताएं. जज ने सीलबंद लिफाफे में अपनी पड़ताल रिपोर्ट दाखिल की. दावा सच साबित होने के बाद भी रिहाई का आदेश जारी होने में करीब तीन साल लग गए. लिहाजा आज सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने नारायण चौधरी की रिहाई के आदेश दिए हैं.
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