आज भी लोग पूर्णिमा को होली जलाते हैं, और अगले दिन सब लोग एक दूसरे पर गुलाल, अबीर और तरह-तरह के रंग डालते हैं।
इस दिन लोग प्रात: काल उठकर रंगों को लेकर अपने नाते-रिश्तेदारों व मित्रों के घर जाते हैं और उनके साथ जमकर होली खेलते हैं । बच्चों के लिए तो यह त्योहार विशेष महत्व रखता है । वह एक दिन पहले से ही बाजार से अपने लिए तरह-तरह की पिचकारियाँ व गुब्बारे लाते हैं।
बच्चे गुब्बारों व पिचकारी से अपने मित्रों के साथ होली का आनंद उठते हैं । सभी लोग बैर-भाव भूलकर एक-दूसरे से परस्पर गले मिलते है। घरों में औरतें एक दिन पहले से ही मिठाई, गुजियां आदि बनाती हैं व अपने पास-पड़ोस में आपस में बाँटती हैं व होली का आनंद उठाती हैं।
कई लोग ढोल, डफ, मृंदग आदि बजा कर नाचते-गाते हुए घर जाकर होली मांगते है । गाँवों में तो होली का अपना ही मजा होता है । लोग टोलियाँ बनाकर घर-घर जाकर खूब नाचते-गाते हैं। शहरों में कहीं मूर्ख सम्मेलन कहीं कवि सम्मेलन आदि होता हैं।
ब्रज की होली तो पूरे भारत में मशहूर है । वहाँ की जैसी होली तो पूरे भारत में देखने को नहीं मिलती है । कृष्ण मंदिर में होली की धूम का अपना ही अलग स्वरूप है । ब्रज के लोग राधा के गाँव जाकर होली खेलते हैं । मंदिर कृष्ण भक्तों से भरा पड़ा रहता है । चारों तरफ गुलाल लहराता रहता है । कृष्ण व राधा की जय-जयकार करते हुए होली का आनंद लेते हैं। लेकिन अब होली के इस त्योहार पर वो पहले जैसी बात नही रही... वक़्त के साथ लोग बदलते जा रहे है और लोगों के जीने का तरीका, रहन सहन, खाने पीने का तरीका सब कुछ बदल गया।
आजकल लोग अच्छे रंगों का प्रयोग न करके रासायनिक लेपनों, नशे आदि का प्रयोग करके इसकी गरिमा को समाप्त कर रहे हैं । आज के व्यस्त जीवन के लिए होली एक चुनौती है । इसे मंगलमय रूप देकर मनाया जाना चाहिए तभी इसका भरपूर आनंद लिया जा सकता है।
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