सोमवार, 13 मार्च 2023
मेरठ- कहा जाता है कि स्त्री कभी आजाद नहीं हो सकती, प्रकृति ने उसकी रचना ही कुछ इस तरह की कि वह आजादी का अनुभव करने में हिचकिचाती है।
वह चाहे कितनी ही मॉडर्न विचारधारा वाली क्यों ना हो जाए लेकिन पूर्ण स्वतंत्रता का अनुभव उसके स्वभाव में ही नहीं है।
लेकिन एक वेश्या पर यह बात लागू नहीं होती। वह ना सिर्फ स्वतंत्र है बल्कि हर तरह के सामाजिक और धार्मिक बंधनों से भी मुक्त है। भारत मे वेश्यावृत्ति का पेशा काफी प्रचलित है... आदिकाल में राजा महाराजा अपनी महफिलों की शान बढ़ाने के लिए नर्तकियों को बुलाते थे और उन पर खूब अशर्फियाँ लुटाते थे। धीरे-धीरे नाचना महिलाओं के लिए पैसा कमाने का एक ज़रिया बन गया लेकिन इससे उनका ओहदा और सम्मान छिनने लगा और जैसे-जैसे वक्त बदला तो बदलते वक्त के साथ यह पेशा फलने-फूलने लगा और इस पेशे का स्वरूप पूरी तरह बदल गया। आज के दौर में क्लब और प्राइवेट महफिलों में डांस करने वाली लड़कियों को बार गर्ल्स कहा जाता है लेकिन 15वीं शताब्दी में ही इन बार गर्ल्स की जड़ें जमने लगी थीं जिन्हें राजमहलों की शान समझा जाता था।
आपको बता दें कि इतिहासकारों के अनुसार 16वीं शताब्दी तक इन नर्तकियों को शाही सम्मान हासिल था। ये राज नर्तकियां हुआ करती थीं, जिनके आसपास तक भी कोई सामान्य जन नहीं जा सकता था। यहां तक कि राजा-महाराजा और मुगल शासक तक भी इन नर्तकियों की कला का आनंद उठाते थे, उन्हें छूने की कोशिश नहीं करते थे। लेकिन जैसे ही ब्रिटिश सरकार की महफिलों में इन नर्तकियों ने अपनी कला का प्रदर्शन करना शुरू किया, तभी से इन नर्तकियों के बुरे समय की शुरुआत हो गई।अंग्रेज लोग जब भी किसी महफिल में इन नर्तकियों का डांस देखते तो इनके प्रति अत्याधिक आकर्षित हो जाते। धन के बल पर वे इन्हें कुछ समय के लिए अपने निवास पर बुलाते और कभी-कभार पूरी रात इन्हें अपने साथ ही रखते।
पैसे की चकाचौंध और अंग्रेज सरकार से निकटता के लालच में नर्तकियों ने भी धीरे-धीरे जिस्म बेचना शुरू कर दिया और इस तरह नृत्य करने वाली इन स्त्रियों को नर्तकियों की जगह वेश्या नाम दिया जाने लगा।
शाही घरानों की नर्तकियों से शुरू हुआ यह सफर आज एक ऐसे पड़ाव पर आ पहुंचा है जहां वेश्या, समाज के लिए अभिशाप और स्वयं अपने जीवन के लिए ही एक गाली बन गई है। पुरुष उन्हें स्त्री नहीं भोग की एक वस्तु समझते हैं, चंद पैसों में जिसके शरीर का मनचाहे तरीके से शोषण किया जा सकता है।
आज हमारा समाज वेश्याओं को सोसायटी का सबसे तुच्छ हिस्सा मानता है लेकिन क्या ये बात सच नहीं कि इस भाग की रूपरेखा का निर्माण करने वाला भी स्वयं हमारा पुरुष प्रधान समाज ही है। स्त्री की मजबूरी का फायदा किस तरह उठाना है या उठाया जा सकता है, ये बात मर्दवादी समाज बहुत अच्छे से समझता है। इसी समाज ने उन्हें घर की चारदीवारी से निकालकर सड़क पर खड़ा कर दिया है। लेकिन आज भी जिस तरह से वेश्यावृत्ति के ये बाजार सज रहे है उससे ये कहना बिल्कुल गलत नही होगा कि नारी आज सबला नही अबला है।
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